BREAKING | जस्टिस यशवंत वर्मा ने महाभियोग कार्यवाही में लोकसभा की जांच समिति को सुप्रीम कोर्ट में दी चुनौती

Update: 2025-12-16 10:59 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने उस याचिका पर नोटिस जारी किया, जिसमें जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग कार्यवाही में उनके आधिकारिक आवास पर बिना हिसाब-किताब वाली नकदी मिलने के मामले में जजों (जांच) अधिनियम, 1968 के तहत संसदीय समिति की वैधता को चुनौती दी गई है।

जस्टिस यशवंत वर्मा (जिन्होंने X के नाम से गुमनाम रूप से याचिका दायर की थी) की ओर से सीनियर एडवोकेट मुकुल रोहतगी जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस एजी मसीह की बेंच के सामने पेश हुए।

अपनाई गई प्रक्रिया को चुनौती देते हुए, वर्मा ने तर्क दिया कि लोकसभा और राज्यसभा दोनों में महाभियोग नोटिस पेश किए जाने के बावजूद, लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने राज्यसभा चेयरमैन के प्रस्ताव को स्वीकार करने के फैसले का इंतजार किए बिना या कानून द्वारा निर्धारित अनिवार्य संयुक्त परामर्श किए बिना खुद ही समिति का गठन कर दिया।

रोहतगी ने समिति के गठन और 1968 के अधिनियम के प्रावधानों को पढ़ते हुए कहा,

"जहां प्रस्ताव के नोटिस दोनों सदनों को एक ही तारीख को 'दिए जाते हैं जैसा कि इस मामले में है, कोई समिति गठित नहीं की जाएगी यह अनिवार्य है मायलॉर्ड्स, जब तक कि प्रस्ताव दोनों सदनों में स्वीकार नहीं हो जाता। और जहां ऐसा प्रस्ताव दोनों सदनों में स्वीकार हो जाता है तो समिति का गठन लोकसभा स्पीकर और राज्यसभा चेयरमैन द्वारा संयुक्त रूप से किया जाएगा।"

उन्होंने स्पष्ट किया कि यदि प्रस्ताव केवल एक सदन में स्वीकार' होता है तो समिति का गठन एक सदन में किया जाएगा लेकिन यहां ऐसा नहीं है, क्योंकि न केवल प्रस्ताव दिया गया था बल्कि इसे उसी तारीख को स्वीकार भी किया गया।

वह सेक्शन 3(2) के प्रोविज़ो का ज़िक्र कर रहे हैं, जिसमें लिखा है,

"बशर्ते कि जहां सब-सेक्शन (1) में बताए गए प्रस्ताव के नोटिस संसद के दोनों सदनों में एक ही दिन दिए जाते हैं, तो कोई कमेटी तब तक नहीं बनाई जाएगी, जब तक कि प्रस्ताव दोनों सदनों में स्वीकार नहीं हो जाता और जहां ऐसा प्रस्ताव दोनों सदनों में स्वीकार हो गया है, तो कमेटी स्पीकर और चेयरमैन द्वारा मिलकर बनाई जाएगी।

बता दें, जुलाई में लोकसभा के 145 सदस्यों और राज्यसभा के 63 सदस्यों द्वारा समर्थित महाभियोग के नोटिस क्रमशः लोकसभा स्पीकर ओम बिरला और राज्यसभा के चेयरमैन जगदीप धनखड़ को सौंपे गए थे।

इसके बाद अगस्त में लोकसभा स्पीकर ने कमेटी की घोषणा की थी, जिसमें सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अरविंद कुमार मद्रास हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस एम एम श्रीवास्तव और कर्नाटक हाईकोर्ट के सीनियर एडवोकेट वासुदेव आचार्य शामिल थे।

रोहतगी ने आगे कहा,

"ऐसी स्थिति में जो कि दुर्लभ है, अगर यह एक ही दिन दिया जाता है और जब तक प्रस्ताव औपचारिक रूप से स्वीकार नहीं हो जाता सदन के आधार पर तो कमेटी स्पीकर और चेयरमैन के बीच सलाह-मशविरे के बाद मिलकर बनाई जाएगी। तब इसे दोनों सदनों की संयुक्त कमेटी कहा जाएगा। शब्द स्पष्ट हैं कि अगर इसे एक ही दिन स्वीकार किया जाता है।"

जस्टिस दत्ता ने पूछा,

"मिस्टर रोहतगी, हमें बताएं। अगर दो प्रस्ताव एक ही दिन दोनों सदनों में पेश किए जाते हैं तो एक ही दिन स्वीकार करने का सवाल कहां उठता है।"

रोहतगी ने कहा कि प्रस्ताव अलग-अलग तारीख पर 'लदिया जा सकता है लेकिन वह स्वीकृति के मुद्दे पर बहस कर रहे हैं।

उन्होंने तर्क दिया कि 'स्वीकृति' और 'दिया जाना' में अंतर है।

उन्होंने कहा,

"शब्द 'दिए गए' हैं। कृपया इसे दायर किया गया पढ़ें. अगर दो सदनों में एक ही दिन प्रस्ताव लाया जाता है, दोनों सदन समान दर्जे के हैं, एक को 100 हस्ताक्षर की ज़रूरत हो सकती है और दूसरे को 50 की लेकिन समान दर्जे के हैं और लोकतंत्र के हिस्से हैं। अगर उन्हें एक ही दिन लाया जाता है और चूंकि दोनों समान हैं तो एक संयुक्त कमेटी की ज़रूरत है अगर इसे उसी तारीख को स्वीकार किया जाता है।"

पृष्ठभूमि

यह मामला 14 मार्च को दिल्ली हाईकोर्ट के तत्कालीन जज जस्टिस वर्मा के सरकारी आवास के आउटहाउस में आग बुझाने के ऑपरेशन के दौरान करेंसी नोटों के एक बड़े ढेर के अचानक मिलने से जुड़ा है।

इस खोज के बाद जब बड़ा सार्वजनिक विवाद हुआ तो तत्कालीन CJI संजीव खन्ना ने तीन जजों की एक इन-हाउस जांच समिति बनाई - जस्टिस शील नागू (तब पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस), जस्टिस जीएस संधावालिया (तब हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस) और जस्टिस अनु सिवरमन (जज, कर्नाटक हाई कोर्ट)। जस्टिस वर्मा को इलाहाबाद हाईकोर्ट वापस भेज दिया गयाबऔर जांच पूरी होने तक उनसे न्यायिक काम वापस ले लिया गया।

समिति ने मई में CJI खन्ना को अपनी रिपोर्ट सौंपी जिसमें पहली नज़र में जस्टिस वर्मा को दोषी पाया गया। जस्टिस वर्मा के CJI की इस्तीफ़ा देने की सलाह न मानने के बाद CJI ने यह रिपोर्ट आगे की कार्रवाई के लिए राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेज दी।

यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस वर्मा की उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें उन्होंने इन-हाउस जांच के साथ-साथ उन्हें हटाने की CJI की सिफारिश को चुनौती दी थी।

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