डीआरटी की डिक्री को चुनौती देने वाले वाद सुनवाई योग्य नहीं : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि ऋण वसूली न्यायाधिकरण (डीआरटी) द्वारा जारी डिक्री को चुनौती देने की बुनियादी राहत वाले मुकदमे सुनवाई योग्य नहीं होते हैं।
इस मामले में डीआरटी की ओर से जारी डिक्री को चुनौती देते हुए मुकदमे दायर किये गये थे। बैंक ने नागरिक प्रक्रिया संहिता (सीपीसी) के आदेश-7 नियम 11(डी) के प्रावधानों के तहत इस आधार पर वाद खारिज करने के लिए अर्जी दी थी कि बैंक एवं वित्तीय संस्थान अधिनियम, 1993, खासकर धारा 18,19 और 20, के तहत ऋण की वसूली के प्रावधानों पर विचार करते हुए ये वाद सुनवाई योग्य नहीं हैं।
पहले ट्रायल कोर्ट और बाद में हाईकोर्ट ने बैंक की यह अर्जी खारिज कर दी थी, इसलिए इस मामले में बैंक की ओर से दायर अपील में सुप्रीम कोर्ट को इस बात पर विचार करना था कि क्या सीपीसी के आदेश 7 नियम 11(डी) के प्रावधानों के तहत प्रदत्त शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए वादियों द्वारा दायर मुकदमे खारिज किये जाने योग्य थे या नहीं?
न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित, न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी और न्यायमूर्ति एम आर शाह की खंडपीठ ने अपील स्वीकार करते हुए 'पंजाब नेशनल बैंक बनाम ओ.सी.कृष्णन एवं अन्य, (2001)6 एससीसी 569' मामले में दिये गये फैसले का उल्लेख किया, जिसमें कहा गया था कि आरडीडीबीएफआई एक्ट के तहत प्राप्त उपचारों को समाप्त किये बिना हाईकोर्ट को अनुच्छेद 227 के तहत प्रदत्त अपने अधिकार क्षेत्र का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
बेंच ने कहा :
"ओ. सी. कृष्णन एवं अन्य मामले' में इस कोर्ट द्वारा जैसी व्यवस्था दी गयी है, उसके अनुसार, आरडीडीबीएफआई एक्ट के तहत प्रदत्त अपील का इस्तेमाल किये बिना डीआरटी की ओर से जारी डिक्री को चुनौती देने की बुनियादी राहत वाले मुकदमे खारिज करने योग्य थे।"
पीठ ने कहा कि चूंकि वाद दुर्भावनापूर्ण, झूठे, गुणवत्ताविहीन तथा कुछ और नहीं, बल्कि कानून एवं अदालती प्रक्रिया का दुरुपयोग है, इसलिए सीपीसी के आदेश 7 नियम 11(डी) के तहत प्रदत्त शक्तियों के इस्तेमाल का यह एक बेहतरीन मामला है।
बेंच ने आगे कहा :
"जैसा भी हो, वाद में दलीलों/दृढ कथनों और धोखाधड़ी के आरोपों को देखते हुए हमाना मानना है कि धोखाधड़ी के आरोप अवास्तविक तथा डीआरटी की ओर से जारी डिक्री और निर्णय से बचने के लिए हैं। इसलिए हमारा मानना है कि ये वाद दुर्भावनापूर्ण हैं तथा डीआरटी की ओर से जारी डिक्री एवं निर्णय से भागने के इरादे से दायर किये गये थे।"
केस नाम : केनरा बैंक बनाम पी सेलाथल
केस नं.- सिविल अपील नं. 1863-1864/2020
कोरम : न्यायमूर्ति यू यू ललित, न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी और न्यायमूर्ति एम आर शाह
वकील : राजेश कुमार एवं रोबिन आर डेविड
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