UAPA मामलों में देरी पर सख्त सुप्रीम कोर्ट, सभी हाईकोर्ट को समीक्षा का आदेश

Update: 2025-12-12 03:28 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक महत्वपूर्ण फैसले में सभी हाईकोर्ट को निर्देश दिया कि वे उन मामलों की स्थिति की समीक्षा करें, जिनमें रिवर्स बर्डन ऑफ प्रूफ (आरोपी पर दोष नकारने की जिम्मेदारी) लागू होती है, जैसे कि गैरकानूनी गतिविधियां (निवारण) अधिनियम – UAPA के तहत चल रही कार्यवाही।

न्यायालय ने सभी हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों से यह भी कहा कि वे यह ascertain करें—

इन विशेष अपराधों की सुनवाई के लिए कितनी विशेष अदालतें नामित हैं,

विशेष लोक अभियोजकों की नियुक्ति की स्थिति क्या है,

और पाँच वर्ष से अधिक समय से लंबित मामलों पर विशेष ध्यान देते हुए उन्हें दिन-प्रतिदिन चलने वाले मुकदमे के रूप में प्राथमिकता दी जाए।

यह निर्देश अदालत ने जनेश्वरी एक्सप्रेस (2010) रेल दुर्घटना मामले में कलकत्ता हाईकोर्ट द्वारा आरोपियों को दी गई जमानत को चुनौती देने वाली सीबीआई की अपीलों पर सुनवाई के दौरान जारी किए। यद्यपि सुप्रीम कोर्ट ने माना कि कलकत्ता हाईकोर्ट का जमानत आदेश कानून के अनुरूप नहीं था, लेकिन लंबे समय के बीत जाने और जमानत के दुरुपयोग न होने के चलते आरोपियों की जमानत रद्द करने से इनकार कर दिया।

यह निर्णय न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति एन. कोटिस्वर सिंह की खंडपीठ ने पारित किया।

“रिवर्स बर्डन” वाले मामलों में राज्य को सुनिश्चित करनी होगी तेज़ सुनवाई : सुप्रीम कोर्ट

न्यायालय ने कहा कि जब कोई कानून आरोपी पर दोष-मुक्ति का भार डालता है, तो राज्य का दायित्व और बढ़ जाता है कि ऐसे मामलों की सुनवाई यथाशीघ्र हो।

अदालत ने टिप्पणी की:

“संवैधानिक लोकतंत्र सिर्फ बोझ डालकर चुप नहीं बैठ सकता; उसे यह भी सुनिश्चित करना होगा कि जिन पर बोझ डाला गया है, वे उसे वहन करने के योग्य साधनों से लैस हों। यदि राज्य दोष मान लेता है, तो उसी राज्य को आरोपी को निर्दोष सिद्ध करने की निष्पक्ष राह भी उपलब्ध करानी चाहिए।”

यूएपीए में 'रिवर्स बर्डन' के प्रभावों का विश्लेषण

न्यायमूर्ति करोल द्वारा लिखित विस्तृत निर्णय में UAPA की धारा 43E के तहत रिवर्स बर्डन ऑफ प्रूफ के प्रभावों का विश्लेषण किया गया।

अदालत ने कहा कि ऐसे मामलों में विचाराधीन कैदियों — खासकर वंचित पृष्ठभूमि वाले — के लिए सबूत जुटाना लगभग असंभव हो जाता है, क्योंकि वे लंबे समय तक जेल में रहते हैं और उचित कानूनी सहायता तक सीमित पहुँच रखते हैं।

“भारतीय दंड न्याय प्रणाली में विलंब एक कठोर वास्तविकता है। परंतु जब यह विलंब ऐसे मामलों में होता है जिनमें प्रारंभिक स्तर पर ही आरोपी को दोषी मान लिया जाता है, तो यह विलंब और भी गंभीर रूप ले लेता है।”

न्यायालय ने चेताया कि यदि अदालतें देरी और प्रक्रियात्मक कमियों की अनुमति देती हैं, तो “रिवर्स बर्डन” दोष सिद्धि में परिवर्तित होने का जोखिम बढ़ जाता है।

मामले की पृष्ठभूमि : जनेश्वरी एक्सप्रेस दुर्घटना

28 मई 2010 को हुई जनेश्वरी एक्सप्रेस की पटरी-उतार दुर्घटना में 148 लोगों की मौत हुई थी और 170 घायल हुए थे।

सीबीआई का आरोप था कि आरोपी माओवादी समूहों से जुड़े थे और उन्होंने सुरक्षा बलों को पीछे हटाने के उद्देश्य से रेलवे ट्रैक से पंड्रोल क्लिप हटाकर यह दुर्घटना कराई।

अब तक 204 में से 176 गवाहों के बयान दर्ज हो चुके हैं।

कलकत्ता हाईकोर्ट ने आरोपियों को लंबी कैद और धारा 436A CrPC के आधार पर जमानत दी थी, यह मानते हुए कि वे अधिकतम सजा के आधे से अधिक समय जेल में बिता चुके हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह दृष्टिकोण गलत था क्योंकि धारा 436A उन मामलों पर लागू नहीं होती जहां मृत्युदंड संभावित हो, जैसे IPC 302 और UAPA की धारा 16।

“राष्ट्रीय सुरक्षा मामलों में केवल अनुच्छेद 21 पर्याप्त आधार नहीं” : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यद्यपि अनुच्छेद 21 (तेजी से मुकदमे का अधिकार) अत्यंत महत्वपूर्ण है, पर राष्ट्रीय सुरक्षा और संप्रभुता से जुड़े मामलों में केवल इसी आधार पर रिहाई नहीं दी जा सकती।

फिर भी, अदालत ने स्पष्ट किया कि आरोपियों को बिना वजह वर्षों तक जेल में नहीं रखा जा सकता। इस मामले में आरोपियों ने लगभग 12 वर्ष विचाराधीन कैद में बिताए थे।

अदालत ने यह भी ध्यान दिलाया कि

जमानत के खिलाफ अपील 2023 में दायर हुई,

पर substantive hearing 2025 में शुरू हुई,

आरोपियों ने जमानत मिलने के बाद तीन वर्षों में कोई दुरुपयोग नहीं किया।

मुकदमे में तेजी लाने के निर्देश

ट्रायल कोर्ट को निर्देश दिया गया है कि—

अनावश्यक स्थगन से बचा जाए,

सुनवाई दिन-प्रतिदिन चले,

हाईकोर्ट का प्रशासनिक न्यायाधीश हर 4 सप्ताह में प्रगति रिपोर्ट ले।

सभी हाईकोर्ट को प्रणालीगत सुधार के आदेश

NCRB रिपोर्ट 2023 के अनुसार—

3,949 UAPA मामले ट्रायल में लंबित हैं,

4,794 मामले जांच के चरण में लंबित हैं।

इसे देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सभी हाईकोर्ट को आदेश दिया कि वे—

1. स्थिति की व्यापक समीक्षा करें

राज्य में लंबित UAPA व समान कानूनों के मामलों की संख्या

इन मामलों की सुनवाई करने वाली विशेष अदालतों की उपलब्धता

सेशन कोर्ट पर भार

2. विशेष अदालतों व स्टाफिंग की पर्याप्तता सुनिश्चित करें

3. पाँच वर्ष से अधिक पुराने मामलों को प्राथमिकता दें

पुरानी फाइलें पहले लें routine adjournments रोकी जाएं दिन-प्रतिदिन सुनवाई हो

4. विशेष लोक अभियोजकों की नियुक्ति की स्थिति सुनिश्चित करें

5. हाईकोर्ट नियमित रूप से निचली अदालतों से प्रगति रिपोर्ट प्राप्त करें

कानूनी सहायता पर निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्य विधिक सेवा प्राधिकरणों को निर्देश दिया कि—

प्रत्येक UAPA विचाराधीन कैदी को उसके कानूनी सहायता के अधिकार की जानकारी दी जाए,

और कानूनी सहायता वकील तुरंत आवंटित किए जाएँ

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