सुप्रीम कोर्ट ने 'धीरज मोर' फैसले का हवाला देते हुए बर्खास्त किए गए न्यायिक अधिकारी को बहाल किया

Update: 2022-09-17 09:00 GMT

सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने बिहार के एक न्यायिक अधिकारी को बहाल करने का निर्देश दिया है, जिसे धीरज मोर बनाम दिल्ली हाईकोर्ट (2020) 7 SCC 401 में फैसले का हवाला देते हुए सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था। जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सीटी रविकुमार की बेंच ने कहा कि धीरज मोर (सुप्रा) मामला वर्तमान मामले के अजीबोगरीब तथ्यों और परिस्थितियों में लागू नहीं होता है।

सुनील कुमार वर्मा ने 16 सितंबर 2016 से पहले अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश (बिहार में) के पद पर आवेदन किया था। 16 सितंबर 2016 आवेदन जमा करने की अंतिम तारीख थी। उन्होंने उत्तर प्रदेश में सिविल जज (जूनियर डिवीजन) के पद के लिए भी आवेदन किया था।

चयन प्रक्रिया में सफल होने के बाद, उन्हें 16 जनवरी 2017 को उत्तर प्रदेश में सिविल जज (जूनियर डिवीजन) के रूप में नियुक्त किया गया। इसके बाद बिहार सुपीरियर ज्यूडिशियल सर्विसेज में भर्ती के लिए चयन प्रक्रिया आगे बढ़ी। इलाहाबाद हाईकोर्ट से अपेक्षित अनुमति प्राप्त करने के बाद, वर्मा ने अतिरिक्त जिला और सत्र न्यायाधीश के पद के लिए पटना हाईकोर्ट द्वारा आयोजित चयन प्रक्रिया में भाग लिया।

चयन प्रक्रिया में सफल होने के बाद, उन्होंने इलाहाबाद हाईकोर्ट से उत्तर प्रदेश न्यायिक सेवा से इस्तीफा देने की अनुमति प्राप्त की, ताकि बिहार राज्य में अतिरिक्त जिला और सत्र न्यायाधीश के रूप में ज्वाइन कर सकें। इस प्रकार वह 21 अगस्त 2018 से बिहार सुपीरियर न्यायिक सेवा में शामिल हो गए।

धीरज मोर (सुप्रा) में, सुप्रीम कोर्ट ने (19 फरवरी, 2020 को दिया गया निर्णय) में यह माना गया था कि एक न्यायिक अधिकारी, वकीन के रूप में अपने सात साल के पिछले अनुभव पर ध्यान दिए बिना, एडवोकेट्स और प्लीडर्स के लिए सीध भर्ती कोटे में अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश के पद पर नियुक्ति के लिए आवेदन और प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकता है।

इस फैसले के मद्देनजर पटना हाईकोर्ट ने उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी किया और अंत में उन्हें सेवा से बर्खास्त कर दिया। बर्खास्तगी के खिलाफ दायर रिट याचिका को भी पटना हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया ।

सुप्रीम कोर्ट में वर्मा की ओर से पेश एडवोकेट चंद्र भूषण प्रसाद ने तर्क दिया कि धीरज मोर (सुप्रा) के मामले में निर्धारित कानून उन पर लागू नहीं होगा। दूसरी ओर हाईकोर्ट की ओर से पेश हुए एडवोकेट गौरव अग्रवाल ने इस फैसले का समर्थन किया।

अदालत ने कहा कि अपने आवेदन की तारीख के अनुसार, वर्मा एक वकील थे, जिन्होंने 7 साल से अधिक समय तक वकालत की थी और इसलिए, सीधी भर्ती श्रेणी के लिए आवेदन करने के लिए योग्य थे।

"जिस तारीख को उन्होंने आवेदन किया था, उस दिन वह न तो बिहार अधीनस्थ न्यायिक सेवा संवर्ग की सेवाओं में थे और दूसरा, न ही वह उस तारीख को बिहार अधीनस्थ न्यायिक अधिकारी संवर्ग की सेवाओं में थे, जिस दिन उनका चयन किया गया था। इस दृष्टिकोण से हम पाते हैं कि धीरज मोर (सुप्रा) के मामले में निर्धारित कानून वर्तमान मामले के अजीबोगरीब तथ्यों और परिस्थितियों में लागू नहीं होता है।"

अपील की अनुमति देते हुए, अदालत ने आगे कहा कि उन्होंने इस संबंध में इलाहाबाद हाईकोर्ट से अनुमति मांगी थी। बहाल करने का आदेश देते हुए, कोर्ट ने कहा कि वह वरिष्ठता, टर्मिनल लाभ आदि सहित सभी उद्देश्यों के लिए सेवा में निरंतरता के हकदार होंगे, हालांकि, वह उस अवधि के लिए परिलब्धियों के हकदार नहीं होंगे, जब वह रोजगार से बाहर थे।

केस ड‌िटेलः सुनील कुमार वर्मा बनाम बिहार राज्य 2022 लाइव लॉ (SC) 775 | SLP(C) 7781 of 2021| 12 सितंबर 2022 | जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सीटी रविकुमार

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