यौन पीड़िता की एक मात्र 'विश्वसनीय' गवाही मुजरिम को विभागीय जांच में दुर्व्यवहार का दोषी ठहराने के लिए काफी होगी : उत्तराखंड हाईकोर्ट

Sole Testimony Of Victim Of Sexual Abuse, If Found Reliable, Is Sufficient To Hold Perpetrator Guilty Of Misconduct In Departmental Enquiry : Uttarakhand

Update: 2020-06-25 04:50 GMT

Uttarakhand High Court

उत्तराखंड हाईकोर्ट ने कहा है कि विश्वसनीय होने पर, यौन उत्पीड़न की शिकार पीड़िता की एक मात्र गवाही मुजरिम को विभागीय जांच में भी दुर्व्यवहार का दोषी ठहराये जाने के लिए पर्याप्त होगी।

इस मामले में याचिकाकर्ता पैरा-मेडिकल कोर्स का गेस्ट इंस्ट्रक्टर था, जिसने नौकरी से अपनी बर्खास्तगी के आदेश को चुनौती देने के लिए जो दलील रखी थी, उनमें से एक दलील यह थी कि उसे शिकायतकर्ता (प्रशिक्षु) की एक मात्र गवाही को आधार बनाकर दोषी ठहराया गया था।

याचिकाकर्ता का कहना था कि शिकायतकर्ता की गवाही में किसी और की गवाही को शामिल नहीं किया गया था, इसलिए शिकायतकर्ता की स्वयं की गवाही को याचिकाकर्ता को दोषी ठहराने का आधार नहीं बनाया जा सकता।

कोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न फैसलों से यह स्थापित सिद्धांत है कि यौन उत्पीड़न की पीड़िता की गवाही ही दोषसिद्धि के लिए पर्याप्त है और इसके लिए तबतक किसी पुष्टीकरण की जरूरत नहीं होती है, जब तक कि गवाही की पुष्टि के लिए कोई अकाट्य कारण नजर न आये।

मुख्य न्यायाधीश रमेश रंगनाथन और न्यायमूर्ति आर सी खुल्बे की पीठ ने कहा :

" चूंकि यौन उत्पीड़न और छेड़छाड़ के  आपराधिक मामले में पीड़िता की एक मात्र गवाही पर्याप्त होगी, यदि वह गवाही भरोसे के लायक हो, तो ऐसी स्थिति में विभागीय जांच में यौन उत्पीड़न की पीड़िता की एकमात्र गवाही मंजूर न करने का कोई न्यायोचित कारण नहीं दिखता, क्योंकि आंतरिक ट्रिब्यूनल द्वारा की गयी जांच आपराधिक अदालतों की तरह साक्ष्य अधिनियम के सख्त और तकनीकी नियमों से संचालित नहीं होती है।

अनुशासनात्मक कार्रवाई आपराधिक मुकदमा की तरह नहीं होती है। प्रमाण के मानक की आवश्यकता संभावनाओं की प्रामाणिधक्यता है, न कि तार्किक संदेह से परे प्रमाण।"

कोर्ट ने कहा कि इस मामले में पीड़िता की गवाही याचिकाकर्ता द्वारा उसके ऊपर किये गये यौन उत्पीड़न के कृत्यों का सुस्पष्ट और खौफनाक ब्योरा देती है। इसने कहा कि शिकायतकर्ता की गवाही पर काफी हद तक भरोसा करने के लिए जांच समिति को दोष नहीं दिया जा सकता।

याचिकाकर्ता के खिलाफ अन्य मुद्दे भी पाये गये थे और अदालत ने कहा कि उसे न तो जांच की कार्यवाही में, न ही नौकरी से उसकी बर्खास्तगी के आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नजर आता है।

केस नं. : रिट याचिका (एस/बी) नं. 153/2013

केस का नाम : भुवन चंद्र पांडेय बनाम भारत सरकार

कोरम : मुख्य न्यायाधीश रमेश रंगनाथन और न्यायमूर्ति आर. सी. खुल्बे

वकील : एडवोकेट संजय रातुरी, संजय भट


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