एक वर्षीय एलएलएम पाठ्यक्रम समाप्त करने वाले बीसीआई के नियम इस वर्ष लागू नहीं होंगे : बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने सुप्रीम कोर्ट में कहा

Update: 2021-02-11 07:24 GMT

बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में कहा कि एक वर्षीय एलएलएम पाठ्यक्रम समाप्त करने वाले बीसीआई नियम को इस वर्ष लागू नहीं किया जाएगा।

बीसीआई प्रेसिडेंट मनन कुमार मिश्रा ने अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया, "बीसीआई के नियमों में एक वर्षीय एलएलएम पाठ्यक्रम समाप्त करने का प्रस्ताव शैक्षणिक वर्ष 2022-2023 से लागू किया जाना प्रस्तावित है।"

कंसोर्टियम ऑफ नेशनल लॉ यूनिवर्सिटीज़ की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी ने बताया कि बीसीआई अध्यक्ष का यह आश्वासन इस साल के बारे में विश्वविद्यालयों की आशंकाओं को दूर करेगा।

सुप्रीम कोर्ट ने आदेश में बीसीआई अध्यक्ष के सब्मिशन को दर्ज किया और याचिका की सुनवाई चार सप्ताह के लिए स्थगित कर दी। यथास्थिति का आदेश देने के लिए कंसोर्टियम ऑफ नेशनल लॉ यूनिवर्सिटीज़ और अन्य ने याचिकाएं दायर की थीं।

सुनवाई कर रही पीठ में जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस वी रामसुब्रमण्यन भी शामिल थे। पीठ कंसोर्टियम ऑफ़ नेशनल लॉ यूनिवर्सिटीज़ और दो अन्य द्वारा दायर याचिकाओं में बार काउंसिल ऑफ इंडिया के नए नियमों को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी। बीसीआई के इन नए नियमों में एक वर्षीय एलएलएम पाठ्यक्रम को समाप्त करने की बात कही गई थी।

कंसोर्टियम की ओर से पेश डॉ. एएम सिंघवी ने बुधवार को प्रस्तुत किया था कि

एलएलएम प्रोग्राम के विज्ञापन दो जनवरी को विश्वविद्यालयों द्वारा प्रकाशित किए गए थे और अब तक 5000 से अधिक आवेदन प्राप्त हुए हैं। इसलिए, सिंघवी ने दो जनवरी के अनुसार यथास्थिति बनाए रखने का आदेश पारित करने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि विनियमों को बीसीआई द्वारा अधिसूचित किया जाना है और अधिसूचना के बिना यथास्थिति को बनाए रखा जाना चाहिए।

सुनवाई के दौरान, डॉ. सिंघवी ने एलएलएम प्रोग्राम को विनियमित करने के लिए बीसीआई के अधिकार पर सवाल उठाया। वह भी संबंधित विश्वविद्यालयों के किसी भी परामर्श के बिना ऐसा करने पर सवाल उठाए गए। उन्होंने कहा कि कानूनी शिक्षा को विनियमित करने के लिए बीसीआई की शक्ति केवल कानूनी प्रैक्टिस के लिए नामांकन के लिए योग्यता निर्धारित करने तक सीमित है।

चूंकि एलएलएम कानूनी नामांकन के लिए कोई योग्यता नहीं है, इसलिए बीसीआई के पास इसे विनियमित करने की कोई शक्ति नहीं है।

बीसीआई की शक्ति अधिवक्ता अधिनियम से संचालित होती है। बार काउंसिल केवल नामांकन के लिए मानक तय करने से संबंधित है। एलएलएम नामांकन करने के लिए प्रवेश पाठ्यक्रम नहीं है।

सिंघवी ने कहा कि एलएलएम कानूनी प्रैक्टिस करने की डिग्री नहीं है। अधिवक्ता अधिनियम केवल कानूनी प्रैक्टिस के लिए डिग्री से संबंधित है। केवल यूजीसी को एलएलएम कोर्स विनियमित करने का अधिकार सिंघवी ने कहा कि यह केवल विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) है जो देश में एलएलएम पाठ्यक्रमों को विनियमित करने की शक्ति रखता है।

बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने बार काउंसिल ऑफ इंडिया लीगल एजुकेशन (पोस्ट ग्रेजुएट, डॉक्टोरल, एग्जीक्यूटिव, वोकेशनल, क्लीनिकल एंड अदर कंटीन्यूइंग एजुकेशन) रूल्स, 2020 को अधिसूचित किया है, जिसमें लॉ (एलएलएम) में एक साल की मास्टर डिग्री को खत्म करने का प्रयास किया गया है।

नए नियम के अनुसार,

"विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा 2013 में भारत में शुरू किए गए (अधिसूचना के अनुसार) एक वर्ष की अवधि के लॉ मास्टर डिग्री प्रोग्राम इस अकादमिक सत्र तक ऑपरेटिव और मान्य रहेगा। इस दौरान इन नियमों को अधिसूचित और लागू किया जाएगा, लेकिन इसके बाद देश के किसी भी विश्वविद्यालय में ये मान्य नहीं होगा।" नए नियम में कहा गया कि पोस्ट ग्रेजुएट (स्नातकोत्तर डिग्री) लॉ में मास्टर डिग्री एलएलएम चार सेमेस्टर में दो साल की अवधि का होगा। इसके अलावा, एलएलएम पाठ्यक्रम केवल कानून स्नातक तक ही सीमित है।"

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