नोएडा पुलिस पर 14 घंटे की अवैध हिरासत और कस्टोडियल यौन उत्पीड़न का आरोप, महिला वकील ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया
सुप्रीम कोर्ट ने आज एक महिला अधिवक्ता द्वारा दायर रिट याचिका पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है, जिसमें आरोप लगाया गया है कि उन्हें नोएडा के एक पुलिस थाने में रातभर लगभग 14 घंटे तक अवैध रूप से हिरासत में रखा गया और इस दौरान पुलिस अधिकारियों द्वारा कस्टोडियल यौन उत्पीड़न, शारीरिक यातना और जबरदस्ती की गई।
याचिका पर जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस एन.वी. अंजारिया की खंडपीठ ने सुनवाई करते हुए केंद्र को 7 जनवरी 2026 तक जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है।
याचिका में संविधान के अनुच्छेद 14, 19(1)(g), 21 और 22 के उल्लंघन का आरोप लगाया गया है। याचिका के अनुसार, याचिकाकर्ता एक प्रैक्टिसिंग महिला अधिवक्ता हैं, जिन्हें 3 दिसंबर 2025 की रात नोएडा सेक्टर-126 थाने में, अपने मुवक्किल की ओर से पेशेवर कर्तव्य निभाते समय, 14 घंटे तक अवैध रूप से हिरासत में रखा गया।
याचिका में कहा गया है कि महिला अधिवक्ता अपने मुवक्किल की सहायता के लिए पेशेवर वेश में थाने पहुंची थीं, जहां उनका मुवक्किल गंभीर सिर की चोटों के साथ एफआईआर दर्ज कराना चाहता था। आरोप है कि चिकित्सीय-वैधानिक प्रमाणपत्र (MLC) होने के बावजूद पुलिस ने एफआईआर दर्ज करने से इनकार कर दिया। याचिका में यह भी आरोप लगाया गया है कि जिन व्यक्तियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई जानी थी और उनके अधिवक्ता को थाना प्रभारी/एसीपी द्वारा “विशेष सम्मान” दिया गया, जिससे कथित मिलीभगत का संकेत मिलता है।
महिला अधिवक्ता का आरोप है कि उन्हें 4 दिसंबर की रात करीब 12:30 बजे से लेकर उसी दिन दोपहर करीब 2 बजे तक बिना किसी गिरफ्तारी मेमो, न्यायिक अनुमति या दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) के अनिवार्य प्रावधानों का पालन किए बिना हिरासत में रखा गया। उन्होंने दावा किया कि यह हिरासत CrPC की धारा 46(4) का उल्लंघन है, जिसमें मजिस्ट्रेट की पूर्व अनुमति के बिना रात में महिला की गिरफ्तारी पर रोक है। साथ ही, डी.के. बसु बनाम पश्चिम बंगाल राज्य और शीला बारसे बनाम महाराष्ट्र राज्य के दिशा-निर्देशों का भी उल्लंघन हुआ।
याचिका में आगे आरोप लगाया गया है कि हिरासत के दौरान पुरुष पुलिसकर्मियों ने उनके साथ मारपीट की, यौन उत्पीड़न किया, कपड़े उतारने की कोशिश की, अश्लील टिप्पणियां कीं और धमकियां दीं। इन कृत्यों को भारतीय न्याय संहिता की धाराओं 74 और 76 के तहत लज्जा भंग और कपड़े उतारने के इरादे से हमला बताया गया है।
याचिकाकर्ता ने यह भी आरोप लगाया है कि उनके गले पर सरकारी पिस्तौल रखकर उन्हें जान से मारने और फर्जी एनकाउंटर की धमकी दी गई। इस दौरान उन्हें भोजन, पानी, कानूनी सहायता और परिवार से संपर्क की अनुमति नहीं दी गई। साथ ही, दबाव डालकर उनसे मोबाइल फोन का पासवर्ड लिया गया और उनके तथा उनके मुवक्किल के फोन से वीडियो व अन्य डिजिटल साक्ष्य हटाए गए।
याचिका में यह भी कहा गया है कि थाने में लगे सीसीटीवी कैमरों को निष्क्रिय या हटाया गया, जो परमवीर सिंह सैनी बनाम बलजीत सिंह मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का उल्लंघन है।
रिहाई के बाद, महिला अधिवक्ता ने वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) में शिकायत दर्ज कराई। एनएचआरसी ने मामले को “पुलिस द्वारा कस्टोडियल हिंसा” की श्रेणी में दर्ज किया है, लेकिन अब तक कोई एफआईआर दर्ज नहीं हुई है। याचिका में आरोप है कि संबंधित पुलिस अधिकारी अब भी उन्हें झूठे मामलों में फंसाने की धमकी दे रहे हैं।
याचिका में कहा गया है कि यह घटना महिला अधिवक्ताओं की सुरक्षा के लिए देशव्यापी दिशा-निर्देशों की आवश्यकता को रेखांकित करती है। याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट से मांग की है कि दोषी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने, जांच को स्वतंत्र एजेंसी जैसे एसआईटी या सीबीआई को सौंपने, संबंधित अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू करने और उन्हें सुरक्षा प्रदान करने के निर्देश दिए जाएं।