आईपीसी की धारा 302 : कौन सी परिस्थितियों से मौत का कारण बनने की मंशा निर्धारित की जा सकती है, सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया

Update: 2022-02-06 09:51 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने हाल के एक फैसले में उन परिस्थितियों पर चर्चा की, जिनका उपयोग यह निष्कर्ष निकालने के लिए किया जा सकता है कि भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत हत्या के मामले में मौत का इरादा था या नहीं।

जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीवी नागरत्ना की एक खंडपीठ उत्तराखंड राज्य की उस अपील पर विचार कर रही थी, जिसमें हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें आईपीसी की धारा 302 के तहत अपराध के लिए आरोपी की दोषसिद्धि को खारिज कर दिया गया था और आरोपी को ट्रायल कोर्ट द्वारा आईपीसी की धारा 302 को दोषी ठहराये जाने संबंधी आदेश को बहाल करने और उसे आजीवन कारावास की सजा दिये जाने की मांग की गयी थी।

बेंच ने कहा कि 'पुलीचेरला नागराजू बनाम आंध्र प्रदेश सरकार, (2006) 11 एससीसी 444' में यह टिप्पणी की गयी थी और कोर्ट ने माना था कि मौत का इरादा आमतौर पर निम्नलिखित विभिन्न परिस्थितियों में से कुछ या कई के संयोजन से एकत्र किया जा सकता है:

(i) इस्तेमाल किए गए हथियार की प्रकृति;

(ii) क्या हथियार आरोपी द्वारा ले जाया गया था या मौके से उठाया गया था;

(iii) क्या प्रहार शरीर के किसी महत्वपूर्ण भाग पर लक्षित है;

(iv) चोट पहुंचाने में नियोजित बल की मात्रा;

(v) क्या यह कार्य अचानक हुए झगड़े या अचानक लड़ाई से हुआ या कोई लड़ाई नहीं;

(vi) क्या घटना संयोगवश हुई है या क्या यह पूर्वनियोजित थी;

(vii) क्या कोई पूर्व दुश्मनी थी या क्या मृतक एक अजनबी था;

(viii) क्या कोई गंभीर और अचानक उकसावे का मामला था और यदि हां, तो ऐसे उकसावे का कारण क्या है;

(ix) क्या यह जोश में होश खोने के कारण हुआ था;

(x) क्या चोट पहुंचाने वाले व्यक्ति ने अनुचित लाभ उठाया या क्रूर और असामान्य तरीके से कार्य किया है;

(xi) क्या आरोपी ने एक ही वार किया या कई वार किए,

निर्णय में उन उदाहरणों का भी उल्लेख किया गया है जिनमें कहा गया है कि (आईपीसी की धारा 300) अपवाद 4 की मदद ली जा सकती है यदि मृत्यु होती है: (ए) बिना पूर्व विचार के, (बी) अचानक लड़ाई में, (सी) अपराधियों ने अनुचित लाभ नहीं उठाया या क्रूर या असामान्य तरीके से कार्य किया, और (डी) लड़ाई मारे गए व्यक्ति के साथ होनी चाहिए।

तथ्यात्मक पृष्ठभूमि

इन सिद्धांतों को तत्काल मामले के तथ्य पर लागू करते हुए, कोर्ट ने माना कि हाईकोर्ट ने यह मानकर गलती की कि अपराध हत्या नहीं था और केवल गैर-इरादतन हत्या थी, जो हत्या की श्रेणी में नहीं थी।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि एक घटना जहां आरोपी ने आधी रात को मृतक पर हमला किया और उसका पीछा करना जारी रखा और कई वार किए, इसे 'जुनून की गर्मी में अचानक लड़ाई' का परिणाम नहीं कहा जा सकता है और यह आईपीसी की धारा 300 के चौथे अपवाद के तहत नहीं आता है।

बेंच ने कहा कि हाईकोर्ट ने सभी चश्मदीद गवाहों के सबूतों पर विश्वास करते हुए कहा कि गैर-इरादतन हत्या को हत्या नहीं माना जाता है, केवल इस आधार पर कि यह एक निर्मम हत्या नहीं है; बल्कि यह एक अचानक हुई लड़ाई है जो विवाह समारोह में अचानक हुए झगड़े के कारण दोनों के बीच जोश की गर्मी में शुरू हुई।

हाईकोर्ट ने यह भी कहा था कि इस्तेमाल किया गया हथियार लकड़ी का एक मोटा टुकड़ा था और इसलिए यह नहीं कहा जा सकता है कि आरोपी की ओर से मृतक को जान मारने और/या हत्या करने का कोई इरादा था और इसलिए मामला आईपीसी की धारा 300 के चौथे अपवाद के तहत आएगा। इसलिए हाईकोर्ट ने हत्या को गैर-इरादतन हत्या में बदल दिया था और सजा को आजीवन कारावास से दस साल के कठोर कारावास में बदल दिया था।

खंडपीठ ने माना है कि हाईकोर्ट ने इस मामले को परखने और आरोपी की ओर से (अपील) स्वीकार करने में गलती की है कि मेहंदी की रस्म में अचानक झगड़े के कारण 'जोश में होश खोने' के कारण घटना हुई थी।

पीठ ने कहा कि आरोपी और मृतक के बीच कहासुनी की दो घटनाएं हुईं। आरोपी और मृतक के बीच कहासुनी की पहली घटना मेहंदी रस्म वाली जगह पर हुई थी। उस समय ग्रामीणों के हस्तक्षेप के कारण मामला आगे नहीं बढ़ा। इसके बाद दूसरी घटना रात करीब 12 बजे हुई, जिसमें आरोपी ने मृतक पर हमला कर दिया, मृतक को कई वार किए, आधी रात करीब 12 बजे मृतक का पीछा किया और मारपीट करता रहा। इसलिए दूसरी घटना को अचानक हुए झगड़े पर 'जोश की गर्मी' में अचानक हुई लड़ाई का नतीजा नहीं कहा जा सकता।

यह देखते हुए कि पहली घटना समाप्त होने के बाद हर कोई अपने घर चला गया था, तब 12 बजे रात को दूसरी घटना हुई, ऐसी स्थिति में हाईकोर्ट ने इसके निर्णय में गलती की है कि मामला आईपीसी की धारा 300 के चौथे अपवाद के तहत आता है।

पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट ने मृतक को लगी कई चोटों पर सही तरीके से विचार नहीं किया, जैसा कि चिकित्सा साक्ष्य में पाया गया है, जिसके अनुसार मृत्यु का मुख्य कारण मृतक के सिर पर लगी चोटें थीं।

खंडपीठ ने हाईकोर्ट के आक्षेपित निर्णय और आदेश को रद्द कर दिया है, जिसमें हत्या को गैर-इरादतन हत्या में बदल दिया गया है और परिणामस्वरूप सजा को आजीवन कारावास से दस साल के कठोर कारावास में परिवर्तित किया गया है।

अभियुक्तों द्वारा गंभीर प्रहारों के कारण उत्पन्न गंभीर चोटों पर विचार करते हुए, बेंच ने माना है कि मामला आईपीसी की धारा 300 की तीसरे और चौथे उपबंध के तहत आता है।

आईपीसी की धारा 300 के तीसरे और चौथे उपबंध के अनुसार, गैर-इरादतन मानव वध हत्या है, यदि वह कार्य जिसके द्वारा मृत्यु हुई है:

1. यदि यह किसी व्यक्ति को शारीरिक चोट पहुंचाने के इरादे से किया गया है और इरादे से पहुंचाई गयी शारीरिक चोट सामान्य तौर पर मृत्यु का कारण बनने के लिए पर्याप्त है,

2. यदि हमला करने वाला व्यक्ति जानता है कि यह इतना खतरनाक है कि यह सभी संभावनाओं में, मृत्यु का कारण बनता है या ऐसी शारीरिक चोट के कारण मृत्यु होने की संभावना होती है, और ऐसा कार्य बिना किसी बहाने के मौत का कारण बनने के जोखिम को उठाने के लिए करता है अथवा पूर्वोक्त के रूप में ऐसी चोट के लिए।"

खंडपीठ के अनुसार, धारा 300 आईपीसी के अपवाद चौथे को हाईकोर्ट द्वारा इस तथ्य पर विचार करते हुए बिल्कुल भी लागू नहीं किया जाना चाहिए था कि मुख्य दूसरी घटना बाद में रात 12:00 बजे हुई थी, जो मेहंदी रस्म के दौरान हुए पहली बार हुए झगड़े के बहुत बाद घटी थी।

खंडपीठ ने प्रतिवादी-अभियुक्त को आईपीसी की धारा 302 के तहत मृतक को जान से मारने और/या हत्या करने के लिए अपराध के लिए दोषी ठहराया है और उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई है।

तदनुसार, ट्रायल कोर्ट द्वारा आरोपी को आईपीसी की धारा 302 के तहत अपराध के लिए दोषी ठहराये गये और उसे आजीवन कारावास की सजा के निर्णय और आदेश को बहाल कर दिया गया।

केस शीर्षक: उत्तराखंड सरकार बनाम सचेंद्र सिंह रावत

साइटेशन : 2022 लाइव लॉ (एससी) 131


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