"चौंकाने वाला और आश्चर्यजनक" : सुप्रीम कोर्ट ने रद्द की गई आईटी एक्ट की धारा 66 के इस्तेमाल पर कहा, केंद्र को नोटिस

Update: 2021-07-05 07:13 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66 ए के तहत पुलिस द्वारा प्राथमिकी दर्ज करने की प्रथा पर आश्चर्य व्यक्त किया, जिसे शीर्ष अदालत ने श्रेया सिंघल मामले में 2015 के फैसले में रद्द कर दिया था।

न्यायमूर्ति आरएफ नरीमन की अध्यक्षता वाली पीठ पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) द्वारा दायर उस आवेदन पर सुनवाई कर रही थी जिसमें धारा 66ए के रद्द किए गए प्रावधान के तहत प्राथमिकी के खिलाफ विभिन्न दिशा-निर्देश मांगे गए थे।

न्यायमूर्ति नरीमन ने याचिका पर विचार करते ही कहा,

"अद्भुत। मैं बस इतना ही कह सकता हूं। श्रेया सिंघल 2015 का फैसला है। जो चल रहा है वह भयानक है।"

याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता संजय पारिख ने कहा कि प्रावधान समाप्त होने के बाद भी, देश भर में हजार से अधिक मामले दर्ज किए गए हैं।

न्यायमूर्ति नरीमन ने कहा,

"यह चौंकाने वाला है। हम नोटिस जारी कर रहे हैं।"

भारत के अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि भले ही खंडपीठ ने प्रावधान को रद्द कर दिया हो, लेकिन यह अभी भी कार्य में है। केवल फुटनोट में उल्लेख किया गया है कि सुप्रीम कोर्ट ने इसे रद्द कर दिया है। एजी ने सुझाव दिया कि कोष्ठक में इसका उल्लेख किया जाना चाहिए कि धारा को हटा दिया गया है।

न्यायमूर्ति नरीमन ने भारत सरकार से जवाबी हलफनामा दाखिल करने को कहा और मामले को 2 हफ्ते बाद सूचीबद्ध कर दिया।

पीयूसीएल ने श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा रद्द की गई आईटी अधिनियम की धारा 66 ए का हवाला देते हुए दर्ज सभी प्राथमिकी का डेटा एकत्र करने के लिए भारत संघ को निर्देश देने को भी कहा है।

एनजीओ ने एनसीआरबी या किसी अन्य एजेंसी के माध्यम से भारत संघ को निर्देश देने की मांग की है कि एफआईआर और जांच के संबंध में सभी डेटा और जानकारी एकत्र करें जहां धारा 66 ए लागू की गई है।

इसके अलावा, देश भर के जिला न्यायालयों और उच्च न्यायालयों में लंबित मामलों का डेटा भी मांगा गया है, जहां श्रेया सिंघल के मामले में निर्णय के उल्लंघन में धारा 66 ए के तहत कार्यवाही जारी है।

याचिका में सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री को निर्देश देने की मांग की गई है कि वह श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ के फैसले का संज्ञान लेने के लिए देश भर के सभी जिला न्यायालयों से संवाद करे, जहां आरोप तय करने या उसके बाद कार्यवाही में धारा 66 ए लागू की गई है, ताकि किसी भी व्यक्ति को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उसके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करने वाले किसी भी प्रतिकूल परिणाम का सामना न करना पड़े।

इसके अलावा, सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री को निर्देश देने की मांग की गई है कि वह सभी उच्च न्यायालयों (अपने रजिस्ट्रार के माध्यम से) को धारा 66ए के तहत विभिन्न चरणों में लंबित मामलों के संबंध में अपने अधिकार क्षेत्र के सभी जिला न्यायालयों से जानकारी एकत्र करने और शेष मामलों के लिए श्रेया सिंघल मामले में शीर्ष अदालत के फैसले का अनुपालन के लिए निर्देश जारी करने के लिए सूचित करे।

अधिवक्ता अपर्णा भट के माध्यम से दायर की गई और वरिष्ठ अधिवक्ता संजय पारिख द्वारा तैयार की गई याचिका में भारत के गृह मंत्रालय के माध्यम से सभी पुलिस स्टेशनों को रद्द की गई प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66 ए के तहत मामले दर्ज नहीं करने के लिए एक सलाह जारी करने का निर्देश देने की भी मांग की गई है।

इसके अलावा, याचिकाकर्ता ने भारत संघ को सभी प्रमुख समाचार पत्रों, अंग्रेजी और आधिकारिक स्थानीय भाषा में प्रकाशित करने के लिए निर्देश देने की मांग की है, जिसमें आम जनता को सूचित किया जाए कि न्यायालय द्वारा सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66 ए को रद्द कर दिया गया है, अब ये कानून नहीं है।

श्रेया सिंघल का फैसला न्यायमूर्ति जे चेलामेश्वर और न्यायमूर्ति आरएफ नरीमन की पीठ ने संविधान के अनुच्छेद 14 और 19 (1) (ए) के उल्लंघन के रूप में धारा 66 ए को खारिज करते हुए दिया था। न्यायमूर्ति नरीमन द्वारा लिखे गए फैसले ने प्रावधान को अस्पष्ट और अतिशयोक्तिपूर्ण बताया।

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