सुप्रीम कोर्ट को Vidyo App से माइग्रेट करना चाहिए, ई-फाइलिंग सिस्टम थकाने वाला हैः वर्चुअल सिस्टम पर हुए सर्वे में वकीलों ने दी अपनी राय

Update: 2020-09-24 14:08 GMT

Supreme Court of India

वर्चुअल कोर्ट हियरिंग पर किए गए एक सर्वे में भाग लेने वाले सुप्रीम कोर्ट के अधिकांश वकीलों ने कहा है कि Vidyo App को अधिक प्रभावी तरीके से बदलने की आवश्यकता है,जैसे कि Cisco Webex।

अधिवक्ताओं ने कहा है कि वे नियमित रूप से या तो लॉग इन करने में असमर्थ रहे हैं या कोर्ट की कार्यवाही के दौरान स्वचालित रूप से लॉग आउट हो जाते थे। इसके अलावा, Vidyo App एक प्रभावी स्क्रीन शेयरिंग की सुविधा भी नहीं दे पा रही है, जिसके कारण वह खंडपीठ को कुछ दस्तावेज या निर्णयों की काॅपी नहीं दिखा पाते हैं, जबकि आमतौर पर ऐसे कागजात अदालत के समक्ष पेश किए जाते हैं।

प्रतिभागियों ने यह भी महसूस किया है कि उन अधिवक्ताओं या वादकारियों के लिए एक रूम होना चाहिए, जो सिर्फ अदालत की कार्यवाही को देखना चाहते हैं,परंतु उसमें भाग नहीं लेना चाहते हैं।

इस प्रकार, सुप्रीम कोर्ट के समक्ष वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से सुनवाई में भाग लेने वाले 210 अधिवक्ताओं में से 159 ने सुझाव दिया है कि सुप्रीम कोर्ट को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से सुनवाई का संचालन करने के लिए किसी अन्य सॉफ्टवेयर एप्लीकेशन को अपनाना चाहिए।

सर्वोच्च न्यायालय के पांच एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड के द्वारा यह सर्वेक्षण किया गया है, जिनके नाम इस प्रकार हैं- भाबना दास, डी अभिनव राव, हर्ष पाराशर, कृष्णा देव जे और आर.वी. योगेश। इन्होंने वर्तमान में अपनाए गए डिजिटल सिस्टम को बेहतर बनाने के तरीकों और साधनों को खोजने के उद्देश्य के साथ यह सर्वे किया था।

सर्वेक्षण में कुल 227 अधिवक्ताओं ने भाग लिया था, जिनमें 13 वरिष्ठ अधिवक्ता, 133 एडवोकेट आॅन रिकार्ड और 81 अधिवक्ता शामिल थे, जिनमें 8 अधिवक्ता ऐसे भी शामिल थे, जो अपनी कानून फर्मों का प्रतिनिधित्व कर रहे थे।

Vidyo App के संबंध में सामने आने वाले तकनीकी मुद्दों के कारण, 218 में से 155 अधिवक्ताओं ने दृढ़ता से महसूस किया है कि सुप्रीम कोर्ट को एक अलग सॉफ्टवेयर एप्लिकेशन पर माइग्रेट करना चाहिए या अपना लेनी चाहिए।

रिपोर्ट में कहा गया है, ''Cisco Webex, का दिल्ली हाईकोर्ट व एनसीएलएटी द्वारा सफलतापूर्वक उपयोग किया जा रहा है। इसलिए Cisco Webex अधिवक्ताओं के बीच सबसे लोकप्रिय विकल्प  है।''

अधिकांश प्रतिभागियों द्वारा व्यक्त की गई एक और चिंता यह थी कि संपूर्ण लिंक को साझा करने के काम को समन्वित करने के लिए केवल एक ही व्यक्ति को जिम्मेदारी दी गई है, जिसके कारण वह शिकायतों पर ध्यान नहीं दे पाता है और उनको दूर करने में असमर्थ है।

कई अधिवक्ताओं ने कहा कि, ''इस बात के संबंध में कोई स्पष्टता नहीं है कि उपलब्ध लिंक के माध्यम से कनेक्ट करते समय किसी भी तरह की तकनीकी समस्या के आने पर किससे संपर्क किया जाना चाहिए।''

उन्होंने सुझाव दिया है कि सुप्रीम कोर्ट में प्रत्येक वर्चुअल कोर्ट के लिए अलग-अलग नामित अधिकारी होने चाहिए, जो किसी भी तरह के तकनीकी प्रश्नों का जवाब देने और वर्चुअल हियरिंग के दौरान उत्पन्न होने वाली समस्याओं से निपटने के लिए फोन पर लगातार उपलब्ध रहें।

ई-फाइलिंग

सर्वे में भाग लेने वाले 213 में से 79.3 प्रतिशत अधिवक्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट की ई-फाइलिंग सुविधा का लाभ उठाया था। जबकि उनमें से अधिकांश (166 में से 98) ने ई-फाइलिंग को प्राथमिकता दी। काफी सारे एडवोकेट्स यानी लगभग 41 प्रतिशत को ई-फाइलिंग सिस्टम में कुछ समस्याओं का सामना करना पड़ा था।

8 अधिवक्ताओं ने कहा कि वे तकनीकी मुद्दों के कारण इसका उपयोग करने में असमर्थ थे।

प्रतिभागियों ने यह भी बताया कि उन्होंने ई-फाइलिंग की दोषपूर्ण प्रणाली को काफी ''थकाऊ'' पाया है क्योंकि अधिकांश क्लर्क इस प्रणाली से परेशान पाए गए हैं। उन्होंने भारी-भरकम याचिका दायर करने के बारे में चिंता व्यक्त की और बताया कि इन याचिकाओं को अपलोड करने और रजिस्ट्री द्वारा उसको प्रिंट करने में बहुत समय लग जाता है,जिससे काफी देरी हो जाती है।

रिपोर्ट के अनुसार,

'' बड़े स्तर पर अधिवक्ताओं को लगता है कि इंटरफेस उपयोगकर्ता के अनुकूल नहीं है, अनावश्यक रूप से इसमें अधिवक्ताओं को काफी सारा विवरण भरने की आवश्यकता होती है। वहीं रजिस्ट्री से मिलने वाला सहयोग भी अपर्याप्त है। अधिवक्ताओं ने इस बात पर भी चिंता जाहिर की है कि ई-फायलिंग के तुरंत बाद डायरी संख्या नहीं मिलती है,जबकि फिजिकल फाइलिंग में इस तरह की डायरी संख्या तुरंत मिल जाती है।''

मेंशनिंग एंड लिस्टिंग

सर्वे में भाग लेने वाले अधिवक्ताओं में से 41.8 प्रतिशत के मामले तभी सूचीबद्ध हुए थे,जब उन्होंने '' मामले की तात्कालिकता को इंगित करते हुए एक मेंशनिंग आवेदन दायर किया था।''

इसके अलावा, जिन मामलों में मेंशनिंग आवेदन को अस्वीकार कर दिया गया था,उनमें इसके पीछे का कारण नहीं बताया गया था। ऐसे में यह स्पष्ट नहीं हो पाता था कि मामला कब सूचीबद्ध होने की संभावना है।

रिपोर्ट में बताया गया है कि-

''काफी सारे प्रतिभागियों (34 प्रतिशत) के मामलों को सूचीबद्ध करने में दस दिन या उससे अधिक दिन की देरी की गई थी। कुछ अवसरों पर, यह देरी मेंशनिंग आवेदन दायर करने के बावजूद भी हुई है और मामले कई दिनों तक लंबित पड़े रहे हैं।''

पूरी रिपोर्ट पढ़ने के लिए यहां से डाउनलोड करें।



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