आरोप की गंभीरता प्रासंगिक कारकः सुप्रीम कोर्ट ने लेडी डॉक्टर की हत्या के आरोपी की जमानत रद्द की
सुप्रीम कोर्ट ने केरल हाईकोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया है, जिसमें एक महिला डॉक्टर की हत्या के आरोपी व्यक्ति को जमानत दे दी गई थी।
जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस कृष्ण मुरारी की पीठ ने कहा कि आरोपों की गंभीरता जमानत के आवेदनों पर विचार करते समय प्रासंगिक विचारों में से एक है।
अभियोजन के मामले के अनुसार, आरोपी महेश ने 28 सितंबर 2020 को अपराह्न करीब 3.30 बजे एक तीस साल की महिला डॉक्टर पर चाकू से हमला कर उसकी हत्या कर दी थी। घटना के समय महिला डॉक्टर अपने मल्टीस्पेशलिटी डेंटल क्लिनिक में मौजूद थी।
उसके पिता की मौजूदगी के दौरान डेंटल क्लिनिक में महिला के पेट के दाहिनी ओर चाकू से वार किया गया था। हालांकि सत्र न्यायालय ने जमानत अर्जी को खारिज कर दिया था, लेकिन हाईकोर्ट ने यह देखते हुए इसकी अनुमति दे दी कि अनिश्चितकालीन समय तक जेल में रखना आवश्यक नहीं था।
पीठ ने राज्य द्वारा दायर अपील में कहा कि सीआरपीसी की धारा 439 के तहत जमानत देने की शक्ति विवेकाधीन है, इस तरह के विवेक का विवेकपूर्ण ढंग से उपयोग किया जाना चाहिए। जमानत के आवेदनों पर विचार करते समय आरोप की गंभीरता निस्संदेह प्रासंगिक विचारों में से एक है।
पीठ ने कहा कि,
''इस मामले में, हाईकोर्ट का लगाया आदेश त्रुटिपूर्ण है, जिसमें हाईकोर्ट ने कथित अपराध की गंभीरता को नोट किया, यह देखा कि यह घटना जघन्य है, लेकिन इस आधार पर अभियुक्त को जमानत दे दी कि वह 6 अक्टूबर 2020 से (जो लगभग 75 दिन) हिरासत में है,जबकि रिकॉर्ड पर मौजूद उन सामग्रियों पर विचार नहीं किया जो प्रथम दृष्टया यह मानने के लिए उचित आधार बनाती हैं कि प्रतिवादी अभियुक्त ने जघन्य अपराध किया है। उस समय, चार्जशीट भी दाखिल नहीं की गई थी। हाईकोर्ट ने दोषी पाए जाने की स्थिति में सजा की गंभीरता, या घटना के बाद आरोपी के फरार होने के तथ्य पर भी अपना दिमाग नहीं लगाया।''
पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट ने सत्र न्यायालय के आदेश में दिए गए उन विस्तृत कारणों पर न तो विचार किया और न ही चर्चा की, जो अभियुक्त की जमानत की प्रार्थना को खारिज करते समय दिए गए थे।
यह भी कहा कि," हाईकोर्ट के उक्त आदेश में सत्र न्यायालय द्वारा दिए गए तर्क की किसी भी त्रुटि के बारे में कुछ नहीं कहा गया है। न ही इस कारण की कोई चर्चा है कि हाईकोर्ट ने सत्र न्यायालय द्वारा लिए गए दृष्टिकोण से अलग दृष्टिकोण क्यों लिया - क्या सत्र न्यायालय के आदेश के 10/12 दिनों के भीतर कोई ऐसी आकस्मिक परिस्थितियां थी, जिनके चलते एक अलग दृष्टिकोण लेने की आवश्यकता थी।''
पीठ ने कहा कि,
''हाईकोर्ट ने, हमारी राय में, अभियोजन पक्ष की उस आशंका पर विचार न करके गलती की है,जिसमें कहा गया था कि अभियुक्त गवाहों को प्रभावित कर सकता है। इस आशंका को सिर्फ इस निर्देश के आधार पर नहीं नकारा जा सकता है कि अभियुक्त को उल्लूर पुलिस स्टेशन के अधिकार क्षेत्र में प्रवेश न करने के लिए कह दिया गया है। हाईकोर्ट ने इस तथ्य को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया कि मृतक पीड़िता एर्नाकुलम में रहती थी। उसके माता-पिता और उसकी पांच साल की बेटी एर्नाकुलम में रहती है। दूसरे शब्दों में, एकमात्र चश्मदीद गवाह एर्नाकुलम के निवासी हैं। अभियोजन पक्ष के ज्यादातर गवाह त्रिशूर के थे। यह मानने का कोई कारण नहीं था कि गवाह अपनी आवाजाही को उल्लूर पुलिस स्टेशन के अधिकार क्षेत्र की सीमाओं तक सीमित रखेंगे।''
अदालत ने यह भी कहा कि हाईकोर्ट ने Re : Contagion of Covid 19 Virus In Prisons में जारी किए गए निर्देशों के उद्देश्य,दायरे और महत्वाकांक्षा को पूरी तरह से गलत समझा। पीठ ने कहा,
''इस न्यायालय के आदेश में कोई भी ऐसा निर्देश नहीं दिया गया है या कोई भी ऐसा अवलोकन नहीं किया जा गया है, जिसके तहत हत्या के आरोपित अंडर-ट्रायल कैदियों को रिहा करने की आवश्यकता हो और वह भी तब जब जांच पूरी न हुई हो और आरोप पत्र दायर न किया गया हो। यह बात दोहराई जाती है कि प्रतिवादी आरोपी पर एक चश्मदीद गवाह की मौजूदगी में की गई हत्या का आरोप है और चार्जशीट दायर होने से पहले ही जमानत देने का आदेश दे दिया गया है। प्रतीत होता है कि चार्जशीट 01.01.2021 को दायर की गई है। इसके अलावा रिस्पांडेंट अभियुक्त घटना के बाद फरार हो गया था।''
केसः केरल राज्य बनाम महेश, सीआरए 343/2021
कोरमःजस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस कृष्ण मुरारी
उद्धरणःएलएल 2021 एससी 192
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