सुप्रीम कोर्ट ने मिलावटी आयुर्वेदिक दवाओं के खिलाफ जनहित याचिका पर सुनवाई से इनकार किया
सुप्रीम कोर्ट ने देश भर में आयुर्वेदिक दवाओं में मिलावट को चुनौती देने वाली जनहित याचिका (पीआईएल) पर विचार करने से इनकार कर दिया।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ के समक्ष यह मामला सूचीबद्ध किया गया था।
जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा भी इस पीठ में शामिल थे।
यह देखते हुए कि दवाओं में मिलावट गैरकानूनी है, पीठ ने टिप्पणी की कि वह इस तरह की रिट पर विचार नहीं कर सकती।
सीजेआई ने इस मामले में राहत देने की व्यावहारिकता पर सवाल उठाते हुए कहा,
"हम इस तरह की रिट में राहत कैसे दे सकते हैं? कौन दावा करता है कि मिलावटी दवाएं स्वीकार्य हैं? हालांकि, हम इन पर रिट जारी नहीं कर सकते।"
सीजेआई ने कहा कि केंद्र सरकार और राज्य सरकारों ने आयुर्वेदिक दवाओं की खरीदारी की और वे कानून के अनुसार प्रसारित होने वाली किसी भी मिलावटी दवा के खिलाफ कार्रवाई करेंगे।
अदालत ने आगे कहा कि यदि किसी विशिष्ट निर्माता के खिलाफ कोई शिकायत है तो उचित उपाय उक्त निर्माता के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करना है, न कि इस प्रकृति की जनहित याचिका दायर करना।
सीजेआई ने कहा कि दवाओं में मिलावट को रोकने के लिए व्यवस्थित बदलाव के लिए कोई भी सुझाव सरकार या सक्षम प्राधिकारी को भेजा जा सकता है।
सीनियर एडवोकेट सलमान खुर्शीद ने प्रस्तुत किया,
"अगर यह अदालत अनुमति देती है तो हम ड्रग कंट्रोलर के पास अभ्यावेदन दायर कर सकते हैं।"
ड्रग कंट्रोलर के पास अभ्यावेदन दायर करने के सीनियर वकील खुर्शीद के प्रस्ताव के जवाब में सीजेआई ने टिप्पणी की,
"याचिकाकर्ता को सक्षम प्राधिकारी के समक्ष उपचार की मांग करनी चाहिए। हम याचिका खारिज करते हैं।"
केस टाइटल: विष्णु कुमार बनाम भारत संघ एवं अन्य। [डायरी नं.-46425-2023]