"समुदाय की जरूरतों और हितों को देखना होगा": सुप्रीम कोर्ट ने चांदनी चौक के दशकों पुराने हनुमान मंदिर को हटाने के खिलाफ याचिका को खारिज किया, वैकल्पिक स्थल के अनुदान के लिए प्रतिनिधित्व देने को कहा
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को दिल्ली के चांदनी चौक में 3 जनवरी को दशकों पुराने हनुमान मंदिर में तोड़फोड़ के खिलाफ याचिका को एक वैकल्पिक स्थल के अनुदान के लिए प्रतिनिधित्व देने की स्वतंत्रता के साथ खारिज कर दिया। इस घटना ने राष्ट्रीय राजधानी में हंगामा मचा दिया था।
इस तोड़फोड़ ने, जो कि दिल्ली सरकार की चांदनी चौक पुनर्विकास योजना का हिस्सा थी, ने आम आदमी पार्टी (आप) जो सरकार का नेतृत्व करती है, और भाजपा, जो उत्तरी दिल्ली नगर निगम (एनडीएमसी) को नियंत्रित करती है, के बीच तनातनी भी पैदा
कर दी थी,जिस नागरिक निकाय ने मंदिर को हटाने की कार्यवाही थी थी।
जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एम आर शाह की पीठ दिल्ली के चांदनी चौक से हनुमान मंदिर को हटाने के दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी। जितेंद्र सिंह विशेन की याचिका में सुप्रीम कोर्ट से दिल्ली सरकार और उत्तरी दिल्ली नगर निगम को हनुमान मंदिर को फिर से स्थापित करने का आदेश मांगा था।
इसके साथ ही, यह दावा किया गया है कि चांदनी चौक का सौंदर्यीकरण तब तक नहीं किया जाना चाहिए जब तक कि दिल्ली सरकार और उत्तरी दिल्ली नगर निगम उसी स्थान पर हनुमान मंदिर को दोबारा स्थापित नहीं कर देते। याचिका में कहा गया कि मंदिर को हटाने का काम कानून के अनुसार प्रक्रिया बिना पालन किए किया गया था, जिसने भक्तों के पूजा के अधिकार का उल्लंघन किया। यह मंदिर पांच दशकों से चांदनी चौक में है और बड़ी संख्या में भक्त यहां पूजा के लिए आते हैं लेकिन यहां कभी कोई समस्या नहीं हुई।
याचिकाकर्ता के लिए वकील विष्णु शंकर जैन ने आग्रह किया,
"दिल्ली उच्च न्यायालय ने इस मामले में मंदिर प्रबंधन, भक्तों या लोगों की सुनवाई किए बिना एक निर्णय दिया, जिसके बाद 3 जनवरी, 2021 को मंदिर को हटा दिया गया ... लोगों की भावनाएं प्रभावित हुईं।"
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा,
"यह चांदनी चौक पुनर्विकास योजना के मद्देनज़र है ... आम लोग उस क्षेत्र का उपयोग करते हैं। हमें समुदाय की जरूरतों और हितों को देखना होगा।"
न्यायाधीश ने कहा,
"मामले को आगे न बढ़ाएं। मंदिर के 'पुजारी' को वैकल्पिक भूमि के आवंटन के लिए एक आवेदन देने दें जहां लोग प्रार्थना आदि कर सकें।"
चूंकि याचिकाकर्ता इस सुझाव से सहमत था, इसलिए पीठ ने एसएलपी को वापस लेने पर खारिज कर दिया।
पीठ ने हालांकि, मंदिर के लिए एक वैकल्पिक स्थल के आवंटन के लिए सक्षम प्राधिकारी के समक्ष एक प्रतिनिधित्व करने की अनुमति दी, जो कि उस क्षेत्र से दूर हो, जहां यातायात या पैदल चलने वालों की आवाजाही के लिए कोई खतरा नहीं हो।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने नवंबर, 2019 में मंदिर को हटाने का आदेश दिया था। दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार की 'धार्मिक समिति' के फैसले को पलट दिया था, जिसने पुनर्विकास योजना में हनुमान मंदिर और शिव मंदिर के एकीकरण का सुझाव दिया था।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने दिल्ली सरकार को मंदिरों को हटाने के लिए "यू-टर्न" के लिए फटकार लगाई थी, जिसमें संकेत दिया गया था कि अदालत ने 2015 में उत्तरी दिल्ली नगर निगम को स्वयं निर्देश दिया था कि वह अतिक्रमण हटाए, जिसमें मंदिर भी शामिल है, जो चांदनी चौक पुनर्विकास परियोजना प्रगति को रोकता है।
गौरतलब है कि, सुप्रीम कोर्ट ने 13 जुलाई 2020 के आदेश में उस याचिका का निपटारा किया था जिसमें दिल्ली सरकार ने एसएलपी में 14 नवंबर, 2019 के उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने पर बयान दिया था कि वह आगे के निर्देशों के लिए उच्च न्यायालय के समक्ष एक उपयुक्त आवेदन लेगी, जैसा कि जरूरी हो सकता है।
न्यायालय ने इस आधार पर हस्तक्षेप के लिए आवेदन को खारिज कर दिया कि जब दिल्ली सरकार को सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार अदालत से संपर्क करने की स्वतंत्रता दी गई थी और अब तक किसी भी राहत के लिए अदालत से संपर्क नहीं किया था, तो इस आवेदन पर सुनवाई करने का कोई कारण नहीं है जो कि 14 नवंबर, 2019 के पहले के आदेश द्वारा तय किए गए और खारिज किए गए उसी मुद्दे को फिर से उठाने के प्रयास के अलावा कुछ नहीं था।
फिर, नवंबर 2020 में, दिल्ली उच्च न्यायालय ने श्री मनोकामना सिद्ध श्री हनुमान सेवा समिति द्वारा दाखिल उस आवेदन पर सुनवाई करने कि हस्तक्षेप करने का कोई भी अनुरोध आप सरकार से ही होना चाहिए।