रामजन्मभूमि- बाबरी मस्जिद भूमि विवाद की लाइव स्ट्रीमिंग की याचिका पर SC ने रजिस्ट्री से पूछा, क्या संभव है लाइव स्ट्रीमिंग

Update: 2019-09-16 08:44 GMT

रामजन्मभूमि- बाबरी मस्जिद भूमि विवाद की सुनवाई की लाइव स्ट्रीमिंग की मांग वाली याचिका पर सोमवार को CJI रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री से पूछा है कि क्या सुप्रीम कोर्ट में लाइव स्ट्रीमिंग संभव है? अगर ये संभव है तो यह कब से शुरू की जा सकती है। पीठ ने कहा कि रजिस्ट्री से रिपोर्ट आने के बाद पीठ इस मुद्दे को तय करेगी।

जस्टिस नरीमन की पीठ ने याचिका को भेजा था CJI रंजन गोगोई के पास

इससे पहले 6 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस रोहिंटन एफ. नरीमन की पीठ ने इस याचिका को CJI रंजन गोगोई के पास भेज दिया था। मामले की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील विकास सिंह ने पीठ को बताया था कि इस संबंध में पिछले साल अदालती कार्रवाई की लाइव स्ट्रीमिंग के आदेश जारी किए थे।

इस पर जस्टिस नरीमन ने कहा था, "ये कैसे हो सकता है१ अदालत ने पहले ही कहा था कि संवेदनशील मामलों की स्ट्रीमिंग नहीं होगी। क्या अयोध्या मामला संवेदनशील नहीं है? ये अतिसंवेदनशील है।"

अदालत को सुझाए गए लाइव स्ट्रीमिंग के विकल्प

इस पर विकास सिंह ने कहा था कि अगर लाइव स्ट्रीमिंग संभव नहीं है तो कम से कम ऑडियो रिकॉर्डिंग और दलीलों की ट्रांसक्रिप्शन शुरू कर देना चाहिए। यह गंभीर सामाजिक और संवैधानिक महत्व का मामला है।

इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हम खुली अदालत हैं, लेकिन बाहरी लोगों के लिए नहीं बल्कि वादियों के लिए। इसके बाद पीठ ने मामले को सुनवाई के लिए चीफ जस्टिस के पास भेज दिया था।

RSS के पूर्व विचारक ने की थी मामले की लाइव स्ट्रीमिंग की मांग

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के पूर्व विचारक के. एन. गोविंदाचार्य ने सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या रामजन्मभूमि- बाबरी मस्जिद भूमि विवाद की दिन-प्रतिदिन की कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है।

अदालत में मामले की चल रही है दिन-प्रतिदिन सुनवाई

इससे पहले पूर्व सुप्रीम कोर्ट जज जस्टिस एफएमआई कलीफुल्ला की अध्यक्षता वाले पैनल ने अयोध्या विवाद को सुलझाने में मध्यस्थता कार्यवाही की विफलता के बारे में एक रिपोर्ट प्रस्तुत की थी और इसके बाद 5 न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 6 अगस्त से दिन-प्रतिदिन सुनवाई की शुरुआत करने का फैसला किया और ये सुनवाई शुरू हो गई। अभी तक 20 दिनों की सुनवाई पूरी हो चुकी है।

लाइव स्ट्रीमिंग को लेकर याचिका में 2018 के अदालत के फैसले का हवाला

वकील विराग गुप्ता के माध्यम से दायर की गई याचिका में शीर्ष अदालत के सितंबर 2018 के फैसले का उल्लेख किया गया है जिसमें कहा गया था कि अदालत की कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग होनी चाहिए।

याचिका के अनुसार लगभग 1 साल बीतने के बावजूद अभी तक सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लागू नहीं किया जा सका है। याचिका में कहा गया है कि देश के पास अयोध्या मामले की लाइव स्ट्रीमिंग की व्यवस्था करने के साधन मौजूद हैं। आगे यह दावा किया गया है कि इस मामले की सुनवाई के लिए इस साल जनवरी में भारत सरकार और सुप्रीम कोर्ट को पहले ही एक पत्र लिखा गया था।

गोविंदाचार्य ने याचिका में कहा, "यह मामला राष्ट्रीय महत्व का विषय है। करोड़ों लोग हैं ...., जो इस अदालत के समक्ष अपनी कार्यवाही देखना चाहते हैं, लेकिन सर्वोच्च अदालत में वर्तमान मानदंडों के कारण वे ऐसा नहीं कर सकते।"

"मामले की लाइव स्ट्रीमिंग करेगी 'संवैधानिक देशभक्ति' को पूरा"

याचिकाकर्ता यह भी कह रहे हैं कि चूंकि संविधान में भगवान राम के चित्र हैं इसलिए अयोध्या मामले की लाइव स्ट्रीमिंग "संवैधानिक देशभक्ति" को पूरा करेगी।

" .. इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि संविधान की मूल प्रतियां ही भगवान राम के चित्रों का विस्तार करती हैं। यह प्रस्तुत किया गया है कि इस न्यायालय के समक्ष कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग संवैधानिक देशभक्ति के जनादेश को भी पूरा करेगी।"

इलाहाबाद HC के फैसले के खिलाफ अपील में अयोध्या मामला पहुँचा है SC

दरअसल SC में अपीलों का समूह इलाहाबाद उच्च न्यायालय के वर्ष 2010 के फैसले के खिलाफ है, जिसमें यह फैसला सुनाया गया था कि अयोध्या की 2.77 एकड़ भूमि को 3 भागों में विभाजित किया जाए, जिसमें 1/3 हिस्से में राम लला या शिशु राम के लिए हिंदू सभा द्वारा प्रतिनिधित्व किया जाना है, इस्लामिक सुन्नी वक्फ बोर्ड में 1/3 और शेष 1/3 हिस्सा हिंदू धार्मिक संप्रदाय निर्मोही अखाड़ा को दिया जाए।  

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