सेम सेक्स मैरिज को मान्यता देने की मांग पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई का आज चौथा दिन था। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ भारत में सेम सेक्स मैरिज को मान्यता देने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई कर रही है। बेंच में चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस एस रवींद्र भट, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा शामिल हैं।
सीनियर एडवोकेट मेनका गुरुस्वामी ने आज दलीलें पेश कीं। उनकी दलीलें जानेंगे, लेकिन उससे पहले सीजेआई चद्रचूड़ ने क्या कहा वो जान लेते हैं। उन्होंने याचिकाकर्ताओं से कहा कि संसद को विवाह और तलाक के विषय पर कानून बनाने का अधिकार है और इसलिए हमें देखना होगा कि ऐसे मामलों में सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप की कितनी गुंजाइश है।
आगे कहा,
"आप इस बात पर विवाद नहीं कर सकते कि संसद के पास इस मुद्दे पर दखल देने की शक्ति है। विवाह और तलाक समवर्ती सूची में आते हैं। इसलिए हमें देखना होगा कि ऐसे मामलों में सुप्रीम कोर्ट के दखल की कितनी गुंजाइश है।"
सीजेआई ने विशाखा बनाम राजस्थान राज्य मामले का जिक्र किया. कहा कि इसमें कार्यस्थलों पर महिलाओं के खिलाफ यौन उत्पीड़न से निपटने के लिए के लिए दिशा-निर्देश जारी किए गए थे। कोर्ट ने ढांचा निर्धारित किया था, लेकिन इस ढांचे को तैयार करने का काम विधायिका कहा है।
सीनियर एडवोकेट मेनका गुरुस्वामी की दलीलों के जवाब में सीजेआई ने ये टिप्पणियां की।
अब आते हैं मेनका गुरुस्वामी की दलीलों पर। उन्होंने कहा कि सरकार अदालत में आकर ये नहीं कह सकती कि ये संसद का मामला है। जब किसी समुदाय के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है तो उन्हें भारत के संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत संवैधानिक कोर्ट का रुख करने का अधिकार है।
आगे कहती हैं, "हम ‘वी द पीपुल’ का हिस्सा हैं, संविधान का मूल ढांचा हमारा भी है और संसद हमें अपने अधिकारों से अलग नहीं रख सकता।“
गुरुस्वामी ने कहा कि याचिकाकर्ता कोई स्पेशल ट्रीटमेंट की मांग नहीं कर रहे हैं, बल्कि अपने रिलेशनशिप को मान्यता देने की मांग कर रहे हैं। स्पेशल मैरिज एक्ट की "व्यावहारिक व्याख्या" करने को कह रहे हैं।
चीफ जस्टिस चंद्रचूड और जस्टिस भट ने कहा कि स्पेशल मैरिज एक्ट और पर्सनल लॉ के लिंक को खारिज नहीं किया जा सकता है। इसमें किसी भी बदलाव का पर्सनल लॉ पर भी प्रभाव पड़ेगा।
कोर्ट ने पूछा कि क्या याचिकाकर्ता पूरे समुदाय के हितों का प्रतिनिधित्व कर रहें हैं।
इस पर गुरुस्वामी ने कहा कि जो इसका हिस्सा बनना चाहते हैं बन सकते हैं। समुदाय में कुछ लोग हो सकते हैं जो इसका हिस्सा नहीं बनना चाहते हैं।
याचिकाकर्ताओं में से एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति की ओर से सीनियर एडवोकेट जयाना कोठारी पेश हुईं. उन्होंने कहा कि ये एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति की दूसरी याचिका है। हमारा सबके लिए वैवाहिक समानता की मांग करते हैं, केवल सेम सेक्स कपल्स के लिए नहीं।
आगे कहा कि हर किसी को फैमिली का मौलिक अधिकार है और ऐसे फैमिली की मान्यता संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत होनी चाहिए। चाहे उनकी लैंगिक पहचान या लैंगिक रुझान कुछ भी हो।
उन्होंने कहा,
" हमारी फैमिली हमारी न केवल देखभाल करती है बल्कि मनोवैज्ञानिक और आर्थिक सहायता भी करती है। क्या हमें अपने परिवारों को मान्यता देने का अधिकार नहीं हो सकता है? ट्रांसपर्सन के पहले से ही परिवार हैं - वे रिश्तों में हैं, बच्चों को गोद ले रहे हैं लेकिन इन परिवारों को मान्यता नहीं दी जा रही है क्या एक परिवार सिर्फ इसलिए अलग है क्योंकि आपकी जेंडर पहचान अलग है?
उन्होंने कहा कि स्पेशल मैरिज एक्ट केवल पुरूषों और महिलाओं को केंद्र में रखता है। ट्रांसजेंडर्स को विवाह करने के उनके अधिकार से वंचित करता है। जेंडर के आधार पर भेदभाव अनुच्छेद 15 (1) का उल्लंघन है।
सीनियर एडवोकेट आनंद ग्रोवर ने भी अपने क्लाइंट का पक्ष रखा। उन्होंने स्पेशल मैरिज एक्ट और फॉरेन मैरिज एक्ट के तहत शादी को मान्यता देने की मांग की। कहा कि वे अमेरिका की थियरी ऑफ इंटिमेट एसोसिएशन पर फोकस करेंगे। मेरी एक याचिका हिंदुओं की ओर से है जो विदेश में रहते हैं और दूसरी एक इंटरफेथ कपल की है जिसमें एक हिंदू है।
आगे कहा कि इंटिमेट एसोसिएशन का अधिकार अनुच्छेद 21 में पढ़ा जा सकता है। प्राइवेसी, ऑटोनॉमी और डिग्निटी से इतर इसे आर्टिकल 21 में भी पढ़ सकते हैं।
एडवोकेट सौरभ कृपाल अपने सबमिशंस दिए। कृपाल ने कहा कि जब मूल अधिकारों का हनन होता है तो अदालत को दखल देना ही पड़ता है। अदालत को यह तय करना ही होगा कि हमें शादी करने का अधिकार है। अगर यह हेटरोसेक्सुअल कपल का केस होता तो कानून रद्द कर दिया जाता।