SC ने एनरॉन-दाभोल पावर प्रोजेक्ट मामले को पुनर्जीवित किया, नेताओं और नौकरशाहों पर हैं भ्रष्टाचार के आरोप
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को 2 दशक पुराने एनरॉन-दाभोल पावर प्रोजेक्ट समझौते के मामले को पुनर्जीवित कर दिया और महाराष्ट्र सरकार से यह पूछा कि वर्ष 2001 की गोडबोले समिति की उस रिपोर्ट पर क्या कार्रवाई हुई जिसमें इस सौदे में कई अनियमितताएं पाई गई थीं और राजनीतिज्ञों व नौकरशाहों के भ्रष्टाचार की ओर इशारा किया गया था।
मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ ने महाराष्ट्र के वकील निशांत कातनेश्वरकर की उस याचिका को खारिज कर दिया कि यह मामला बंद हो सकता है क्योंकि यह प्रभावहीन हो गया है।
CJI ने राज्य के वकील से कहा "हम इस मामले को बंद करने के आपके अनुरोध को स्वीकार नहीं कर रहे हैं। गोडबोले की रिपोर्ट पर सरकार द्वारा क्या कार्रवाई की गई या क्या कार्रवाई प्रस्तावित है, इसका पता लगाएं।" पीठ ने राज्य के वकील से यह भी पता लगाने के लिए कहा कि क्या समिति के सदस्यों में से कोई इस मामले में सुनवाई की तारीख (13 मार्च) को अदालत की सहायता करना चाहेगा।
पीठ सेंटर फॉर ट्रेड यूनियन ( CITU) की बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर एक विशेष अवकाश याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें सौदे की जांच के लिए दाखिल उसकी याचिका को हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया था।
याचिकाकर्ता ने महाराष्ट्र राज्य बिजली बोर्ड और दाभोल पावर कंपनी/एनरॉन के बीच 8 नवंबर 1993 को सरकार के फास्ट ट्रैक प्रोजेक्ट्स के हिस्से के रूप में 2550 मेगावाट का स्टेशन स्थापित करने के लिए बिजली परियोजना समझौते को चुनौती दी है।
बिजली परियोजना समझौते ("पीपीए") के लिए चुनौती यह थी कि यह भारतीय विद्युत (आपूर्ति) अधिनियम के तहत उचित मंजूरी के बिना तय हुआ था और इसको सीईए द्वारा अपेक्षित मंजूरी भी नहीं दी गई थी। यह भी आरोप लगाया गया कि एनरॉन ने दाभोल पावर प्रोजेक्ट अनुबंध प्राप्त करने के उद्देश्य से भारत में अधिकारियों को लगभग 20 मिलियन डॉलर की रिश्वत का भुगतान किया था।
यहां तक कि मामला शीर्ष अदालत में लंबित होने के बावजूद राज्य सरकार ने इस सौदे की जांच के लिए गोडबोले पैनल को नियुक्त किया। वर्ष 2001 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत कर पैनल ने कहा, "समिति ने केंद्र और राज्य में लगातार सरकारों और एजेंसियों द्वारा समय- समय पर एनरॉन परियोजना के संबंध में लिए गए कई फैसलों में अनिमियतताओं को पाया है।"
रिपोर्ट ने महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री शरद पवार (जो तब कांग्रेस पार्टी में थे), 13-दिन की भाजपा की केंद्र सरकार और शिवसेना सुप्रीमो बालासाहेब ठाकरे और मनोहर जोशी के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र सरकार की आलोचना की थी जिसने वर्ष 1996 में सौदे को फिर से लागू किया था। राज्य ने न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) कुर्दुकर की अध्यक्षता में एक जांच आयोग भी नियुक्त किया था।