सुप्रीम कोर्ट ने COVID 19 संक्रमित छात्र को अलग केंद्र पर CLAT 2020 परीक्षा देने के अनुमति दी
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक COVID 19 संक्रमित एक आवेदक को CLAT 2020 प्रवेश परीक्षा में उपस्थित होने की अनुमति दे दी।
जस्टिस अशोक भूषण, आर सुभाष रेड्डी और एमआर शाह की खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि केवल इच्छुक अभ्यर्थी को, जिसने उक्त तत्काल आवेदन के जरिए अदालत से संपर्क किया है, सुविधा का लाभ उठाने और परीक्षा देने की अनुमति दी जाएगी। अदालत ने कहा कि आवेदक अधिकारियों को आदेश की एक प्रति देगा ताकि उसे परीक्षा देने दिया जाए।
जस्टिस भूषण ने कहा, "समय बहुत कम है। हम निर्देश देंगे कि आपको परीक्षा देने की अनुमति दी जाए।"
आवेदकों की ओर से एडवोकेट गरिमा प्रसाद और सुमित चंद्रा उपस्थित हुए।
चंद्रा ने कोर्ट को बताया कि CLAT परीक्षा में शामिल होने के इच्छुक मात्र एक या दो COVID संक्रमित छात्र नहीं, बल्कि कई अन्य छात्रों ने भी अपने लाभ के लिए अदालत से एक सामान्य आदेश पारित करने का आग्रह किया है।
चंद्रा ने तर्क दिया, "उन्होंने (कंसोर्टियम ने) अपने एसओपी में ऐसा कहा था।"
हालांकि, कोर्ट ने सामान्य आदेश पारित करने से मना कर दिया और कहा कि समय की कमी है और परीक्षा आयोजित की जानी है।
जस्टिस शाह ने कहा, "आप अपनी चिंता करें, दूसरों की चिंता क्यों कर रहे हैं?,"
याचिका COVID संक्रमित CLAT उम्मीदवार दीपांशु त्रिपाठी ने दायर की थी।
आवेदक ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा 21 सितंबर, 2020 को राकेश कुमार अग्रवाल और अन्य बनाम नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया यूनिवर्सिटी, बेंगलुरु और अन्य में दिए गए फैसले
CLAT कंसोर्टियम के फैसले, जिसमें उन्होंने COVID-19 संक्रमित उम्मीदवारों को परीक्षा में शामिल होने से रोक दिया था, पर स्पष्टीकरण मांगा था। CLAT कंसोर्टियम ने कहा था कि वह COVID-19 संक्रमित उम्मीदवारों को परीक्षा केंद्रों पर
परीक्षा केंद्रों पर अलग-थलग कमरे नहीं दे पाएगा, जैसा कि पहले वादा किया गया था। (परीक्षा के लिए जारी एडमिट कार्ड में प्रावधान था कि COVID संक्रमित छात्रों को अलग कक्ष/ केंद्र प्रदान किए जाएंगे।)
CLAT कंसोर्टियम के नवीनतम आदेश के अनुसार, जिन उम्मीदवारों ने COVID -19 संक्रमित पाया गय है और मेडिकल निगरानी में हैं, उन्हें 28 सितंबर 2020 की CLAT 2020 परीक्षा में शामिल होने की अनुमति नहीं होगी।
आवेदक ने आरोप लगाया था कि, "नेशनल लॉ यूनिवर्सिटीज के कंसोर्टियम के रुख में अचानक आए बदलाव ने आवेदन को संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत प्रदत्त समानता के मौलिक अधिकार से वंचित कर दिया है।"
आवेदक ने एनएलएसआईयू, बैंगलोर के कुलपति श्री सुधीर कृष्णास्वामी के बयान पर भरोसा किया था, जिन्होंने लाइवलॉ द्वारा 9 जुलाई, 2020 को सूचित किया गया था कि, "परीक्षण केंद्रों पर स्वास्थ्य और सुरक्षा प्रोटोकॉल 'उच्चतम मानकों' का पालन किया जाएगा।
उन्होंने यह भी बताया कि कंसोर्टियम ने सभी केंद्रों को 'सामान्य परीक्षण कक्ष' और 'अलगाव कक्ष' में वर्गीकृत किया गया है।"
याचिका एडवोकेट गरिमा प्रसाद और एडवोकेट सुमित चंदर और एडवोकेट विनय कुमार ने दायर की है।
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