पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने नाबालिग रेप पीड़िता की 26 सप्ताह की गर्भावस्था को समाप्त करने की याचिका मंजूर की

Update: 2022-11-26 14:57 GMT

Punjab & Haryana High court

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने 17 वर्षीय बलात्कार पीड़िता को 26 सप्ताह की गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति देते हुए कहा कि यदि बच्चा जन्म लेता है तो वह नाबालिग को आघात और पीड़ा की याद दिलाएगा।

जस्टिस विनोद एस भारद्वाज ने कहा,

"अवांछित के रूप में वह अपने मूल के कारण पीड़ादायी जीवन जीएगा या उसे छोड़ दिया जाएगा। दोनों में से किसी भी स्थिति में मां साथ ही साथ बच्चे को सामाजिक कलंक और शेष जीवन के लिए क़ैद की पीड़ा भुगतनी पड़ेगी।"

अदालत ने कहा कि ऐसी स्थिति मां या उसके बच्चे के हित में नहीं होगी क्योंकि नाबालिग के परिवार ने पहले ही बच्चे की देखभाल नहीं करने को कहा है।

कोर्ट ने कहा,

"ऐसे निर्णय कठिन होते हैं, हालांकि जीवन केवल सांस लेने में सक्षम होने के बारे में नहीं है - यह सम्मान के साथ जीने में सक्षम होने के बारे में है......इस प्रकार समग्र कल्याण के लिए संतुलन की आवश्यकता है....और गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति देना अधिक विवेकपूर्ण लगता है।"

पीड़िता ने मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 के प्रावधानों के तहत गर्भपात संबंधी याचिका के साथ अपने पिता के माध्यम से हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। अदालत को बताया गया कि धारा 363, 366-ए, 376, 450 और 34 के साथ-साथ यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम, 2012 की धारा 4 और 17 के तहत एफआईआर दर्ज की गई है।

कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत किया गया कि जब तक परिवार या नाबालिग को गर्भावस्था के बारे में पता चला, तब तक यह लगभग 21-22 सप्ताह से अधिक हो चुका था।

याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील ने तर्क दिया कि चूंकि विचाराधीन गर्भावस्था 24 सप्ताह से अधिक पुरानी थी, इसलिए याचिकाकर्ता को वैधानिक रूप से एमटीपी अधिनियम के तहत गर्भपात के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाना जरूरी था।

याचिकाकर्ता का तर्क था कि नाबालिग होने के कारण लड़की खुद बच्चे की देखभाल करने की स्थिति में नहीं है।

अदालत ने एक मेडिकल बोर्ड द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट का अवलोकन , किया, जिसने पहले पीड़िता की जांच की थी। रिपोर्ट में डॉक्टरों ने बताया कि वह करीब 25 से 26 सप्ताह की गर्भवती थी।

बोर्ड की राय थी कि चूंकि पीड़िता नाबालिग थी, 'गर्भावस्था जारी रखने से उसके मानसिक स्वास्थ्य को गंभीर आघात लग सकता है'। गर्भावस्था को समाप्त करने के लिए उसे फिट घोषित करते हुए, बोर्ड ने यह भी चेतावनी दी कि "गर्भ के 25-26 सप्ताह के आसपास गर्भावस्था का समापन चिकित्सा और शल्य चिकित्सा जटिलताओं के साथ-साथ मानसिक पीड़ा के संभावित जोखिम से जुड़ा है।"

जस्टिस भारद्वाज ने कहा कि अदालत के पास यह मानने का कोई कारण नहीं है कि मेडिकल बोर्ड की राय नेक नीयत से नहीं है और इस बात पर कि गर्भावस्था को जारी रखना नाबालिग के व्यापक हित में कैसे होगा।

"पीड़ित आज की तारीख में भी नाबालिग है और अपने परिवार पर निर्भर है। उसे अभी अपनी शिक्षा पूरी करनी है और जीवन में अपने लक्ष्यों को पाना है। इस तथ्य को भी नहीं भुलाया जा सकता है कि गर्भावस्था नियमों के नाबालिग के साथ दुष्कर्म का परिणाम है। यह उसके चोटिल शरीर और आत्मा की गवाही है।"

अदालत ने X बनाम यूनियन ऑफ इंडिया, (2020) 19 SCC 806 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा किया, जहां शीर्ष अदालत ने 13 वर्षीय बलात्कार पीड़िता के गर्भपात की अनुमति दी थी।

कोर्ट ने मेवात स्थित एक अस्पताल को निर्देश दिया कि वह कानून में निर्धारित सभी आवश्यक शर्तों को पूरा करने के बाद नाबालिग की गर्भावस्था के चिकित्सीय समापन के लिए आवश्यक सभी उचित और आवश्यक कदम उठाए।

केस टाइटल: श्रीमती एक्स बनाम हरियाणा राज्य और अन्य

साइटेशन: CWP-25508-2022


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