हाथ से गटर साफ करने के लिए लोगों को नौकरी पर रखने पर आपराधिक कार्रवाई करने की मांग करने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई अगस्त तक स्थगित की

Update: 2021-03-23 15:51 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को अधिकारियों, एजेंसियों, ठेकेदारों या किसी अन्य व्यक्ति के हाथ से गटर साफ करने के लिए लोगों को नौकर पर रखने पर आपराधिक कार्रवाई करने की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई को अगस्त तक के लिए स्थगित कर दिया। पिछले दिनों हाथ से गटर साफ करने वाले (Manual Scavenger) कई लोगों की काम के दौरान मौत हो गई थी।

मुख्य न्यायाधीश बोबडे, जस्टिस बोपन्ना और जस्टिस रामसुब्रमण्यम की तीन जजों की बेंच "क्रिमिनल जस्टिस सोसाइटी ऑफ़ इंडिया" द्वारा दायर जनहित याचिका पर विचार कर रही थी, जिसमें सरकारों को यह निर्देश देने की मांग की गई है कि वे हाथ से गटर साफ करने वाले व्यक्तियों की वास्तविक संख्या को रिकॉर्ड में लाए। इसके साथ हाथ से गटर साफ करने के दौरान 1993 से अब तक कितने लोग मारे गए, ऐसे सभी मामलों में एफआईआर दर्ज की जा सकती है।

सुनवाई के दौरान अदालत के समक्ष प्रस्तुत याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील आशिमा मंडला ने कहा कि प्रत्येक 5 दिनों में हाथ से गटर साफ करने वाले की मृत्यु हो जाती है और उसी को राज्य सभा द्वारा प्रमाणित किया गया है।

अधिवक्ता मंडला ने आगे कहा कि वादों को पूरा नहीं किया गया है और फरवरी 2019 में नोटिस जारी किया गया। इसके अलावा 51 उत्तरदाता हैं और केवल 13 प्रतिवाद दायर किए गए हैं।

खंडपीठ ने कहा कि,

"हम लोगों को प्रतिवाद दायर करने के लिए मजबूर नहीं कर सकते हम उनके बिना आगे बढ़ेंगे। हम उन पर प्रतिकूल प्रभाव डालेंगे।"

मामले की अगली सुनवाई अगस्त के तीसरे सप्ताह में होगी।

भारत में 1993 में हाथ से गटर साफ करने की प्रथा को अवैध घोषित किए जाने के बावजूद हर पांच दिन में एक हाथ से गटर साफ करने वाले मेहतर की मौत हो रही है। याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसमें दोषी अधिकारियों के खिलाफ हत्या के लिए आपराधिक कार्यवाही शुरू करने की मांग की गई है। इसमें अधिकारियों, एजेंसियों, ठेकेदारों या किसी अन्य व्यक्ति शामिल हैं, जिनके कारण हाथ से गटर साफ करने वाले को उलझाने या नियोजित करने के परिणामस्वरूप काम पर उनकी मृत्यु हो गई।

याचिका में केंद्र, राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को निर्देश दिए जाने की मांग की गई है कि वे हाथ से गटर साफ करने के दौरान मारे गए लोगों की वास्तविक संख्या को रिकॉर्ड में लाएं, ताकि आईपीसी की धारा की धारा 304, 107/119 के तहत ऐसे सभी मामलों में एफआईआर दर्ज की जा सके।

इसके साथ ही याचिका में भारतीय रेलवे के मुख्य प्रभागीय कार्मिक अधिकारियों को अपनी संबंधित स्टेटस रिपोर्ट दर्ज करने के लिए दिशा-निर्देश देने की मांग की गई है, जिसमें 1993 के बाद से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से लगे या लगाए गए मैनुअल मैला ढोने वालों की संख्या को दर्शाया गया है। इसके अलावा राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को भी निर्देश दिया गया है। सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिव 1993 के बाद हुई मैन्युअल मेहतर मौतों को दर्शाते हुए एक रिपोर्ट प्रस्तुत की है।

अधिवक्ता फुजैल अहमद अय्युबी द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि मैनुअल मैला ढोने वालों के रूप में व्यक्तियों के रोजगार पर प्रतिबंध के बावजूद, यह सदियों पुरानी परंपरा जारी है। हाथ से गटर साफ करने वाले सीवेज और गड्ढों के संपर्क में आने से अमानवीय काम करने की स्थिति के अधीन किया जाता है; जिसमें किसी भी सुरक्षात्मक उपकरण के बिना उक्त मैला ढोने वाले को काम करने के लिए मजबूर किया जाता है।

याचिका में कानून और न्याय मंत्रालय, सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय, पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय, अनुसूचित जाति के लिए राष्ट्रीय आयोग, सफाई कर्मचारी राष्ट्रीय आयोग, भारतीय रेलवे और सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को शामिल किया गया है।

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