व्याभिचार को अपराध के दायरे से बाहर करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर पुनर्विचार याचिकाएं खारिज

SC Dismisses Review Petitions Against Judgment Decriminalizing Adultery

Update: 2020-06-25 12:57 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने आईपीसी की धारा 497 को रद्द करने के अपने फैसले के खिलाफ दायर दो पुनर्विचार याचिकाओं को खारिज कर दिया है। इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता की धारा 497 को रद्द करके व्याभिचार (Adultery) को अपराध के दायरे से बाहर कर दिया था।

ऑल रिलिजियस एफिनिटी मूवमेंट नाम के एक संगठन ने फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर की थी।

भारत के मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने पुनर्विचार याचिकाओं को खारिज करते हुए कहा,

"हमने ध्यान से पुनर्विचार याचिकाओं और जुड़े हुए कागजात देखे हैं। हमें सुनवाई करने योग्य कोई भी आधार नहीं मिला है।"

भारतीय दंड संहिता की धारा 497 में एक विवाहित व्यक्ति को दूसरे पुरुष की पत्नी के साथ यौन संबंध बनाने के लिए दंडित किया गया। हालांकि, अधिनियम में उस स्थिति में सजा से छूट दी गई थी, यदि यह दूसरी महिला के पति की सहमति या मौन सहमति से किया जाता है। इसके अलावा, प्रावधान पत्नी को सजा से छूट देता है, और कहता है कि पत्नी को दुष्प्रेरक नहीं माना जाना चाहिए।

तत्कालीन सीजेआई दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविल्कर, जस्टिस आरएफ नरीमन, जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदु मल्होत्रा ​​की पीठ ने कहा था कि दंडात्मक प्रावधान ने एक महिला के सम्मान के अधिकार का उल्लंघन किया, जिसके परिणामस्वरूप भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन हुआ। यह भी देखा गया कि प्रावधान ने महिलाओं को संपत्ति के रूप में माना।

हाल ही में, ताइवान की संवैधानिक अदालत ने फैसला सुनाया था कि आपराधिक कानून के तहत व्याभिचार को अपराध के दायरे में रखना असंवैधानिक हैं। इसने कहा कि ये प्रावधान लोगों की यौन स्वायत्तता को सीधे प्रतिबंधित करते हैं, और लोगों की निजता में भी हस्तक्षेप करते हैं।

आदेश की प्रति डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



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