चार साल से आरोप तय न होना चौंकाने वाला: सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र कोर्ट और प्रशासन पर जताई कड़ी नाराजगी
सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र कोर्ट द्वारा पिछले चार वर्षों से एक आरोपी के खिलाफ आरोप तय न किए जाने पर तीखी नाराजगी व्यक्त की है। अदालत ने कहा कि यह स्थिति चौंकाने वाली है और राज्य प्रशासन की निष्क्रियता पर गंभीर सवाल उठाती है।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला उस आरोपी से जुड़ा है, जो चार वर्षों से जेल में बंद है, जबकि मुकदमे में आरोप तय तक नहीं किए गए हैं। महाराष्ट्र सरकार की ओर से यह दलील दी गई कि मुकदमे में देरी सह-आरोपियों की टालमटोल भरी रणनीति के कारण हुई।
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इस तर्क को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि जब सह-आरोपी जमानत पर बाहर हैं तो उनकी अनुपस्थिति के कारण किसी अन्य आरोपी को इतने लंबे समय तक जेल में रखना न्यायोचित नहीं ठहराया जा सकता।
सुप्रीम कोर्ट की कड़ी टिप्पणी
जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और जस्टिस पी.के. मिश्रा की खंडपीठ ने कहा कि आरोपपत्र वर्ष 2022 में दाखिल किया जा चुका है। फिर भी चार वर्षों से मुकदमे की प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ना अस्वीकार्य है।
अदालत ने संबंधित पुलिस अधीक्षक से पूछा कि ऐसी स्थिति क्यों बनी और अभियोजन पक्ष ने अब तक सह-आरोपियों की जमानत रद्द करने के लिए कोई आवेदन क्यों नहीं दायर किया।
न्यायालय ने ट्रायल कोर्ट से भी रिपोर्ट तलब करते हुए कहा,
“यह समझ से परे है कि ट्रायल कोर्ट ने यह सुनिश्चित क्यों नहीं किया कि जमानत पर बाहर सह-आरोपी अदालत में उपस्थित हों, जबकि एक आरोपी चार वर्षों से हिरासत में है।”
संभावित मिलीभगत पर सुप्रीम कोर्ट का संकेत
अदालत ने यह भी कहा कि प्रथम दृष्टया ऐसा प्रतीत होता है कि अभियोजन पक्ष और सह-आरोपियों के बीच मिलीभगत हो सकती है।
“यह तथ्य कि अभियोजन ने सह-आरोपियों की जमानत रद्द करने का कोई प्रयास नहीं किया जबकि उन्हीं को मुकदमे में देरी के लिए जिम्मेदार ठहराया जा रहा है, संदेह उत्पन्न करता है कि अभियोजन और आरोपी के बीच कोई सांठगांठ हो सकती है।”
कड़ी चेतावनी और आगे की कार्यवाही
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट चेतावनी दी है कि यदि राज्य और ट्रायल कोर्ट के स्पष्टीकरण असंतोषजनक पाए गए तो अदालत इस मामले में कड़ा रुख अपनाएगी।
मामला अब अगली सुनवाई के लिए 2 दिसंबर को सूचीबद्ध किया गया है।