न्याय तक पहुंच को सशक्त करता है: सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट की कोल्हापुर बेंच के गठन को चुनौती देने वाली याचिका खारिज की
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को बॉम्बे हाईकोर्ट की कोल्हापुर सर्किट बेंच के गठन को चुनौती देने वाली याचिका खारिज की।
यह याचिका एडवोकेट रंजीत बाबुराव निम्बालकर द्वारा दायर की गई थी, जिसमें 1 अगस्त को जारी उस अधिसूचना को चुनौती दी गई, जिसके तहत राज्यों के पुनर्गठन अधिनियम 1956 की धारा 51(3) के अंतर्गत कोल्हापुर सर्किट बेंच का गठन किया गया था। यह बेंच 18 अगस्त से प्रभावी हुई थी।
जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस एनवी अंजारिया की पीठ ने कहा कि कोल्हापुर बेंच की स्थापना सभी के लिए न्याय को सुलभ कराने की संवैधानिक दृष्टि के अनुरूप है।
पीठ ने स्पष्ट किया कि धारा 51(3) के तहत चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया को निर्णय लेने की शक्ति संरक्षित है। ऐसा कोई ठोस सामग्री रिकॉर्ड पर नहीं है, जिससे यह संकेत मिले कि चीफ जस्टिस ने संस्थागत परामर्श और प्रासंगिक विचारों की अनदेखी करते हुए एकतरफा निर्णय लिया हो।
अदालत ने कहा कि भले ही परामर्श की प्रक्रिया याचिकाकर्ता की अपेक्षाओं के अनुरूप न हो मात्र इसी आधार पर धारा 51(3) के तहत शक्ति के प्रयोग को अवैध नहीं ठहराया जा सकता।
जस्टिस अरविंद कुमार द्वारा लिखित निर्णय में यह भी कहा गया कि अतीत में कोल्हापुर बेंच के गठन को लेकर कोई भिन्न दृष्टिकोण अपनाया गया हो तो भी जब तक दुर्भावना या स्पष्ट अवैधता साबित न हो वर्तमान निर्णय को अमान्य नहीं किया जा सकता।
पीठ ने कहा कि यह निर्णय विधिक अधिकार क्षेत्र के भीतर, प्रामाणिक और वैध संस्थागत कारणों से लिया गया, इसलिए इसमें न्यायिक हस्तक्षेप का कोई आधार नहीं बनता।
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि संसाधनों के वैकल्पिक उपयोग को लेकर अलग नीति दृष्टिकोण हो सकता है लेकिन केवल इसी आधार पर वैधानिक अधिकार के तहत लिए गए निर्णय को निरस्त नहीं किया जा सकता।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोल्हापुर बेंच की स्थापना अनुच्छेद 21 का किसी भी प्रकार से उल्लंघन नहीं करती बल्कि यह उन क्षेत्रों के वादकारियों के लिए न्याय तक पहुंच को आसान बनाती है, जो भौगोलिक रूप से बॉम्बे हाईकोर्ट की प्रधान पीठ से दूर हैं।
अदालत ने यह भी कहा कि संविधान न्यायिक प्रशासन के लिए किसी एकल मॉडल की परिकल्पना नहीं करता बल्कि कानून के ढांचे के भीतर व्यावहारिक और भौगोलिक जरूरतों को पूरा करने के लिए संस्थागत विवेक की अनुमति देता है।
उल्लेखनीय है कि कोल्हापुर बेंच का उद्घाटन अगस्त में तत्कालीन भारत के चीफ जस्टिस बीआर गवई ने किया था।
याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में जसवंत सिंह आयोग की 1985 की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि हाईकोर्ट की प्रधान पीठ से दूर बेंचों की स्थापना अपवाद होनी चाहिए, न कि सामान्य नियम।
उन्होंने यह भी तर्क दिया कि संबंधित क्षेत्र से आने वाले मामलों का अनुपात, निस्तारण दर और न्यायाधीशों की संख्या बढ़ाने जैसे विकल्पों पर पर्याप्त विचार नहीं किया गया।
इसके अलावा याचिकाकर्ता ने Federation of Bar Associations बनाम Union of India (2000) के फैसले का उल्लेख करते हुए कहा कि धारा 51(3) के तहत निर्णय लेते समय हाईकोर्ट के अन्य जजों से परामर्श आवश्यक है जबकि इस मामले में परामर्श प्रक्रिया को लेकर कोई स्पष्ट जानकारी सामने नहीं आई।
हालांकि सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने याचिकाकर्ता की लोकस स्टैंडी पर सवाल उठाया और कोल्हापुर सर्किट बेंच के गठन के पक्ष में राज्य सरकार और बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा अपनाए गए कारणों को विस्तार से रखा था।
उन्होंने बॉम्बे हाईकोर्ट के उस हलफनामे का भी उल्लेख किया, जिसमें कहा गया कि कोल्हापुर बेंच की स्थापना के लिए कई प्रतिनिधित्व प्राप्त हुए थे।
सभी दलीलों पर विचार करने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को खारिज करते हुए कोल्हापुर बेंच के गठन को वैध और संवैधानिक करार दिया।