INX मीडिया : सुप्रीम कोर्ट ने ED केस में पी चिदंबरम को जमानत दी, बाहर आने का रास्ता साफ

Update: 2019-12-04 05:39 GMT

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस आर बानुमति, जस्टिस ए एस बोपन्ना और जस्टिस हृषिकेश रॉय की तीन जजों की बेंच ने आईएनएक्स मीडिया मनी लॉन्ड्रिंग आरोपों के संबंध में प्रवर्तन निदेशालय द्वारा दर्ज मामले में पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री पी चिदंबरम को जमानत दे दी। इसके साथ ही 106 वें दिन उनके जेल से बाहर आने का रास्ता साफ हो गया है क्योंकि सीबीआई केस में सुप्रीम कोर्ट से ही चिदंबरम को पहले जमानत मिल चुकी है।

पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा है कि वो कोर्ट की अनुमति के बिना देश छोड़कर नहीं जाएंगे। गवाहों से संपर्क नहीं रखेंगे। मीडिया में इंटरव्यू नहीं देंगे। 2-2 लाख की श्योरटी और निजी मुचलके पर जमानत दी गई है।

पीठ ने दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले की आलोचना करते हुए कहा कि मेरिट पर टिप्पणी नहीं की जानी चाहिए थीं। हाईकोर्ट के फैसले को भी रद्द कर दिया गया है।

सुप्रीम कोर्ट ने 28 नवंबर को पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री पी चिदंबरम द्वारा दिल्ली उच्च न्यायालय के 15 नवंबर के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया जिसमें आईएनएक्स मीडिया मनी लॉन्ड्रिंग आरोपों के संबंध में प्रवर्तन निदेशालय द्वारा दर्ज मामले में उन्हें जमानत देने से इनकार कर दिया गया था।

पीठ ने ED के लिए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की दलीलें सुनी थीं।इसी बेंच ने आईएनएक्स मीडिया सौदे के संबंध में केंद्रीय जांच ब्यूरो द्वारा दर्ज मामले में चिदंबरम को जमानत दी थी।

चिदंबरम की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल और डॉ ए एम सिंघवी पेश हुए, जो पिछले 100 दिनों से हिरासत में हैं। कोर्ट ने ईडी को एक सीलबंद कवर में उसके द्वारा एकत्रित सामग्री जमा करने की अनुमति भी दी थी।

हालांकि दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैथ ने पाया था कि चिदंबरम ने जमानत देने के ट्रिपल परीक्षणों - फरार होने का कोई मौका नहीं, सबूतों से छेड़छाड़ और गवाहों को प्रभावित करने वाले को संतुष्ट किया लेकिन जमानत को अपराध की गंभीरता का हवाला देते हुए अस्वीकार कर दिया गया।

चिदंबरम ने इस आदेश को चुनौती दी कि जमानत खारिज करने के लिए अपराध की गंभीरता एकमात्र आधार नहीं हो सकती है। सिब्बल और सिंघवी दोनों ने प्रस्तुत किया कि ईडी कई दिनों की हिरासत के बावजूद, कथित मनी लॉन्ड्रिंग लेनदेन के लिए चिदंबरम को जोड़ने वाले किसी भी सबूत का पता लगाने में सक्षम नहीं हुईमहै। यह भी तर्क दिया गया कि सजा की अवधि अपराध की गंभीरता को निर्धारित करने का पैमाना है।

चूंकि धन शोधन निवारण अधिनियम के तहत अपराध 7 साल से कम अवधि के लिए दंडनीय हैं, इसलिए उन्हें 'गंभीर अपराध' नहीं कहा जा सकता है, वरिष्ठ वकीलों ने प्रस्तुत किया। उन्होंने यह भी कहा था कि उच्च न्यायालय ने विवेक के इस्तेमाल किए बिना फैसले में ईडी के आरोपों को ही पुन: पेश किया था। उन्हें जेल में सिर्फ इसलिए रखा गया है क्योंकि वह कार्ति चिदंबरम के पिता हैं, जो इस मामले के एक प्रमुख आरोपी हैं और उन्हें इससे जोड़ने वाला कोई "एक भी सबूत" नहीं है। यह भी प्रस्तुत किया गया था कि कार्ति चिदंबरम सहित मामले के अन्य आरोपी जमानत पर बाहर हैं और चिदंबरम को निशाना बनाया जा रहा है।

याचिका का विरोध करते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि आर्थिक अपराधों को एक अलग वर्ग के रूप में माना जाना चाहिए, क्योंकि वे देश की आर्थिक प्रणाली को प्रभावित करते हैं। भारत पर धन शोधन अपराधों का मुकाबला करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय दायित्व हैं। ऐसे अपराधों में जमानत देने से समाज में गलत संकेत जाएगा।

तुषार ने सिंघवी के इस तर्क का जवाब दिया था कि जमानत को अस्वीकार करने के लिए गंभीरता एकमात्र आधार नहीं हो सकती है।

"मनी लॉंड्रिंग करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करना एक वैश्विक पहल थी क्योंकि यह कई राष्ट्रों को प्रभावित करता है। इसलिए अपराध की गंभीरता , जमानत से इनकार करने के लिए एक आधार बनाती है।"

चिदंबरम को साजिश का "किंगपिन" करार देते हुए सॉलिसिटर जनरल ने कहा था कि पूर्व केंद्रीय मंत्री को हर चीज की पूरी जानकारी थी। तुषार ने उच्च न्यायालय के निष्कर्षों को भी चुनौती दी कि चिदंबरम द्वारा साक्ष्यों से छेड़छाड़ या गवाहों को प्रभावित करने की संभावना नहीं है।

" चिदंबरम एक बहुत शक्तिशाली व्यक्ति है और हमारे पास यह साबित करने के लिए दस्तावेज हैं कि वह बहुत महत्वपूर्ण गवाहों पर, हिरासत में या बाहर नियंत्रण जारी रखना चाहते हैं।

SG ने कहा था कि कार्ति चिदंबरम जमानत पर बाहर नहीं हैं।जधन शोधन निवारण अधिनियम के कुछ प्रावधान की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली एक याचिका में उन्हें दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा गिरफ्तारी से अंतरिम संरक्षण दिया गया था। इसलिए, चिदंबरम कार्ति के साथ समानता का दावा नहीं कर सकते। उन्होंने ये भी कहा था कि संरक्षण हटते ही ईडी कार्ति को भी गिरफ्तार करेगी।

दरअसल चिदंबरम को सीबीआई ने 21 अगस्त को भ्रष्टाचार के मामले में गिरफ्तार किया था। 15 मई, 2017 को विदेशी निवेश संवर्धन बोर्ड (एफआईपीबी) में वित्त मंत्री के रूप में चिदंबरम के कार्यकाल के दौरान

आईएनएक्स मीडिया समूह को 2007 में 305 करोड़ रुपये के विदेशी धन प्राप्त करने के लिए मंजूरी देने में अनियमितता का आरोप लगाया गया है।

सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय दोनों ने आईएनएक्स सौदे के संबंध में उसके खिलाफ अलग-अलग मामले दर्ज किए हैं।

58 दिन हिरासत में बिताने के बाद - 15 दिन की सीबीआई हिरासत और 53 दिन की न्यायिक हिरासत - सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें 22 अक्टूबर को सीबीआई द्वारा दर्ज मामले में जमानत दी थी। न्यायमूर्ति आर बानुमति की अध्यक्षता वाली पीठ ने सीबीआई के इस तर्क को खारिज कर दिया था कि चिदंबरम का फरार होने का जोखिम है और वह गवाहों को प्रभावित कर सकते हैं।

हालांकि, वह सुप्रीम कोर्ट की राहत के बाद भी तिहाड़ जेल से रिहा नहीं हो सके क्योंकि उन्हें ED ने 17 अक्टूबर को हिरासत में ले लिया था।

18 अक्टूबर को सीबीआई ने चिदंबरम, उनके बेटे कार्ति, पूर्व आईएनएक्स मीडिया प्रमुख पीटर मुखर्जी और ग्यारह अन्य के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 120 बी, 420, 468, 471 के तहत धोखाधड़ी, जालसाजी और आपराधिक साजिश भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 9 और 13 (1) (डी) के तहत आरोप पत्र दाखिल किया था।  

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