तलाक-ए-हसन के जरिए तलाक को चुनौती देने वाली याचिका को तत्काल लिस्ट करने से सुप्रीम कोर्ट ने इनकार किया
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (9 मई) को मुस्लिम पर्सनल लॉ प्रथा के माध्यम से तलाक की प्रथा तलाक-ए-हसन की को चुनौती देने वाली याचिका पर तत्काल सुनवाई करने से इनकार कर दिया। तलाक-ए-हसन के अनुसार एक आदमी तीन महीने तक, हर महीने एक एक बार "तलाक" का उच्चारण करके अपनी पत्नी को तलाक दे सकता है।
पत्रकार बेनज़ीर हीना ने एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड अश्वनी कुमार दुबे के माध्यम से जनहित याचिका दायर की थी। याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि उसके पति ने उसे 19 अप्रैल को स्पीड पोस्ट के जरिए तलाक की पहली किस्त भेजी है।
वकील ने कहा, "यह तलाक-ए-हसन से संबंधित है।"
सीजेआई ने पूछा,
"इस पर तुरंत सुनवाई करने की आवश्यकता है?"
"हमें नोटिस मिला है", वकील ने इस सप्ताह किसी तारीख पर सुनवाई का अनुरोध करते हुए कहा।
सीजेआई ने कहा,
"माफ करें, "10 साल बाद ठीक है? यह क्या है? हर दिन आप एक बात के लिए आएंगे...हमारे पास और कोई काम नहीं है? क्षमा करें।"
याचिकाकर्ता का तर्क है कि यह प्रथा भेदभावपूर्ण है क्योंकि केवल पुरुष ही इसका प्रयोग कर सकते हैं। याचिकाकर्ता यह घोषणा चाहते हैं कि यह प्रथा असंवैधानिक करार दी जाए क्योंकि यह मनमानी है और संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21 और 25 का उल्लंघन करती है। याचिकाकर्ता के अनुसार, यह इस्लामी आस्था की कोई अनिवार्य प्रैक्टिस नहीं है।