कर्मचारी द्वारा कार्य प्रभार के आधार पर सेवाओं पर पहली बार समयबद्ध प्रमोशन के तहत विचार नहीं होगा अगर उसे अलग वेतनमान पर सेवा में समाहित किया गया हो : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि किसी कर्मचारी द्वारा कार्य प्रभार के आधार पर दी गई सेवाओं को पहली बार समयबद्ध प्रमोशन के लाभ के अनुदान के लिए नहीं माना जा सकता है यदि कर्मचारी को एक अलग वेतनमान पर सेवा में समाहित किया गया है।
जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीवी नागरत्ना की एक पीठ ने यह भी कहा कि समयबद्ध प्रमोशन योजना का लाभ तब लागू होगा जब एक कर्मचारी ने एक ही पद पर और एक ही वेतनमान (महाराष्ट्र राज्य और अन्य बनाम मधुकर अंतु पाटिल) में बारह साल तक काम किया हो।
बेंच महाराष्ट्र प्रशासनिक ट्रिब्यूनल, मुंबई द्वारा पारित आदेश को बरकरार रखने के बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली महाराष्ट्र राज्य द्वारा दायर एक सिविल अपील पर विचार कर रही थी।
ट्रिब्यूनल ने अपने आदेश के माध्यम से सरकारी आदेशों को रद्द कर दिया था जिसमें कर्मचारी के वेतनमान और पेंशन को डाउनग्रेड किया गया था।
वर्तमान मामले में, विवाद इस बात को लेकर था कि क्या कर्मचारी जो 1982 से कार्य प्रभार के आधार पर तकनीकी सहायक के रूप में कार्यरत था और एक अलग वेतनमान के साथ सिविल इंजीनियरिंग सहायक के पद पर वर्ष 1989 में समाहित किया गया था, 1982 से बारह वर्ष की सेवा पूरी करने पर या सिविल इंजीनियरिंग सहायक के पद पर समाहित की तिथि से समयबद्ध पदोन्नति (टीबीपी) का हकदार होगा या नहीं। प्रशासनिक ट्रिब्यूनल ने डाउनग्रेड करने के आदेश को रद्द कर दिया और 1982 से उनकी सेवा की गणना करते हुए टीबीपी के अनुदान का निर्देश दिया। हाईकोर्ट ने ट्रिब्यूनल के आदेश की पुष्टि की। इस प्रकार, मामला राज्य की अपील के चलते सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया।
यह कहते हुए कि कर्मचारी को सिविल इंजीनियरिंग सहायक के नव निर्मित पद पर समाहित किया गया था, जिसमें एक अलग वेतनमान था, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रतिवादी वर्ष 1989 से बारह वर्ष पूरे होने पर पहली टीबीपी का हकदार होगा, अर्थात, जिस तारीख से उसे सिविल इंजीनियरिंग सहायक के पद पर समाहित किया गया था और उसके वेतनमान और पेंशन को तदनुसार संशोधित किया जाना है।
इसलिए न्यायालय ने हाईकोर्ट के साथ-साथ ट्रिब्यूनल द्वारा पारित किए गए निर्णय और आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें प्रतिवादी के वेतनमान और पेंशन को कम करने के आदेश दिए गए थे।
पीठ ने हालांकि निर्देश दिया है कि प्रतिवादी के वेतनमान और पेंशन के पुनर्निर्धारण पर प्रतिवादी से पहले से भुगतान की गई राशि की कोई वसूली नहीं होगी। यह निर्देश यह विचार करते हुए जारी किया गया है कि 1982 की उसकी प्रारंभिक नियुक्ति की अवधि को ध्यान में रखते हुए प्रथम टीबीपी का अनुदान प्रतिवादी द्वारा किसी गलत बयानी के कारण नहीं था और यह सरकार और वित्त विभाग के अनुमोदन पर प्रदान किया गया था।
बेंच ने कहा कि यदि प्रतिवादी को उसी तकनीकी सहायक के पद पर समाहित किया जाता, जिस पर वह कार्य प्रभार के आधार पर सेवा कर रहा था, तो स्थिति अलग हो सकती थी।
हाईकोर्ट के इस निष्कर्ष के संबंध में कि पहली टीबीपी सरकार और वित्त विभाग की मंज़ूरी पर दी गई थी और इसे संशोधित या वापस नहीं लिया जा सकता है, बेंच ने कहा है कि केवल इसलिए कि पहली टीबीपी का लाभ विभाग के अनुमोदन के बाद दिया गया था, वो इसे जारी रखने का आधार नहीं हो सकता है।
पीठ ने कहा,
"शुरुआत में, यह नोट करने की आवश्यकता है और यह विवाद में नहीं है कि प्रतिवादी संख्या 1 को शुरू में 11.05.1982 को कार्य प्रभार के आधार पर एक तकनीकी सहायक के रूप में नियुक्त किया गया था। यह भी विवाद में नहीं है कि उसके बाद उसे वर्ष 1989 में सिविल इंजीनियरिंग सहायक के नव सृजित पद पर शामिल किया गया था , जिसमें एक अलग वेतनमान था। इसलिए, जब प्रतिवादी को वर्ष 1989 में सिविल इंजीनियरिंग सहायक के नव निर्मित पद पर समाहित किया गया था, जिसमें एक अलग वेतनमान था, तो वह 1989 में सिविल इंजीनियरिंग सहायक के पद पर अपने समाहित होने की तिथि से बारह वर्ष की सेवा पूरी करने पर प्रथम टीबीपी के लिए पात्र होगा।
प्रतिवादी द्वारा तकनीकी सहायक के रूप में कार्य प्रभार के आधार पर 11.05.1982 से प्रदान की गई सेवाओं पर विचार नहीं किया जा सकता था। प्रथम टीबीपी के लाभ के अनुदान के लिए यदि प्रतिवादी को उसी तकनीकी सहायक के पद पर अवशोषित किया गया होता जिस पर वह कार्य प्रभार के आधार पर सेवा कर रहा था, तो स्थिति अलग होती। टीबीपी योजना का लाभ तब लागू होगा जब किसी कर्मचारी ने एक ही पद पर और समान वेतनमान में बारह साल तक काम किया हो।"
केस: महाराष्ट्र राज्य और अन्य मधुकर अंतु पाटिल और अन्य, सीए 1985/2022
साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (SC ) 308
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