अर्चकों का ट्रांसफर: सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर याचिका पर तमिलनाडु सरकार से जवाब मांगा

Update: 2023-09-02 08:12 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार से एक आगमिक मंदिर से दूसरे आगमिक मंदिर में अर्चक (मंदिर का पुजारी) का ट्रांसफर करने और निर्वाचित ट्रस्टी की अनुपस्थिति में नियुक्ति करने वाले प्राधिकारी की आवश्यक भूमिका के संबंध में जवाब मांगा है।

जस्टिस एमएम सुंदरेश और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ ने मद्रास हाईकोर्ट के एक आदेश के ‌खिलाफ दायर याचिका पर नोटिस जारी किया।

हाईकोर्ट ने अपने आदेश में आगमों के अनुसार निर्मित मंदिरों को 2020 में तमिलनाडु सरकार की ओर से अर्चकों/पुजारियों की योग्यता और नियुक्तियों के संबंध में लाए गए नियमों से छूट दी थी।

सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में मंदिर के कर्मचारियों को एक आगमिक मंदिर से दूसरे आगमिक मंदिर में ट्रांसफर करने के मामले में हाईकोर्ट की ओर से की गई टिप्पणी का मुद्दा उठाया गया है।

याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि इस निष्कर्ष को संशोधित करने की आवश्यकता है क्योंकि प्रत्येक मंदिर अलग है और उनके अपने रीति-रिवाज, उपयोग और प्रथाएं हैं।

मद्रास हाईकोर्ट ने माना था कि अर्चकों को स्थानांतरित किया जा सकता है, हालांकि उन्हें केवल आगम शासित मंदिरों में ही स्‍थानांतरित किया जा सकता है। मंदिर कर्मचारियों के ट्रांसफर से संबंधित नियम 17 के संबंध में हाईकोर्ट ने ऐसा कहा था,

"स्पष्टता के लिए, हम कहेंगे कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 26 के तहत दी गई आवश्यक सुरक्षा बनाए रखी जाएगी और इस प्रकार अर्चकों का ट्रांसफर तब तक स्वीकार्य नहीं होगा जब तक कि विशेष आगम द्वारा शासित मंदिर से उसी आगम द्वारा शासित मंदिर के लिए ट्रांसफर का मामला न हो। "

सुप्रीम कोर्ट के समक्ष याचिका में उठाया गया दूसरा मुद्दा निर्वाचित ट्रस्टी की अनुपस्थिति में नियुक्ति करने वाले प्राधिकारी की भूमिका के संबंध में था।

इस संबंध में याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि ट्रस्टियों के कार्यकाल की समाप्ति के बाद, और जब उनकी जगह लेने के लिए कोई निर्वाचित ट्रस्टी नहीं होता है, तो ऐसी संभावना होती है कि कार्यकारी अधिकारी/योग्य व्यक्ति (fit person) आगे की नियुक्तियों का प्रयास किए बिना विस्तारित अवधि के लिए भूमिका निभाता है।

'नियुक्ति प्राधिकारी' शब्द के संबंध में हाईकोर्ट ने माना था कि परिभाषा किसी भी संवैधानिक प्रावधान का उल्लंघन नहीं करती है। भले ही नियुक्ति की शक्ति ट्रस्टियों के पास थी, उनकी अनुपस्थिति में, मामलों की देखभाल किसी और को करनी होगी।

हाईकोर्ट ने कहा था,

"इसमें कोई संदेह नहीं है कि अर्चकों की नियुक्ति का अधिकार ट्रस्टियों के पास है, लेकिन यह अदालत इस तथ्य से अनभिज्ञ नहीं हो सकती कि ट्रस्टियों की अनुपस्थिति में, मंदिर के मामलों की देखभाल किसी को करनी होगी। केवल ट्रस्टियों की अनुपस्थिति में या 1959 के अधिनियम की धारा 49 में दिए गए किसी भी कारण से, ट्रस्टियों की शक्ति का प्रयोग करने के लिए एक उपयुक्त व्यक्ति को नियुक्त किया जाता है। इसलिए, हम यह नहीं पाते हैं कि 2020 के नियमों का नियम 2(सी) में दी गई "नियुक्ति प्राधिकारी" शब्द की परिभाषा संवैधानिक प्रावधान या 1959 के अधिनियम का उल्लंघन करती है।"

याचिकाकर्ता की ओर से सीनियर एडवोकेट गुरु कृष्णकुमार उपस्थित हुए।

पृष्ठभूमि

अगस्त 2022 में, मद्रास हाईकोर्ट ने अर्चकों/पुजारियों की योग्यता और नियुक्तियों के संबंध में 2020 में तमिलनाडु सरकार की ओर से लाए गए नियमों से आगम के अनुसार निर्मित मंदिरों को छूट दी थी।

हाईकोर्ट की एक खंडपीठ ने तमिलनाडु हिंदू धार्मिक संस्थान कर्मचारी (सेवा की शर्तें) नियम, 2020 के नियम 7 और 9 को यह कहते हुए अवैध माना था कि वे आगम के अनुसार निर्मित मंदिरों पर लागू नहीं होंगे।

नियम 7 अर्चकों और अन्य मंदिर कर्मचारियों के लिए योग्यता निर्धारित करता है और नियम 9 सीधी भर्ती की प्रक्रिया से संबंधित है। इन नियमों के अनुसार, अर्चक के लिए एक वर्षीय सर्टिफिकेट कोर्स की योग्यता निर्धारित की गई है और भले ही कोई अर्चक पिछले कई वर्षों से पूजा कर रहा हो, नियमों के तहत प्रमाणीकरण के अभाव में वह नियुक्ति के लिए पात्र नहीं है।

हाईकोर्ट ने कहा था कि आगम के अनुसार निर्मित मंदिरों को छूट देने के लिए उक्त नियमों को अवैध ठहराना आवश्यक था अन्यथा, यह संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 के तहत गारंटीकृत धर्म का पालन करने के मौलिक अधिकारों और धार्मिक संप्रदाय के अपने मामलों के प्रबंधन के अधिकारों का उल्लंघन होता।

हालांकि, न्यायालय ने उक्त नियमों को पूरी तरह से रद्द करने से परहेज किया, क्योंकि वे अन्य नियुक्तियों से भी संबंधित थे।

केस टाइटल:श्रीरंगम कोइल मिरास कैंकर्यपरागल मैत्रम अथनाई सरंथा कोइलगालिन मिरासकैंकर्यपरागलिन नलसंगम बनाम तमिलनाडु राज्य और अन्य।


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