OBC वर्गीकरण रद्द करने के खिलाफ पश्चिम बंगाल सरकार की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट 28 और 29 जनवरी को सुनवाई करेगा

Update: 2025-01-07 06:54 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को पश्चिम बंगाल राज्य द्वारा दायर याचिका पर अंतिम सुनवाई के लिए 28 और 29 जनवरी की तारीख तय की, जिसमें 77 समुदायों के अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) वर्गीकरण रद्द करने के कलकत्ता हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई।

जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने मामले पर विचार किया।

पश्चिम बंगाल राज्य के लिए सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने अगले शैक्षणिक वर्ष की शुरुआत से पहले निर्णय का अनुरोध किया तो जस्टिस गवई ने आश्वासन दिया कि मई में गर्मी की छुट्टियों के लिए न्यायालय बंद होने से पहले मामले पर निर्णय लिया जाएगा।

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ को सूचित किया कि राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग ने अपना हलफनामा दायर कर दिया।

पिछले साल अगस्त में भारत के पूर्व चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने राज्य की अपील पर नोटिस जारी करते हुए उसे हलफनामा दाखिल करने को कहा था, जिसमें 77 समुदायों को ओबीसी के रूप में वर्गीकृत करने के लिए अपनाई गई प्रक्रिया के बारे में बताया गया हो,

(1) सर्वेक्षण की प्रकृति; (2) क्या OBC के रूप में नामित 77 समुदायों की सूची में किसी भी समुदाय के संबंध में पिछड़ा वर्ग आयोग के साथ परामर्श की कमी थी।

हाईकोर्ट का आदेश

न्यायालय एक याचिका पर फैसला सुना रहा था, जिसमें पश्चिम बंगाल पिछड़ा वर्ग (अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के अलावा) (सेवाओं और पदों में रिक्तियों का आरक्षण) अधिनियम, 2012 के कुछ प्रावधानों को चुनौती दी गई थी, जो ओबीसी श्रेणी से संबंधित लोगों के लिए सार्वजनिक कार्यालयों में आरक्षण प्रदान करता है।

आयोग ने आरक्षण बढ़ाने के मुख्यमंत्री के मिशन के साथ मिलीभगत करके किस तरह अनुचित तरीके से काम किया इस पर टिप्पणी करते हुए न्यायालय ने कहा,

"आयोग और राज्य ने तत्कालीन मुख्यमंत्री की सार्वजनिक घोषणा को वास्तविकता बनाने के लिए 77 वर्गों के वर्गीकरण के लिए सिफारिशें करने में अनुचित रूप से जल्दबाजी और बिजली की गति से काम किया। याचिकाकर्ताओं के अनुसार, आयोग एक राजनीतिक रैली में मुख्यमंत्री की इच्छाओं को पूरा करने के लिए बहुत जल्दबाजी में लग रहा था। आयोग द्वारा सूचियों में शामिल करने के लिए आवेदन आमंत्रित करने के लिए कोई उचित जांच नहीं की गई और सूची की कथित तैयारी के बाद भी आम लोगों से आपत्तियां आमंत्रित करने के लिए कोई अधिसूचना जारी नहीं की गई।"

अधिकारियों ने संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन किया है और संवैधानिक मानदंडों के विचलन में सुरक्षात्मक भेदभाव का अभ्यास किया। कोई भी डेटा प्रकट नहीं किया गया, जिसके आधार पर यह पता लगाया जा सके कि संबंधित समुदाय पश्चिम बंगाल सरकार के तहत सेवाओं में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं करता है।

उक्त रिपोर्ट कभी प्रकाशित नहीं की गई और इस तरह कोई भी उस पर कोई आपत्ति दर्ज करने का अवसर नहीं ले सका

न्यायालय ने यह भी कहा कि राज्य द्वारा OBC के उप-वर्गीकरण की सिफारिशें राज्य आयोग को दरकिनार करके की गई और आरक्षण के लिए अनुशंसित 42 वर्गों में से 41 मुस्लिम समुदाय के थे।

न्यायालय ने कहा कि आयोग का प्राथमिक और एकमात्र विचार धर्म-विशिष्ट सिफारिशें करना था। ऐसी धर्म-विशिष्ट सिफारिशों को छिपाने के लिए आयोग ने ऐसी सिफारिशों के पीछे वास्तविक उद्देश्य को छिपाने के लिए पिछड़े वर्गों को आरक्षण देने के दिखावटी उद्देश्य से रिपोर्ट तैयार की है।

उन्होंने कहा कि इसका उद्देश्य धर्म-विशिष्ट आरक्षण देना था।

पीठ ने कहा कि आयोग ऐसी रिपोर्टों के माध्यम से यह दिखाने का दावा करता है (हालांकि राज्य और आयोग ने न्यायालय के समक्ष इस पर भरोसा नहीं किया है) कि उसने भारत के संविधान के अनुच्छेद 16(4) के साथ 1993 के अधिनियम की धारा 9 का अनुपालन किया।

केस टाइटल: पश्चिम बंगाल राज्य और अन्य बनाम अमल चंद्र दास डायरी संख्या - 27287/2024

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