धारा 141 एनआई एक्ट| चेक ‌डिसऑनर के लिए केवल वही व्यक्ति जिम्‍मेदार, जो उसे जारी करते समय कंपनी के मामलों के संचालन के लिए जिम्मेदार: सुप्रीम कोर्ट

Update: 2023-10-11 11:37 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने 11 अक्टूबर को सुनाए गए एक फैसले में कंपनी द्वारा जारी चेक डिसऑनर के मामले में कंपनी के निदेशक के दायित्व से संबंधित सिद्धांतों को दोहराया।

एनआई एक्ट, 1881 की धारा 141 (ए) का उल्लेख करते हुए कोर्ट ने कहा, "केवल वह व्यक्ति, जो अपराध के समय कंपनी के व्यवसाय के संचालन का प्रभारी था और उसके प्रति जिम्मेदार था, साथ ही केवल कंपनी को अपराध का दोषी माना जाएगा और उसके खिलाफ कार्यवाही की जाएगी और दंडित किया जाएगा।"

जस्टिस सीटी रविकुमार और जस्टिस पीवी संजय कुमार की पीठ एक अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें एक व्यक्ति के खिलाफ एनआई एक्ट की धारा 138 के तहत शिकायत को रद्द करने की मांग की गई थी, जिसे केवल इस आधार पर आरोपी के रूप में नामित किया गया था कि वह साझेदारी फर्म का भागीदार था, जिसने चेक जारी किया था। पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट की ओर से सीआरपीसी की धारा 482 के तहत शक्तियों का प्रयोग करते हुए शिकायत को रद्द करने से इनकार करने के बाद अपील दायर की गई थी।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अपीलकर्ता की देनदारी के संबंध में शिकायत में एकमात्र दावा यह था कि वह फर्म का भागीदार था। "आरोपी नंबर 2 से 6 भागीदार होने के नाते आरोपी नंबर 1 के दिन-प्रतिदिन के आचरण और व्यवसाय के लिए जिम्मेदार हैं।" यह शिकायत में प्रासंगिक कथन था।

न्यायालय ने माना कि केवल यह कथन अपीलकर्ता पर आपराधिक दायित्व थोपने के लिए पर्याप्त नहीं है।

एसपी मणि और मोहन डेयरी बनाम डॉ स्नेहलता इलांगोवन 2022 लाइव लॉ (एससी) 772 का उल्लेख करते हुए, अदालत ने कहा कि शिकायत में विशिष्ट कथन देना शिकायतकर्ता की प्राथमिक जिम्मेदारी है, ताकि आरोपी को परोक्ष रूप से उत्तरदायी बनाया जा सके।

कोर्ट ने कहा,

"शिकायत में कहीं भी यह नहीं कहा गया है कि जब अपराध किया गया था, उस समय अपीलकर्ता कंपनी के व्यवसाय के संचालन का प्रभारी था। शिकायत में जो कहा गया है वह केवल इतना है कि आरोपी संख्या 2 से 6 हैं भागीदार होने के नाते कंपनी के दैनिक कार्य और व्यवसाय के लिए जिम्मेदार हैं। यह ध्यान रखना भी प्रासंगिक है कि शिकायत को समग्र रूप से पढ़ने से अपीलकर्ता की कोई स्पष्ट और विशिष्ट भूमिका का खुलासा नहीं होता है।''

इसने इस तथ्य पर भी ध्यान दिया कि अपीलकर्ता ने शिकायतकर्ता द्वारा भेजे गए नोटिस का जवाब दिया था, जिसमें बताया गया था कि चेक जारी होने से दो साल पहले वह फर्म से सेवानिवृत्त हो गया था।

जस्टिस रविकुमार द्वारा लिखे गए फैसले में अशोक शेवक्रमणी बनाम आंध्र प्रदेश राज्य 2023 लाइव लॉ (एससी) 622 में हाल के फैसले का भी उल्लेख किया गया है जिसमें कहा गया था कि "केवल इसलिए कि कोई कंपनी के मामलों का प्रबंधन कर रहा है, वह कंपनी के व्यवसाय के संचालन का प्रभारी या कंपनी के व्यवसाय के संचालन के लिए कंपनी के प्रति जिम्मेदार व्यक्ति नहीं बन जाएगा।"

उक्त टिप्पण‌ियों के साथ कोर्ट ने अपील को अनुमति दी थी।

केस टाइटल: सिबी थॉमस बनाम सोमानी सेरामिक्स लिमिटेड।

साइटेशन: 2023 लाइव लॉ (एससी) 869

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