सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु के राज्यपाल और मुख्यमंत्री से विधेयकों पर गतिरोध सुलझाने के लिए बातचीत करने का आग्रह किया
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (13 दिसंबर) को तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और राज्यपाल से विधेयकों को पारित करने पर गतिरोध को हल करने के लिए खुली बातचीत करने का आग्रह किया।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों को मंजूरी देने में राज्यपाल की देरी के खिलाफ तमिलनाडु राज्य द्वारा दायर एक रिट याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
राज्य की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी ने सुझाव दिया कि मामले को जनवरी तक के लिए स्थगित कर दिया जाए, क्योंकि संवैधानिक प्रश्न पर विस्तृत सुनवाई आवश्यक है कि क्या राज्यपाल विधानमंडल द्वारा विधेयकों को दोबारा पारित किए जाने के बाद राष्ट्रपति को भेज सकते हैं।
गौरतलब है कि पिछले मौके पर कोर्ट ने मौखिक रूप से टिप्पणी की कि राज्यपाल किसी विधेयक पर सहमति रोककर उसे राष्ट्रपति के पास नहीं भेज सकते।
सीजेआई चंद्रचूड़ ने तब बताया था कि अनुच्छेद 200 के अनुसार राज्यपाल के पास केवल तीन विकल्प है- अनुमति देना, अनुमति रोकना, या राष्ट्रपति का जिक्र करना- और इनमें से किसी भी विकल्प का उपयोग करने के बाद वह किसी अन्य विकल्प का उपयोग नहीं कर सकते हैं।
पिछले अवसर पर सीजेआई द्वारा दिए गए सुझाव का जिक्र करते हुए कि राज्यपाल को सीएम को चाय पर आमंत्रित करना चाहिए और बात करनी चाहिए।
सिंघवी ने हल्के-फुल्के अंदाज में कहा,
"न तो चाय और न ही कोई कठोर पेय इस मुद्दे को हल कर सकता है। यह पूरी तरह से संवैधानिक प्रश्न है, जिसका निर्णय इस न्यायालय को करना है।"
सुनवाई स्थगित करने पर सहमति जताते हुए भी सीजेआई ने समाधान खोजने के लिए मुख्यमंत्री और राज्यपाल के बीच संचार के महत्व पर जोर दिया, लेकिन स्पष्ट किया कि अदालत अभी भी संवैधानिक मुद्दे से निपटना जारी रखेगी।
सीजेआई ने कहा,
"इस मामले में हमें जो करना है, हम करेंगे, लेकिन इस बीच वे मिलते क्यों नहीं? अगर कोई रास्ता है.., तो तथ्य यह है कि बिल भेज दिए गए हैं, इसका हमेशा समाधान किया जा सकता है... होना ही चाहिए सीएम और राज्यपाल के बीच कुछ रास्ते खुले हैं। कम से कम उन्हें एक-दूसरे से बात करने दीजिए। हम विवाद सुलझा लेंगे। सरकार का काम तो चलना ही है।"
इसके बाद अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने पश्चिम बंगाल में यूनिवर्सिटी के मुद्दे का उदाहरण दिया। उन्होंने कहा कि उस मामले में न्यायालय के सुझाव के अनुसार उनके हस्तक्षेप के बाद पश्चिम बंगाल राज्य के मुख्यमंत्री और राज्यपाल के बीच मुद्दों का समाधान हुआ और उम्मीद जताई कि तमिलनाडु के संबंध में भी ऐसा किया जा सकता है।
इसके बाद सीनियर वकील सिंघवी ने पीठ के समक्ष यथास्थिति बनाए रखने की प्रार्थना की ताकि राष्ट्रपति इस बीच विधेयकों पर कार्रवाई न करें।
उन्होंने कहा,
"हमें इस बात का आभास नहीं होना चाहिए कि जब हम अगली बार आएंगे तो राष्ट्रपति ने विधेयक पारित कर दिया है, या अस्वीकार कर दिया है। यथास्थिति बनाए रखी जाए।"
हालांकि, सीजेआई ने भारत के राष्ट्रपति को निषेधाज्ञा देने के प्रति अनिच्छा व्यक्त की और इस बात पर जोर दिया कि राष्ट्रपति पर इस तरह का निषेधाज्ञा अत्यधिक अनुचित प्रतीत होगी।
उन्होंने कहा,
"हम भारत के राष्ट्रपति को रोकना नहीं चाहते। यह अच्छा नहीं लगता। यदि विधेयक पहले ही राष्ट्रपति के पास जा चुके हैं तो हम कार्रवाई नहीं करने के लिए नहीं कह सकते।"
हालांकि, सीजेआई ने मौखिक रूप से अटॉर्नी जनरल से मामले को देखने के लिए कहा।
अब इस मामले की सुनवाई जनवरी 2024 में होगी।
मामले की पृष्ठभूमि
13 नवंबर को राज्यपाल ने घोषणा की थी कि वह दस विधेयकों पर सहमति रोक रहे हैं। इसके बाद तमिलनाडु विधानसभा ने विशेष सत्र बुलाया और 18 नवंबर को उन्हीं बिलों को फिर से अधिनियमित किया। 20 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने बिलों को तीन साल से अधिक समय तक लंबित रखने के लिए राज्यपाल से सवाल किया था।
सुप्रीम कोर्ट ने 23 नवंबर को पंजाब के राज्यपाल के मामले में अपना फैसला सार्वजनिक किया, जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया कि यदि राज्यपाल इस विधेयक पर सहमति रोक रहे हैं तो उन्हें विधेयक को विधानसभा को वापस करना होगा और वह इस पर अनिश्चित काल तक बैठे नहीं रह सकते।
इसके बाद तमिलनाडु के राज्यपाल ने विधेयकों को राष्ट्रपति के पास भेजने का निर्णय लिया, यह घोषणा करने के बाद कि वह उन पर सहमति रोक रहे हैं। अदालत ने यह कहते हुए इस पर सवाल उठाया कि अनुच्छेद 200 के अनुसार राज्यपाल के पास केवल तीन विकल्प है- अनुमति देना, अनुमति रोकना, या राष्ट्रपति का जिक्र करना- और इनमें से किसी भी विकल्प का उपयोग करने के बाद वह किसी अन्य विकल्प का उपयोग नहीं कर सकते।
इसके बाद राज्य सरकार ने अपनी याचिका में एक और प्रार्थना जोड़ने के लिए सुप्रीम कोर्ट के समक्ष आवेदन प्रस्तुत किया, जिसमें यह घोषित करने के लिए कोई रिट/आदेश या निर्देश देने की मांग की गई कि राष्ट्रपति के विचार के लिए विधेयकों को आरक्षित करने की तमिलनाडु के राज्यपाल की कार्रवाई असंवैधानिक, अवैध, मनमानी और अनुचित है।
केस टाइटल: तमिलनाडु राज्य बनाम तमिलनाडु के राज्यपाल, रिट याचिका (सिविल) नंबर 1239/2023