दिल्ली में नर्सरी स्कूल प्रवेश के लिए स्क्रीनिंग प्रक्रिया पर प्रतिबंध लगाने के लिए कानून बनाने की मांग, सुप्रीम कोर्ट में याचिका

Update: 2023-09-20 05:46 GMT

एक नागरिक अधिकार समूह 'सोशल ज्यूरिस्ट' ने दिल्ली स्कूल शिक्षा (संशोधन) विधेयक, 2015 को अंतिम रूप देने में तेजी लाने के लिए दायर जनहित याचिका (पीआईएल) को खारिज करने के दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। इस बिल में प्री प्रायमरी स्तर पर बच्चों के प्रवेश में स्क्रीनिंग प्रक्रिया कीप्रतिबंध लगाने का प्रावधान है।

याचिका में तर्क दिया गया है कि भले ही विधेयक 2015 में तैयार किया गया था, लेकिन इसे अभी तक पारित नहीं किया गया है। याचिका में कहा गया है कि बिल पास होने में देरी इसलिए हो रही है क्योंकि यह केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार के बीच लटका हुआ है। याचिका में दलील दी गई है कि देरी बच्चों के हित के खिलाफ है।

दिल्ली हाईकोर्ट ने जुलाई 2023 में जनहित याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि अदालत विधायी प्रक्रिया में हस्तक्षेप नहीं कर सकती।

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा था,

“इस न्यायालय के लिए राज्यपाल को किसी भी प्रकार की रिट जारी करना और किसी भी समय सीमा के भीतर किसी विधेयक को स्वीकार करना या अस्वीकार करना, विधायी प्रक्रिया में हस्तक्षेप करना उचित नहीं है। भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करते हुए हाईकोर्ट के लिए यह उचित नहीं है कि वह राज्यपाल को, जो एक संवैधानिक प्राधिकारी है, उन मामलों में समय सीमा निर्धारित करने का निर्देश दे जो पूरी तरह से राज्यपाल के अधिकार क्षेत्र में आते हैं।

इस न्यायालय की सुविचारित राय में भले ही विधेयक सदन द्वारा पारित कर दिया गया हो, यह राज्यपाल के लिए हमेशा सहमत होने या विधेयक को सदन में वापस भेजने के लिए खुला है और इस न्यायालय को निर्देश देने वाला परमादेश रिट पारित नहीं करना चाहिए। राज्यपाल एक रिट पारित करके कार्रवाई करें।”

याचिकाकर्ता ने बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 के प्रावधानों पर भरोसा करते हुए तर्क दिया कि अधिनियम के प्रावधानों को लागू करने के लिए विधेयक आवश्यक है।

याचिकाकर्ता ने कहा है कि विधेयक का इरादा यह सुनिश्चित करना है कि प्रवेश के मामले में बच्चों के बीच कोई भेदभाव न हो और यह शिक्षा के व्यावसायीकरण को रोकने का भी एक प्रयास है। याचिकाकर्ता का तर्क है कि 7 साल की अनुचित देरी जनहित के खिलाफ है।

केस टाइटल : सोशल ज्यूरिस्ट, सिविल राइट्स ग्रुप बनाम दिल्ली सरकार, एनसीटी

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