'ई-कोर्ट को शारीरिक रूप से अक्षम वकीलों-वादियों के लिए सुगम बनाने के लिए कदम उठाए जाएं', जस्टिस चंद्रचूड़ ने उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों को लिखा पत्र

Update: 2020-12-23 06:46 GMT

सुप्रीम कोर्ट की ई-कमेटी ने ई-कोर्ट सेवाओं की सुगमता के लिए सुगम वेबसाइटों के महत्व पर जोर दिया है। सुप्रीम कोर्ट के जज और ई-कमेटी के चेयरमैन जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने सभी उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों को एक पत्र भेजा है, जिसमें सुगम बुनियादी ढांचे की आवश्यकता पर विस्तार चर्चा की गई है।

पत्र में डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र के विकास और शारीरिक रूप से अक्षम वकीलों-वादियों को समान रूप से कानूनी पेशे में भाग लेने के लिए सक्षम बनाने की बात कही गई है।

पत्र में कहा गया है, "डिजिटल बुनियादी ढांचे समेत सुगम बुनियादी ढांचे का निर्माण और शारीर‌िक रूप से अक्षम वकीलों-वादियों के लिए न्यायपालिका में एक उपयुक्त सहायता प्रणाली का विकास समानता के लिए अनिवार्य है। इस दाय‌ित्व का अनुच्छेद 14 के तहत विकलांग वकीलों-वादियों का प्रदत्त समानता के अधिकार और अनुच्छेद 19(1) (जी) के तहत पसंद के पेशे के अभ्यास के अधिकार के साथ प्राकृतिक संबंध है।"

पत्र में शारीरिक रूप से अक्षम वकीलों-वादियों के लिए ई-कोर्ट को अधिक सुलभ बनाने के लिए उठाए गए कदमों पर रोशनी डालते हुए कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर अब पूर्णतया कार्यात्मक ऑडियो कैप्चा उपलब्ध है। नेत्रहीनों को दृश्य कैप्चा के कारण वेबसाइट पर लॉग इन कर पाना संभव नहीं था।

पत्र में सुझाव दिया गया है कि उच्च न्यायालय अपनी वेबसाइटों और फाइलिंग को अधिक सुगम बनाने के लिए कदम उठा सकते हैं। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा है, "मैं आपसे निवेदन करता हूं कि इन कदमों को तत्परता से उठाया जाए।"

पत्र में कहा गया है, "फाइलिंग को सुगम बनाने का दायित्व शारीरिक रूप से अक्षम वकीलों पर नहीं रखा जा सकता। यह ऐसे ही होगा कि एक वकील को विदेशी भाषा की फाइल दी जाए और अंग्रेजी में अनुवाद करने के लिए कहा जाए। हम यह सुनिश्चित करें कि आने वाले समय में सुगमता को बढ़ावा देने वाली प्रणालियों को संस्थागत बनाया जाए। दूसरा, अक्षम वकील के लिए केस दर केस हस्तक्षेप को आवश्यक बनाने के बजाय या उन्हें एक अलग सिस्टम देने के बजाय, यह सुनिश्चित करना होगा कि मौजूदा फाइलिंग के तरीकों को उनकी जरूरतों के अनुसार पुनर्निर्मित किया जाए।"

पत्र में कहा गया है कि वकीनों को अपनी प्रस्तुतियों को प्रिंट करने और स्कैन करने के बजाय पीडीएफ के रूप में फाइल कर सकते हैं।

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, "एमएस वर्ड की कॉपी को पीडीएफ फाइलों में बदला जा सकता है। दस्तावेजों की प्र‌िंटिंग और स्कैनिंग की मौजूदा प्रणाली निरर्थक है। मेरे न्यायालय ने उक्त प्रैक्टिस अपनाई है, जिसने नेत्रहीनों के ‌लिए दलीलों की फाइलिंग 100 प्रतिशत सुगम बनाया है। हमें सभी अदालतों में फाइलिंग तक इसका विस्तार करना होगा।"

जस्टिस चंद्रचूड़ ने पत्र में कहा है, "किसी भी कार्यवाही में जब अदालत प्रस्तुती दायर करने को निर्देशित करती है तो वकीलों और पक्षों से अनुरोध किया जाता है कि वे निर्धारित तारीख पर या उससे पहले एक सॉफ्ट कॉपी पीडीएफ प्रारूप में ईमेल आईडी: xxxxxxxx@gmail.com पर मेल करें। ईमेल की गई कॉपी मुद्रित प्रस्तुतियों की स्कैन कॉपी नहीं होनी चाहिए। ईमेल के अलावा कोई अन्य दस्तावेज इस ईमेल में दर्ज नहीं किया जाना चाहिए। "

पत्र में कहा गया है कि अगर किसी संलग्नक की हॉर्ड कॉपी को पेपर-बुक का हिस्सा बनाने की आवश्यकता है तो इन्हें स्कैन किया जा सकता है।

जस्टिस चंद्रचूड़ ने पत्र में कहा है कि, "हमें डिजिटल हस्ताक्षर के उपयोग का अभ्यास करना होगा या केवल पेपर-बुक के अंतिम पेज पर हस्ताक्षर आवश्यक हो, ताकि केवल हस्ताक्षर के लिए वकीलों को पेपर-बुक को प्रिंट करने और स्कैन करने की जरूरत न पड़े।"

पत्र में आगे ऑडियो कैप्चा उपलब्ध करके सुगमता को सुदृढ़ करने और फैसलों को नेत्रहीनों को पीडीएफ प्रारूप में ऑटो-टैग करने की बात कही गई है। पत्र में कहा गया है, "कोर्ट की वेबसाइटों में स्पष्ट रूप से लेबल्ड बटन होने चाहिए, और तारीखों के चयन के लिए कैलेंडर सरल होने चाहिए।"

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा है, "मुझे यकीन है कि आपके व्यक्तिगत हस्तक्षेप से विकलांगों को सुलभ न्यायालय का माहौल मिल सकेगा। मैं आपसे निवेदन करता हूं कि उच्च न्यायालय और जिला न्यायपालिका, दोनों इस दिशा में कदम उठाएं।"

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