SCAORA ने सुप्रीम कोर्ट को लिखा पत्र, ई-फाइलिंग,वर्चुअल कोर्ट और रजिस्ट्री के कामकाज पर वकीलों के सुझाव लागू करने की मांग की
सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स ऑन रिकॉर्ड एसोसिएशन (SCAORA)ने सुप्रीम कोर्ट के महासचिव को एक पत्र लिखा है, जिसमें मांग की गई है कि एडवोकेट्स ऑन रिकॉर्ड और बार के अन्य सदस्यों द्वारा दिए गए विभिन्न सुझावों को लागू किया जाए।
SCAORA सचिव जोसेफ अरस्तू ने इस पत्र पर अपने हस्ताक्षर किए हुए हैं।इस पत्र में कई कई सुझाव दिए गए हैं। यह सभी सुझाव वकीलों को हेल्पलाइन नंबर, ई-फाइलिंग, वर्चुअल कोर्ट् और कोर्ट की रजिस्ट्री के कामकाज के दौरान आ रही समस्याओं के संबंध में दिए गए हैं।
इस प्रतिनिधित्व के माध्यम से एस-जी से आग्रह किया गया है कि वे इस संबंध में तुरंत कार्रवाई करें ताकि सिस्टम की सुचारू कार्यप्रणाली सुनिश्चित हो सकें।
हेल्पलाइन
हेल्पलाइन के संबंध में यह आग्रह किया गया है कि एक अलग और समर्पित हेल्पलाइन और ईमेल आईडी उपलब्ध कराए जाएंं ताकि अन्य प्रक्रियाओं के बीच फाइलिंग और लिस्टिंग से जुड़े मुद्दों से विशेष रूप से निपटा जा सके और प्रचलित प्रणाली में वकीलों को सहायता मिल सके।
SCAORAने यह भी मांग की है कि एक ऐसी हेल्पलाइन और ईमेल पते का प्रावधान किया जाए,जहां तकनीकी मुद्दों संबंधी शिकायतों का निवारण किया जा सकें।
यह अनुरोध इसलिए किया गया है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस समय मेंशनिंग और तकनीकी सहायता के लिए उपलब्ध कराए गए संपर्क विवरण से पर्याप्त सहायता नहीं मिल पा रही है।
रजिस्ट्री के संबंध में
SCAORA ने मांग की है कि सभी मामलों को एक कुशल तरीके से सूचीबद्ध किया जाए। जहां तत्काल मामलों को सूचीबद्ध किया जाना चाहिए और दोषों को एक निश्चित समय सीमा के भीतर अधिसूचित कर देना चाहिए और उसके बाद मामले को फिर से पोस्ट कर दिया जाना चाहिए।
यह भी आग्रह किया गया है कि जजों को लिखे जाने वाले पत्रों के संचलन, प्रमाणित प्रतियों के संचलन, मामलों की सूची के बारे में समय पर अपडेट करने और प्रतिदिन वकीलों के समक्ष आ रही समस्याओं के संबंध में एक अधिक प्रभावी तंत्र बनाया जाए।
इस मामले में निम्नलिखित सुझाव दिए गए हैं-
1. तत्काल मामलों को मेंशनिंग करने के बाद उनको लिस्टिंग या सूचीबद्ध करने के लिए एक समय सीमा तय की जाए और मामले की लिस्टिंग के लिए त्वरित कार्रवाई की जाए।
2.दोषों को चिह्नित करने के लिए एक समय सीमा बनाई जाए। वही दोष दूर कर दिए जाने के बाद मामले को फिर से एक निश्चित समय -सीमा के अंदर सूचीबद्ध किया जाए।
3. पत्रों के संचलन के लिए एक व्यवस्थित तंत्र बनाया जाए। जिसमें यह भी प्रावधान किया जाए कि उस पत्र की एक काॅपी संबंधित माननीय न्यायाधीश के ईमेल आईडी पर भेजी जा सकें। चूंकि अधिक्तर मामलों में रजिस्ट्री इन पत्र के बारे में माननीय न्यायाधीशों को सूचित नहीं करती है। पत्र के संचलन को प्रमाण के साथ स्वीकार किया जाना चाहिए।
4. प्रमाणित प्रतिलिपि के संबंध ऑनलाइन आवेदन करने के लिए तंत्र बनाया जाए और वैकल्पिक तौर पर प्रमाणित प्रतिलिपि को एओआर (संबंधित एओआर द्वारा इसका खर्च दिए जाने पर ) के पत्राचार पते पर डाक से भी भेजा जाए।
5. 22 मई 2020 को जारी सर्कुलर की प्रस्तावित सूची के अनुसार मामलों की डिलिट करने के लिए आवेदन करने की प्रक्रिया बनाई जाए।
6. मामलों की सूची में नामों को समय पर अपडेट किया जाए (विशेषकर केवीऐट, नए वकालत आदि के संबंध में) ताकि एओआर समय पर वीसी के लिए लिंक प्राप्त कर पाए।
7. 31.0.3.2020 से पहले दायर किए गए किसी भी मामले के संबंध में रजिस्ट्री ए 4 आकार के कागज का प्रयोग करने और दोनों तरफ मुद्रण/फोटोकॉपी करवाने के लिए दबाव न ड़ाले। इसके अलावा उक्त फाइलों को प्रचलित प्रणाली के अनुसार ही रिफिल करने की अनुमति दी जा सकती है।
8. नगण्य दोषों को रजिस्ट्री द्वारा नहीं उठाए जाना चाहिए।
9. एक सर्कुलर के जरिए स्पष्ट किया जाना चाहिए कि रिफिलिंग के लिए देरी का क्षमादान एसएम डब्ल्यूपी (सी) नंबर 3/2020 में दिनांक 23.03.2020 को दिए गए आदेश के अनुसार होगा।
10.परिसीमा की रिपोर्ट ग्रीन सीट पर दायर करने के लिए दबाव न ड़ाला जाए।''
ई-फाइलिंग के संबंध में
नंबरिंग व पावती के लिए एक समयरेखा बनाई जाए। कोर्ट फीस और अन्य प्रक्रियात्मक आवश्यकताओं के बारे में एक सुव्यवस्थित तंत्र बनाने का अनुरोध किया गया है।
इसके संबंध में निम्नलिखित सुझाव दिए गए हैं-
1.यह सुनिश्चित किया जाए कि ई-फाइलिग पर तुरंत एक डायरी नंबर प्रदान किया जाए।
2. ई-फाइलिंग के जरिए दायर किए गए प्रत्येक दस्तावेज को एक विशिष्ट संदर्भ संख्या के साथ स्वीकार किया जाए।
3. प्रत्येक आई.ए को एक निर्दिष्ट अवधि के भीतर क्रमांकित किया जाए।
4. प्रक्रिया को दाखिल करने के लिए व्यवस्थित तंत्र बनाया जाए। वर्तमान में प्रक्रिया के शुल्क की गणना मामले के काॅज टाइटल अनुसार नहीं की जा रही है।
5. ई-फाइलिंग के संबंध में किए गए हर भुगतान पर तुरंत कोर्ट फीस की अलग रसीद देनी चाहिए।
6. कोर्ट शुल्क और अन्य संबंधित भुगतानों के लिए रु-पेय कार्ड और यूपीआई के प्रयोग की अनुमति दी जाए।
7. ई-फाइलिंग के डैश बोर्ड पर रिफिलिंग के लिए एक अलग विंडो प्रदान की जाए।
8. संलग्रक को स्कैन करने की अनुमति दी जाए और दायर करने दें। टाइप की गई प्रतियाँ केवल तभी मांगी जाए जब स्कैन की गई प्रतियां पठनीय न हों।
9. यह सुनिश्चित किया जाए कि ई-फाइलिंग के साथ दायर किए गए सभी दस्तावेज समय पर माननीय न्यायाधीशों की पेपर बुक में रख दिए जाएं। उसी के अनुसार कार्यालय की रिपोर्ट प्रकाशित की जाए।
वर्चुअल कोर्ट के संबंध में
कहा गया है कि वर्तमान में उपलब्ध कराए गए लिंक पर्याप्त नहीं हैं। SCAORAने सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया है कि वर्चुअल कोर्ट की सुनवाई के लिए अतिरिक्त लिंक प्रदान किए जाएं।
सीमित लिंक इस समय एओआर के पेश होने की गुंजाइश को तो कम कर ही रहे हैं,इसके अलावा वर्तमान प्रणाली संतोषजनक ढंग से उपस्थिति भी दर्ज नहीं हो पा रही है। इसलिए यह आग्रह किया गया है कि भेजे गए ईमेल के अनुसार पूर्ण उपस्थिति दर्ज की जानी चाहिए।
इसके अतिरिक्त यह भी कहा गया है कि वकीलों को कम से कम तब तक रहने दिया जाए जब तक कि उनके मामलों में आदेश नहीं सुना दिया जाता है। इस बात से अवगत कराया जा रहा है कि वर्तमान में आदेश आने से पहले ही वकीलों को डिस्कनेक्ट कर दिया जाता है,जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए।
विशेष रूप से यह भी अनुरोध किया गया है कि बहुत जरूरी होने में पीठासीन न्यायधीश के समक्ष टेलीफोन के जरिए पहले ही मौखिक उल्लेख या मेंशनिंग की अनुमति दी जानी चाहिए।
इस संबंध में सुझावों की व्यापक सूची इस प्रकार है -
1. सुप्रीम कोर्ट परिसर में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के लिए सुविधा का लाभ उठाने के लिए बनाई गई शर्तों के संबंध में एक अलग और विशिष्ट सर्कुलर/अधिसूचना जारी की जाए।
2. संबंधित एओआर के ई-मेल आईडी और मोबाइल नंबरों पर वीसी के लिए स्वचालित लिंक शुरू करने की तारीख को बारे में सूचित किया जाए।
3. वर्तमान में उपस्थिति दो लिंक के अलावा और की उपस्थिति के लिए एक अतिरिक्त लिंग प्रदान किया जाए।
4. यह सुनिश्चित किया जाए कि बोर्ड के अंत तक AOR की पहुंच को किसी विशेष वीसी तक की सीमित न किया जाए। क्योंकि कई बार तकनीकी खराबी के कारण अगर कोई AOR डिस्कनेक्ट हो जाता है तो वह वीसी में फिर से ज्वाइन नहीं कर पाता है।
5. यह सुनिश्चित किया जाए कि वीसी की विडियो व ऑडियो AOR की उचित पहुंच हो पाए। वहीं जब तक आदेश नहीं दे दिया जाए और अदालत में अगला मामला शुरू न हो जाए,तब तक उसे डिस्कनेक्ट न किया जाए।
6. AOR द्वारा भेजी गई ईमेल के अनुसार ही उपस्थिति रिकाॅर्ड की जाए। वर्तमान में, वीसी के लिंक के लिए गठित व्हाट्सएप समूह में प्रविष्टियां करने और ई-मेल भेजने के बावजूद भी उपस्थिति ठीक से दर्ज नहीं की जा रही हैं।
7. हेल्पलाइन नंबर 1881 केवल विशेष रूप से तकनीकी गड़बड़ियों के लिए समर्पित होनी चाहिए चूंकि यह हेल्पलाइन नंबर स्वतःसंज्ञान डब्ल्यू.पी (एस) 5/2020 ( In Re-covid 19 के दौरान वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से अदालत के कामकाज के लिए) मामले में छह अप्रैल 2020 को दिए गए आदेश के पैरा 6 ( iv ) के अनुसार गठित की गई थी, समर्पित हेल्पलाइन है।
8. वहीं काॅज लिस्ट से उस नोट को हटाया जाए, जिसमें लिखा गया है कि ''AOR से आग्रह किया जाता है कि वह वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग का लिंक किसी के साथ साझा न करें। ऐसा करने से AOR के ई-मेल पर भेजा गया मूल लिंक निष्क्रिय हो जाएगा।'' चूंकि अब लिंक को साझा करने या फाॅरवर्ड करने के संबंध में रजिस्ट्री द्वारा यह सलाह वीसी के लिए बनाए गए व्हाट्सएप ग्रुप में दे दी जाती है।
9.पूर्व प्रैक्टिस को फिर से बहाल किया जाए। जैसे किसी मामले में उसे अत्यधिक जरूरी बताते हुए सूचीबद्ध करने के लिए प्रार्थना/ आवेदन किया जाता है और सक्षम अधिकारी उसे स्वीकार नहीं करता है। ऐसी स्थिति में AOR को माननीय पीठासीन न्यायाधीश के समक्ष उनके कार्यालय के लैंडलाइन फोन के जरिए मौखिक उल्लेख करने की अनुमति दी जाए। इसके लिए सक्षम अधिकारी समय निर्धारित कर सकते हैं। वहीं अगर इस तरह के उल्लेख या मेंशनिंग को पीठासीन न्यायधीश द्वारा स्वीकार कर लिया जाता है तो उस मामले को न्यायधीश के निर्देश के अनुसार सूचीबद्ध किया जाए।
10. वर्चुअल कोर्ट में माननीय सिंगल जज के बैठने की विशिष्ट समय-सीमा बताई जाए। चूंकि एओआर को यह सूचित नहीं किया जा सकता है कि माननीय पीठ की सामान्य कोर्ट कार्रवाई किस समय खत्म होगी।'