सुप्रीम कोर्ट ने सेना के अधिकारियों को विकलांगता पेंशन देने के खिलाफ अपील दायर करने के लिए केंद्र की आलोचना की
सुप्रीम कोर्ट ने सैन्य अधिकारियों को विकलांगता पेंशन देने के खिलाफ अपील दायर करने के लिए केंद्र सरकार की आलोचना की।
जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस बेला त्रिवेदी की पीठ ने एक सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट कर्नल की विकलांगता पेंशन से संबंधित मामले में सशस्त्र बल न्यायाधिकरण के एक निर्देश को चुनौती देने वाली केंद्र द्वारा दायर एक अपील को खारिज करते हुए महत्वपूर्ण टिप्पणियां कीं।
बेंच ने यूनियन ऑफ इंडिया बनाम पीयूष बहुगुणा की अपील को खारिज करते हुए कहा,
"हमें उस तरीके पर ध्यान देना चाहिए और अपनी नाराजगी व्यक्त करनी चाहिए, जिस तरह से अपीलकर्ता विकलांगता पेंशन के खिलाफ अपील दायर कर रहे हैं। यहां तक कि जहां कानूनी मुद्दा सुलझाया गया है।"
एएफटी (चंडीगढ़ बेंच) के 2018 के आदेश के खिलाफ अपील दायर की गई। इसने अधिकारी को उसकी विकलांगता पेंशन के विकलांगता तत्व को 20% के मुकाबले 50% की सीमा तक राउंड-ऑफ करने की अनुमति दी।
एएफटी ने भारत संघ बनाम राम अवतार (2014) में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद आदेश पारित किया। राम अवतार मामले में सुप्रीम कोर्ट ने माना कि विकलांगता का लाभ न केवल उन अधिकारियों को मिलता है जो सेवा से बाहर हो गए है, बल्कि उन अधिकारियों को भी जो कार्यकाल पूरा होने के बाद सेवानिवृत्त हो गए हैं। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि सभी ट्रिब्यूनल और हाईकोर्ट को संघ की अपील को खारिज करने पर ध्यान देना चाहिए।
अदालत ने कहा,
"इन मामलों को खारिज करने पर हाईकोर्ट के साथ-साथ ट्रिब्यूनल द्वारा उनके समक्ष पेंशनभोगियों को उचित राहत देने पर ध्यान दिया जाएगा, , जो विकलांगता पेंशन प्राप्त कर रहे हैं या हकदार हैं।"
केस टाइटल: यूनियन ऑफ इंडिया बनाम पीयूष बहुगुणा, डायरी नंबर 10713/2021
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