सुप्रीम कोर्ट ने मोहलत की अवधि के दौरान EMI पर ब्याज लेने पर चिंता जताई, मामले को 12 जून के लिए सूचीबद्ध किया

Update: 2020-06-04 06:29 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा मोहलत की अवधि के दौरान EMI पर ब्याज लेने की छूट देने की अनुमति देने पर चिंता व्यक्त करते हुए मौखिक टिप्पणियां कीं।

जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस एस के कौल और जस्टिस एम आर शाह की पीठ ने गजेन्द्र शर्मा की 27 मार्च और 22 मई के RBI परिपत्रों को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई की, जिसमें उन्होंने वित्तीय संस्थानों को 6 महीने की मोहलत के दौरान ऋण पर ब्याज लगाने की अनुमति को रद्द करने की मांग की है।

जस्टिस भूषण ने कहा, 

 "इसमें दो मुद्दे हैं: स्थगन अवधि के दौरान कोई ब्याज नहीं, और ब्याज पर कोई ब्याज नहीं।"

जस्टिस एम आर शाह की टिप्पणी के अनुसार, मोहलत की अनुमति देते समय ब्याज देना "हानिकारक" है।

इस पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि वह वित्त मंत्रालय और आरबीआई से निर्देश मांगेंगे।

इस दौरान जवाबी हलफनामे में RBI का ये रुख कि ब्याज की माफी से ऋण देने वाली संस्थाओं की वित्तीय सेहत पर असर पड़ेगा, याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ वकील रा जीव दत्ता ने प्रस्तुत किया

"बिल्ली बैग से बाहर आ गई है। वे कह रहे हैं कि बैंक का लाभ अधिक महत्वपूर्ण है।"

" तो केवल बैंकों को कमाना चाहिए और देश के बाकी हिस्से नीचे चले जाएं ?" वरिष्ठ वकील ने पूछा।

वरिष्ठ वकील ने एयर इंडिया मामले में अदालत की टिप्पणियों का उल्लेख किया कि लोगों का स्वास्थ्य मुनाफे से ज्यादा महत्वपूर्ण है।

जवाब में, जस्टिस अशोक भूषण ने कहा "हम जानते हैं, आर्थिक पहलू लोगों के स्वास्थ्य से अधिक नहीं होना चाहिए।"

पीठ ने याचिकाकर्ता को फिर से जवाब दाखिल करने का समय देते हुए मामले को 12 जून को सूचीबद्ध कर दिया। कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल को तब तक निर्देश प्राप्त करने के लिए कहा।

पीठ ने मामले से पहले RBI के जवाबी हलफनामे की सामग्री की रिपोर्टिंग करने पर मीडिया पर भी नाराजगी जताई।

जस्टिस भूषण ने मामले की सुनवाई शुरू होते ही पूछा, 

" RBI कोर्ट में आने से पहले मीडिया में हलफनामा दाखिल कर रहा है!",

याचिकाकर्ता गजेंद्र शर्मा ने आरबीआई द्वारा 31 मई तक EMI के भुगतान पर तीन महीने की मोहलत देने के बाद ऋण पर ब्याज वसूलने को चुनौती दी है, जिसे अब 31 अगस्त, 2020 तक बढ़ा दिया गया है।

याचिका में इसे असंवैधानिक करार दिया गया है, क्योंकि लॉकडाउन के दौरान, लोगों की आय पहले ही कम हो गई है और वे वित्तीय कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं। 

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