सुप्रीम कोर्ट का बिहार में जाति आधारित सर्वे पर हाईकोर्ट के अंतरिम रोक में दखल देने से इनकार

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Update: 2023-05-18 10:00 GMT

बिहार में जाति आधारित सर्वे पर पटना हाईकोर्ट ने 4 मई को अंतरिम रोक लगा दी थी। इससुप्रीम कोर्ट का बिहार जाति सर्वेक्षण पर हाईकोर्ट के रोक में दखल देने से इनकार, क्योंकि मुख्य मामले की सुनवाई जुलाई में होगीके खिलाफ बिहार सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के अंतरिम आदेश में दखल देने से इनकार कर दिया और याचिका स्थगित कर दी है।

जस्टिस एएस ओक और जस्टिस राजेश बिंदल की डिवीजन बेंच ने याचिका पर सुनवाई की। बेंच ने कहा कि 3 जुलाई को मामला हाईकोर्ट में सुना जाना है। अगर हाईकोर्ट मामला नहीं सुनता है तो हम 14 जुलाई को सुनेंगे।

गौरतलब है कि बुधवार को जब मामला जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस संजय करोल की बेंच के सामने आया तो जस्टिस करोल ने इस मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया। जस्टिस करोल 6 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट के जज के रूप पदोन्नति किया गया था। इससे पहले वो पटना हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस थे। उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट में वो इसी तरह के मामले से निपटे थे।

बिहार सरकार की ओर से पेश हुए सीनियर एडवोकेट श्याम दीवान ने कहा कि सर्वे के लिए संसाधन पहले ही जुटा लिए गए थे। हाईकोर्ट को इस पर रोक नहीं लगानी चाहिए थी। राज्य की नीतियों के लिए डेटा इकट्ठा करना जरूरी है।

बेंच ने कहा- हमें ये देखना है कि ये सर्वे है या फिर जनगणना। कहीं राज्य सरकार सर्वे के नाम पर जातिगत जनगणना कराने की कोशिश तो नहीं कर रही है।

सुनवाई के दौरान जस्टिस बिंदल ने टिप्पणी की, "काफी सारे दस्तावेज़ दिखाते हैं कि ये केवल जनगणना है।"

दीवान ने कोर्ट से कहा कि ये सर्वे जनगणना से अलग है। साथ ही राज्य ने डेटा को प्रोटेक्ट करने का आश्वासन दिया है।

आगे कहा कि 10 दिन का समय दिया जाए ताकि सर्वे पूरा किया जा सके। इसमें बड़े स्तर पर सरकारी कर्मचारियों को काम पर लगाया गया, हाईकोर्ट के आदेश के बाद सब कुछ रुक गया है।

सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार के वकील से कहा कि पटना हाई कोर्ट में मामला लंबित है, जहां 3 जुलाई को सुनवाई होनी है. अगर वहां से राहत नहीं मिलती तो यहां आ सकते हैं।

बता दें, पटना हाईकोर्ट ने बिहार में जाति आधारित सर्वे पर अंतरिम रोक लगाते हुए कहा था कि जाति आधारित सर्वे जनगणना के समान है जिसे कराने का राज्य सरकार के पास कोई अधिकार नहीं है।

आगे कहा था कि "सरकार की अधिसूचना को देखने से लगता है कि सरकार राज्य विधानसभा के विभिन्न दलों, सत्तारूढ़ दल और विपक्षी दल के नेताओं के साथ डेटा साझा करने का इरादा रखती है जो कि एक बड़ी चिंता का विषय है।"

कोर्ट ने ये भी कहा था कि इस मामले में निजता का अधिकार भी एक मुद्दा है। मामले को सुनवाई के लिए 3 जुलाई को पोस्ट कर दिया था।

सात जनवरी को बिहार राज्य में जाति आधारित सर्वे शुरू हुआ। राज्य सरकार ने इस सर्वे को कराने की जिम्मेदारी जनरल एडमिनिस्ट्रेशन डिपार्टमेंट को सौंपी थी।

याचिकाकर्ता ने इस आधार पर जातीय जनगणना पर रोक लगाने की मांग की है कि जनगणना का विषय भारतीय संविधान की सातवीं अनुसूची के लिस्ट 1 में आता है और केवल केंद्र सरकार जनगणना करा सकती है।

याचिका में कहा गया था कि जनगणना अधिनियम 1948 के तहत केवल केंद्र सरकार के पास नियम बनाने, जनगणना कर्मचारी नियुक्त करने, जनगणना के लिए जानकारी इकट्ठा करने का अधिकार है। नीतीश सरकार का जातिगत जनगणना कराने का ये फैसला संविधान के मूल ढांचे का उलंघ्घन है क्योंकि जनगणना कराने का हक केवल केंद्र सरकार के पास है। राज्य सरकार अपने स्तर पर जनगणना नहीं करा सकती।

आगे कहा गया था कि राज्य सरकार की अधिसूचना असंवैधानिक है। वोट बैंक की राजनीति को बढावा देगा। ये देश की एकता और अखंडता को भी प्रभावित करेगा।



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