सुप्रीम कोर्ट ने उड़ीसा हाईकोर्ट की विभिन्न पीठों के समक्ष एक ही एफआईआर से उत्पन्न जमानत अर्जियों की लिस्टिंग पर चिंता व्यक्त की
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में उड़ीसा हाईकोर्ट में प्रचलित प्रथा पर चिंता व्यक्त की, जिसके तहत एक ही एफआईआर से उत्पन्न होने वाली विभिन्न जमानत याचिकाएं हाईकोर्ट की विभिन्न पीठों के समक्ष लिस्टिंग की जाती हैं।
न्यायालय ने कहा कि इस तरह की प्रथा 'विषम स्थिति' की ओर ले जाती है, क्योंकि कुछ अभियुक्तों को एक खंडपीठ द्वारा जमानत दी जा सकती है, जबकि कुछ अन्य अभियुक्त व्यक्तियों (उसी अपराध में) को अलग पीठ द्वारा जमानत से वंचित किया जा सकता है, भले ही उन सभी को कई मामलों में समान रूप से रखा गया हो।
जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस संजय करोल की खंडपीठ जमानत से इनकार के खिलाफ आरोपी की अपील पर सुनवाई कर रही थी। मामलों की पेपर-बुक को देखने के दौरान, न्यायालय ने पाया कि विभिन्न अभियुक्तों द्वारा अलग-अलग आवेदन हाईकोर्टट की विभिन्न बेंचों के समक्ष रखे गए हैं।
इस प्रकार, यह देखा गया,
"कई हाईकोर्ट में प्रथा का पालन किया जाता है कि एक ही एफआईआर से उत्पन्न होने वाले आवेदनों को न्यायाधीश के समक्ष रखा जाना चाहिए। हालांकि, ऐसा प्रतीत होता है कि उड़ीसा हाईकोर्ट में यह प्रथा नहीं है। वर्तमान मामले में हमने एक ही एफआईआर से उत्पन्न विभिन्न अभियुक्तों के आवेदनों में कम से कम तीन अलग-अलग न्यायाधीशों द्वारा पारित आदेशों को देखा है।”
तदनुसार, इसने विवादित आदेश रद्द कर दिया और मामले को हाईकोर्ट वापस भेज दिया और अन्य समन्वय पीठों द्वारा पारित आदेशों के प्रभावों पर विचार करने के बाद नए सिरे से आदेश पारित करने का अनुरोध किया।
न्यायालय ने उड़ीसा हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल से उपरोक्त टिप्पणियों पर ध्यान देने और उचित आदेश पारित करने का भी अनुरोध किया, जिससे एक ही एफआईआर से उत्पन्न होने वाले विपरीत जमानत आदेशों से बचा जा सके।
केस टाइटल: प्रधानी जानी बनाम ओडिशा राज्य
केस नंबर : क्रिमिनल अपील नंबर 1503/2023
आदेश दिनांक: 15 मई, 2023
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