सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान सिविल जज उम्मीदवारों की कट-ऑफ डेट के बाद जाति प्रमाण पत्र जमा करने की याचिका खारिज की

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Update: 2025-04-08 11:24 GMT
सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान सिविल जज उम्मीदवारों की कट-ऑफ डेट के बाद जाति प्रमाण पत्र जमा करने की याचिका खारिज की

सुप्रीम कोर्ट की तीन-जजों की खंडपीठ ने आज सिविल जज के पद के लिए 5 उम्मीदवारों द्वारा दायर अपील को खारिज कर दिया, जिन्हें राजस्थान हाईकोर्ट ने इस आधार पर नियुक्ति से इनकार कर दिया था कि उन्होंने कट-ऑफ तारीख से परे श्रेणी प्रमाण पत्र प्रस्तुत किए थे।

जस्टिस अभय एस ओक, जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और जस्टिस एजी मसीह की खंडपीठ ने राजस्थान हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा।

फैसला सुनाते हुए जस्टिस एजी मसीह ने कहा कि बाद में बताई गई कट-ऑफ तारीख अदालत के अनुसार सही थी।

मामले की पृष्ठभूमि:

अन्य पिछड़ा वर्ग, अधिक पिछड़ा वर्ग और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग से संबंधित उम्मीदवार सिविल जज के पद के लिए योग्य हैं, लेकिन उन्हें संबंधित श्रेणी में नहीं माना गया क्योंकि उन्होंने नौकरी विज्ञापन में इंगित अंतिम तिथि के बाद अपने प्रमाण पत्र प्रस्तुत किए थे। ये उम्मीदवार ओपन कैटेगरी में क्वालिफाई नहीं कर पाए। इसके बाद, उन्होंने राहत के लिए राजस्थान हाईकोर्ट का रुख किया। हालांकि, उनकी रिट याचिका खारिज कर दी गई थी।

इससे असंतुष्ट होकर अभ्यर्थियों ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। मई, 2023 में जस्टिस अजय रस्तोगी और बेला एम. त्रिवेदी की खंडपीठ ने खंडित फैसला सुनाया। जस्टिस रस्तोगी ने कहा कि उम्मीदवार राहत के हकदार हैं, जबकि जस्टिस त्रिवेदी इससे सहमत नहीं थे।

जस्टिस रस्तोगी की राय थी कि पूर्ण न्याय करने के लिए, भारत के संविधान के अनुच्छेद 142 को प्रतिवादियों को नियुक्ति के लिए प्रत्येक अपीलकर्ता पर विचार करने का निर्देश देने के लिए लागू किया जाना था, जिसे विज्ञापित रिक्तियों के खिलाफ समायोजित नहीं किया जा सकता था। दूसरी ओर, जस्टिस त्रिवेदी ने कहा कि अपीलकर्ता, जो चूककर्ता थे, उनके द्वारा प्रस्तुत प्रमाणपत्रों को वैध मानकर अधिमान्य व्यवहार नहीं दिया जा सकता है, हालांकि विज्ञापन में तय किए गए आवेदनों को जमा करने की अंतिम तिथि के बाद उन्हें प्राप्त किया गया था।

फैसले के मद्देनजर मामले को तीन जजों की खंडपीठ के समक्ष रखा गया।

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