सोशल मीडिया खातों को आधार से लिंक करने की नई याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई से इनकार किया 

Update: 2019-10-14 06:49 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को सोशल मीडिया खातों को अनिवार्य रूप से आधार के साथ जोड़ने के लिए दाखिल याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया।

जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की पीठ ने याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय से कहा कि वह पहले हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाएं और मामले को सीमित करते हुए उन्हें हाईकोर्ट जाने की स्वतंत्रता प्रदान की। पीठ ने यह भी कहा कि जरूरी नहीं कि सारे मामलों को सुप्रीम कोर्ट में ही सुना जाए।

याचिकाकर्ता की दलीलें

दरअसल दलील में यह कहा गया था कि फेक और पेड न्यूज को नियंत्रित करने के लिए फर्जी सोशल मीडिया खातों को निष्क्रिय करने के लिए आधार प्रमाणीकरण आवश्यक है। उपाध्याय ने यह भी कहा था कि फर्जी खातों का इस्तेमाल राजनीतिक दलों द्वारा अक्सर ही किया जाता है और मतदान के समापन से पहले 48 घंटे के दौरान भी उम्मीदवारों के प्रचार और अन्य "चुनावी गतिविधियों" के लिए भी इनका प्रयोग होता है।

याचिकाकर्ता ने इस संबंध में यह प्रस्तुत किया कि लगभग 3.5 मिलियन फर्जी ट्विटर हैंडल और 35 मिलियन फर्जी फेसबुक अकाउंट हैं, जिनका उपयोग फर्जी, झूठे बनाए गए समाचार प्रसारित करने के लिए किया गया है।

आगे यह प्रस्तुत किया गया कि प्रख्यात राजनीतिक हस्तियों के नाम पर बनाए गए इन हैंडल का इस्तेमाल जनता को गुमराह करने के लिए किया जाता है और फर्जी खबरें फैलाकर चुनाव के नतीजों को प्रभावित किया जाता है।

दरअसल मद्रास, बॉम्बे और मध्य प्रदेश के उच्च न्यायालयों में भी ऐसी ही याचिकाएं दायर की गई हैं। मामले की सुनवाई के दौरान मद्रास उच्च न्यायालय की एक पीठ ने आधार-सोशल मीडिया लिंक करने के मुद्दे पर विचार नहीं करने का फैसला किया और इसके बजाय कानून प्रवर्तन एजेंसियों और इंटरनेट मध्यस्थों के बीच सहयोग सुनिश्चित करने के बड़े मुद्दे पर विचार करने का फैसला किया।

हालांकि फेसबुक ने इन मामलों को हाई कोर्ट से सुप्रीम कोर्ट ट्रांसफर करने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। 

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