सुप्रीम कोर्ट ने खुली सिगरेट बेचने पर रोक लगाने और सिगरेट पीने की उम्र 18 से बढ़ाकर 21 करने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करने से इनकार किया

Update: 2022-07-22 06:14 GMT
सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने शैक्षणिक संस्थानों के पास खुली सिगरेट बेचने पर रोक लगाने और सिगरेट पीने की उम्र 18 से बढ़ाकर 21 करने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया है।

कोर्ट ने कहा,

"आप पब्लिसिटी चाहते हैं तो अच्छा केस लाइए, अच्छे से जिरह करें। केवल पब्लिसिटी के लिए ऐसी याचिका दाखिल न करें।"

यह याचिका भारत में किशोरों और युवा आबादी के बीच बढ़ती सिगरेट के साथ भारत में धूम्रपान को नियंत्रित करने के लिए दिशा-निर्देश की मांग करते हुए एडवोकेट शुभम अवस्थी और ऋषि मिश्रा ने दायर की थी।

याचिका में केंद्र सरकार से परमादेश की प्रकृति में रिट या आदेश या निर्देश के माध्यम से वाणिज्यिक स्थानों और हवाई अड्डों से धूम्रपान क्षेत्रों को हटाने के लिए नए दिशानिर्देश तैयार करने, धूम्रपान की उम्र बढ़ाने, शैक्षणिक संस्थानों के पास खुली सिगरेट की बिक्री पर प्रतिबंध लगाने, स्वास्थ्य संस्थान और पूजा स्थल पर सिगरेट की बिक्री पर प्रतिबंध लगाने की प्रार्थना की गई थी।

याचिका में कहा गया था कि विशेष रूप से देश में सिगरेट जैसे उत्पाद नागरिकों के स्वास्थ्य के अधिकार को प्रभावित कर रहे हैं।

याचिका में आगे प्रस्तुत किया गया था कि 2018 में, WHO ने भारत में तंबाकू के सेवन की व्यापकता पर अपनी फैक्टशीट जारी की। यह है भारत में युवा आबादी को कार्डियो-वैस्कुलर रोगों और तंबाकू की बढ़ती संभावना के लिए उद्धृत किया गया है, जिसमें सिगरेट एक प्रमुख योगदानकर्ता है जो भारत में 9 मिलियन लोगों या भारत में सभी मौतों का 9.5% लोगों की मौत का जिम्मेदार है।

याचिकाकर्ती ने जर्नल ऑफ निकोटीन एंड टोबैको रिसर्च में प्रकाशित एक अध्ययन का उल्लेख करते हुए कहा है कि भारत सेकेंड हैंड स्मोक एक्सपोजर के गंभीर आर्थिक बोझ झेल रहा है। अध्ययन से पता चला है कि सेकेंड हैंड धुएं के कारण स्वास्थ्य देखभाल में सालाना 567 अरब रुपए खर्च होता है। यह कुल वार्षिक स्वास्थ्य देखभाल व्यय का आठ प्रतिशत है।

याचिका में धूम्रपान के अनुचित प्रभाव का उल्लेख करते हुए कहा गया था कि धूम्रपान न केवल फेफड़ों को प्रभावित करता है बल्कि दृष्टि हानि का कारण बनता है। भारत जैसे देश में जहां अंधेपन की सबसे अधिक आबादी है, जिसे रोका जा सकता था, यह गंभीर चिंता का विषय है।


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