असम पुलिस की FIR मामले में पत्रकार अभिसार शर्मा को आंशिक राहत, सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट जाने को कहा
सुप्रीम कोर्ट ने पत्रकार और यूट्यूबर अभिसार शर्मा की उस चुनौती पर विचार करने से इनकार किया, जिसमें उन्होंने असम पुलिस द्वारा भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 152 के तहत दर्ज FIR को चुनौती दी थी। उनके वीडियो में राज्य सरकार की 'सांप्रदायिक राजनीति' की आलोचना की गई थी और एक निजी संस्था को 3000 बीघा ज़मीन आवंटित करने पर सवाल उठा थे।
हालांकि, कोर्ट ने उन्हें उचित राहत के लिए गुवाहाटी हाईकोर्ट जाने के लिए 4 हफ़्तों की अंतरिम सुरक्षा प्रदान की। कोर्ट ने शर्मा द्वारा BNS की धारा 152 की वैधता को चुनौती देने पर भी नोटिस जारी किया और इस मामले को एक समान मामले के साथ जोड़ दिया।
जस्टिस एमएम सुंदरेश और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की खंडपीठ ने सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल (शर्मा की ओर से) की दलीलें सुनने के बाद यह आदेश पारित किया। सिब्बल ने दावा किया कि BNS की धारा 152 एक "सर्वव्यापी" प्रावधान बन गया है, जिसका इस्तेमाल किसी के भी खिलाफ किया जा रहा है।
हालांकि, खंडपीठ ने पूछा कि शर्मा हाईकोर्ट क्यों नहीं जा सकते? इस पर सिब्बल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट पहले ही इसी तरह के एक मामले (द वायर के संपादक सिद्धार्थ वरदराजन और करण थापर का मामला) में हस्तक्षेप कर चुका है। खंडपीठ फिर भी नहीं मानी तो सिब्बल ने ज़ोर देकर कहा कि शर्मा को हाईकोर्ट में भेजना उचित नहीं होगा और इसमें कुछ "एकरूपता" होनी चाहिए।
सिब्बल ने कहा,
"यह उचित नहीं है... पत्रकार ने क्या किया है? यह न्यायालय इस मामले को देख रहा है... इसमें कुछ एकरूपता होनी चाहिए। वे एक और FIR दर्ज करेंगे, फिर मैं क्या करूंगा? ऐसा मत कीजिए। समाज इस न्यायालय की ओर देखता है, कृपया ऐसा मत कीजिए।"
हालांकि, खंडपीठ ने असम पुलिस की FIR को चुनौती देने से इनकार किया और शर्मा को हाईकोर्ट जाने के लिए अंतरिम संरक्षण प्रदान किया।
संक्षेप में मामला
उक्त वीडियो में शर्मा ने गुवाहाटी हाईकोर्ट के एक मामले के बारे में बात की थी, जहां दीमा हसाओ क्षेत्र में खनन के उद्देश्य से निजी सीमेंट कंपनी (महाबल सीमेंट्स) को 3000 बीघा भूमि आवंटन के बारे में असम सरकार से पूछताछ की गई थी। इस संदर्भ में, शर्मा ने आरोप लगाया कि असम सरकार ने अडानी समूह को 9000 बीघा ज़मीन दी। साथ ही उन्होंने असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा पर अडानी समूह को प्राथमिकता देने और सांप्रदायिक राजनीति में लिप्त होने का आरोप लगाया।
बताया गया कि शर्मा पर भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) की धारा 152 (राष्ट्र की संप्रभुता को खतरे में डालना), 196 (विभिन्न समूहों के बीच शत्रुता को बढ़ावा देना) और 197 (राष्ट्रीय एकता और सुरक्षा के लिए हानिकारक आरोप) के तहत मामला दर्ज किया गया।
शिकायतकर्ता आलोक बरुआ हैं, जिन्होंने आरोप लगाया कि शर्मा की टिप्पणी से सांप्रदायिक भावनाएं भड़कीं और राज्य के अधिकारियों के प्रति अविश्वास की भावना पैदा हुई।
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट वर्तमान में BNS की धारा 152 को चुनौती देने वाली एक याचिका पर सुनवाई कर रहा है। हाल ही में इसने ऑनलाइन समाचार पोर्टल-द वायर के संस्थापक संपादक सिद्धार्थ वरदराजन और सलाहकार संपादक-करण थापर को असम पुलिस द्वारा BNS की धारा 152 के तहत दर्ज FIR में गिरफ्तारी से अंतरिम संरक्षण भी प्रदान किया।
Case Title: ABHISAR SHARMA Versus UNION OF INDIA AND ORS., W.P.(Crl.) No. 338/2025