सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस एमआर शाह ने संजीव भट्ट की याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग करने से इनकार किया

Update: 2023-02-27 13:49 GMT

सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस एमआर शाह ने सोमवार को यह स्पष्ट कर दिया कि वह पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट द्वारा 1990 के हिरासत में मौत के मामले में भट्ट को दोषी ठहराए जाने के फैसले को चुनौती देने वाली गुजरात हाईकोर्ट में दायर आपराधिक अपील में अतिरिक्त साक्ष्य जोड़ने की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग नहीं करेंगे।

जस्टिस एमआर शाह और जस्टिससीटी रविकुमार की खंडपीठ ने याचिकाकर्ता के वकील ने उनके द्वारा प्रसारित पत्र के संदर्भ में स्थगन की मांग करने पर अवगत कराया कि खंडपीठ ने स्थगन पत्र को खारिज कर दिया है और जस्टिस शाह मामले की सुनवाई से पीछे नहीं हटेंगे।

जस्टिस एमआर शाह ने वकील से पूछा,

"10 साल पहले कुछ आदेश पारित किया गया था, क्या वह कोई आधार हो सकता है (सुनवाई से अलग होने की मांग के लिए) ?"।

सुनवाई से अलग होने की मांग इस आधार पर की गई थी कि जस्टिस एमआर शाह जब गुजरात हाईकोर्ट के न्यायाधीश थे, तब उन्होंने इस मामले के कुछ मुद्दों पर विचार किया था।

गुजरात राज्य की ओर से सीनियर एडवोकेट आत्माराम नाडकर्णी ने भी संकेत दिया कि राज्य ने याचिकाकर्ता द्वारा प्रसारित पत्र का विरोध किया है।

गुजरात के जामनगर में जुलाई 2019 में सत्र न्यायालय ने भट्ट को 1990 में एक प्रभुदास माधवजी वैष्णानी की हिरासत में मौत के लिए दोषी पाते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। ट्रायल कोर्ट के समक्ष अपने तर्क का समर्थन करने के लिए कि प्रभुदास की मौत पुलिस द्वारा करवाई गई कथित उठक-बैठक के कारण नहीं हुई थी, उन्होंने डॉक्टर के विशेषज्ञ साक्ष्य पेश करने के लिए एक आवेदन दायर किया था। इस आवेदन को ट्रायल कोर्ट ने खारिज कर दिया था। गुजरात हाईकोर्ट के समक्ष आपराधिक अपील में भट्ट ने सीआरपीसी की धारा 391 के तहत एक आवेदन दायर किया जिसमें विशेषज्ञ सबूत पेश करने की मांग की गई थी। 24.08.2022 को आवेदन खारिज कर दिया गया। इसी को अब सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है।

भट्ट ने अप्रैल 2011 में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी पर 2002 के दंगों में मिलीभगत का आरोप लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर किया था। उन्होंने सांप्रदायिक दंगों के दिन 27 फरवरी, 2002 को तत्कालीन मुख्यमंत्री मोदी द्वारा बुलाई गई एक बैठक में भाग लेने का दावा किया, जब कथित तौर पर राज्य पुलिस को हिंसा के अपराधियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करने के निर्देश दिए गए थे।

कोर्ट द्वारा गठित एसआईटी ने हालांकि मोदी को क्लीन चिट दे दी। 2015 में भट्ट को "अनधिकृत अनुपस्थिति" के आधार पर पुलिस सेवा से हटा दिया गया था।

अक्टूबर 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार द्वारा उनके खिलाफ दायर मामलों के लिए एक विशेष जांच दल (एसआईटी) गठित करने की भट्ट की याचिका को खारिज कर दिया।

[केस टाइटल : संजीव कुमार राजेंद्रभाई भट्ट बनाम गुजरात राज्य एसएलपी(सीआरएल) नंबर 9445/2022]

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