सुप्रीम कोर्ट ने जजों के ट्रांसफर के कॉलेजियम के प्रस्तावों पर बैठे रहने पर केंद्र की आलोचना की, कहा- 'इससे तीसरे पक्ष के हस्तक्षेप' का आभास होता है
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के न्यायाधीशों के तबादले के संबंध में कॉलेजियम द्वारा की गई दस सिफारिशों के केंद्र सरकार के पास लंबित रहने के मुद्दे पर शुक्रवार को कहा कि सरकार द्वारा इस तरह की देरी से यह धारणा बनती है कि इस मामले में 'तीसरे पक्ष का हस्तक्षेप' है।
जस्टिस कौल ने मौखिक रूप से भारत के अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणि को बताया,
"ट्रांसफर के लिए दस सिफारिशें की गई हैं। ये सितंबर के अंत और नवंबर के अंत में की गई हैं। इसमें सरकार की बहुत सीमित भूमिका है। उन्हें लंबित रखने से बहुत गलत संकेत जाता है। यह कॉलेजियम को अस्वीकार्य है।"
उल्लेखनीय है कि गुजरात , तेलंगाना और मद्रास के हाईकोर्ट के बार एसोसिएशन ने कुछ ट्रांसफर प्रस्तावों के खिलाफ विरोध शुरू किया था।
पीठ ने यह कहते हुए कि यह मामला काफी महत्वपूर्ण है, अपने आदेश में दर्ज किया कि,
"हाईकोर्ट के न्यायाधीशों का ट्रांसफर न्याय प्रशासन और अपवादों के हित में किया जाता है, इसे लागू करने में सरकार के पक्ष में किसी भी देरी का कोई कारण नहीं है।" कॉलेजियम न्यायाधीशों और उन हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों से परामर्श करता है और उनकी राय भी लेता है जहां से ट्रांसफर किया जा रहा है और जहां ट्रांसफर किया जाता है। स्थानांतरित न्यायाधीशों की टिप्पणियां भी प्राप्त की जाती हैं। कई बार, संबंधित न्यायाधीश के अनुरोध पर, स्थानांतरण के लिए वैकल्पिक अदालतें भी सौंपी जाती हैं।
सरकार को सिफारिश किए जाने से पहले यह प्रक्रिया पूरी की जाती है। इसमें देरी न केवल न्यायाधीशों के प्रशासन को प्रभावित करती है,लेकिन सरकार के साथ इन न्यायाधीशों की ओर से हस्तक्षेप करने वाले तीसरे पक्ष के स्रोतों का भी आभास करवाती है।"
जस्टिस एसके कौल और जस्टिस अभय एस ओक की पीठ कॉलेजियम की सिफारिशों पर कार्यवाही करने में केंद्र की देरी से संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी।
[केस टाइटल : एडवोकेट्स एसोसिएशन बेंगलुरु बनाम बरुण मित्रा और अन्य। टीपी(सी) नंबर 2419/2019 अवमानना याचिका (सी) नंबर 867/2021