नेशनल कमीशन फॉर अलाइड एंड हेल्थकेयर प्रोफेशन एक्ट लागू करने की मेडिकल टेक्नोलॉजिस्ट की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी किया

Update: 2023-09-23 05:44 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को जनहित याचिका (पीआईएल) में नोटिस जारी किया। इस याचिका में राष्ट्रीय संबद्ध और स्वास्थ्य देखभाल व्यवसाय आयोग अधिनियम, 2021 के कार्यान्वयन की मांग की गई।

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की खंडपीठ के समक्ष जनहित याचिका को सूचीबद्ध किया गया। याचिका में विशेष रूप से एक्ट की धारा 22(1) के कार्यान्वयन की मांग की गई है, जो पेशेवर परिषदों और राज्य संबद्ध और स्वास्थ्य देखभाल परिषदों की स्थापना का प्रावधान करता है।

खंडपीठ ने जनहित याचिका पर नोटिस जारी करते हुए कहा कि उठाया गया मुद्दा महत्वपूर्ण है।

सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने आदेश सुनाते हुए कहा,

"नोटिस जारी करें। 3 सप्ताह में वापस किया जा सकता है। इसके अलावा केंद्रीय एजेंसी को सेवा देने की स्वतंत्रता है। हम अटॉर्नी जनरल से इस न्यायालय की सहायता के लिए किसी एडिशनल सॉलिसिटर जनरल को नियुक्त करने का अनुरोध करते हैं, क्योंकि याचिका राष्ट्रीय संबद्ध आयोग के प्रावधानों और स्वास्थ्य देखभाल व्यवसाय अधिनियम, 2021 के अनुपालन न करने से संबंधित है।"

याचिकाकर्ता की ओर से सीनियर एडवोकेट गोपाल शंकरनारायणन उपस्थित हुए।

यह जनहित याचिका ज्वाइंट फोरम ऑफ मेडिकल टेक्नोलॉजिस्ट ऑफ इंडिया (JFMTI) द्वारा दायर की गई। इसमें दावा किया गया कि भले ही एनसीएएचपी एक्ट 25 मई, 2021 को लागू हुआ। मगर दो साल बाद भी इसके प्रावधानों को लागू नहीं किया गया। याचिकाकर्ताओं के अनुसार, प्रारंभिक समयसीमा के अनुसार, राज्य काउंसिल्स का गठन छह महीने के भीतर किया जाना चाहिए। हालांकि, केंद्र सरकार ने इसके कार्यान्वयन के लिए समय-सीमा को बार-बार बढ़ाया और पांच ऐसे विस्तार दिए, जिसके कारण अधिनियम अभी भी लागू नहीं हो सका।

जनहित याचिका में तर्क दिया गया,

"एनसीएएचपी एक्ट के प्रावधानों को लागू करने के बजाय केंद्र सरकार ने एनसीएएचपी एक्ट के उक्त प्रावधानों को लागू करने की समय-सीमा हर छह महीने के बाद बढ़ा दी है और अब तक ऐसे पांच विस्तार हो चुके हैं।"

इसके अलावा, जनहित याचिका में कहा गया कि मान्यता प्राप्त संस्थानों से डिग्री और डिप्लोमा प्रमाणित करने के लिए संस्थागत ढांचे की अनुपस्थिति ने नौकरी के अवसरों में बाधा उत्पन्न की है। इस प्रकार, कोर्स, शिक्षण स्टाफ और संस्थानों को मानकीकृत करने की आवश्यकता स्पष्ट हो गई है। यही कारण है कि पहले से अनियमित श्रेणियों के लिए मानक निर्धारित करने के लिए काउंसिल की स्थापना का प्रस्ताव आया।

जनहित याचिका में कहा गया,

"भारतीय स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में स्वास्थ्य कार्यबल को डॉक्टरों, नर्सों और फ्रंटलाइन कार्यकर्ताओं जैसे कुछ संवर्गों तक सीमित फोकस के साथ परिभाषित किया गया है, जिसमें कई अन्य स्वास्थ्य देखभाल पेशेवर, जो संबद्ध स्वास्थ्य पेशेवर हैं, इन वर्षों में अज्ञात, अनियमित और कम उपयोग किए गए हैं। इसकी लगातार मांग बनी हुई है। ऐसे व्यवसायों के उचित विनियमन और मानकीकरण को सुनिश्चित करने के लिए एक नियामक ढांचा कई दशकों से देखा जा रहा है।"

यह याचिका एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड जॉबी पी वर्गीस द्वारा वकील उपमन्यु शर्मा की सहायता से दायर की गई।

उल्लेखनीय है कि इसी तरह की याचिका 2021 में भी दायर की गई थी। उक्त याचिका में आम लोगों, विशेष रूप से ग्रामीण लोगों को आधुनिक मेडिकल डॉक्टरों और ग्रामीण/प्राइवेट मेडिकल व्यवसायी (इंडियन मेडिकल काउंसिल के तहत रजिस्टर्ड मेडिकल प्रैक्टिशनर्स) के बीच अंतर करने में सक्षम बनाने के लिए उनके कार्य के कार्यान्वयन की मांग की गई थी।

केस टाइटल: ज्वाइंट फोरम ऑफ मेडिकल टेक्नोलॉजिस्ट ऑफ इंडिया (जेएफएमटीआई) एवं अन्य बनाम भारत संघ एवं अन्य। [डब्ल्यू.पी.(सी) नंबर 983/2023]

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