सीजेआई ने जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली पीठ के समक्ष वर्चुअल सुनवाई को मौलिक अधिकार घोषित करने की मांग वाली याचिका को सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया
सुप्रीम कोर्ट (supreme Court) ने सोमवार को रजिस्ट्री को निर्देश दिया कि वह वर्चुअल कोर्ट (Virtual Court) की सुनवाई को जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ (Justice DY Chandrachud) की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष मौलिक अधिकार (Fundamental Rights) घोषित करने की मांग वाली याचिकाओं को सूचीबद्ध करें।
एडवोकेट मृगंक प्रभाकर द्वारा भारत के चीफ जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस कृष्ण मुरारी और जस्टिस हेमा कोहली की पीठ के समक्ष याचिकाओं का उल्लेख किया गया था, जिन्होंने तत्काल सूचीबद्ध करने की मांग की थी।
पीठ से याचिका को सूचीबद्ध करने का आग्रह करते हुए प्रभाकर ने कहा कि कुछ हाईकोर्ट्स हाइब्रिड मोड को पूरी तरह से बंद कर रहे हैं। उन्होंने यह भी प्रस्तुत किया कि जस्टिस एलएन राव (अब सेवानिवृत्त) की अध्यक्षता वाली पीठ ने 29 अप्रैल, 2022 को 25 जुलाई को याचिकाओं को सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया था, लेकिन वे वाद सूची में उपस्थित नहीं हो रहे थे।
यह देखते हुए कि जस्टिस एलएन राव, जो पहले याचिकाओं की सुनवाई कर रहे थे, सेवानिवृत्त हो गए हैं, सीजेआई ने उन्हें जस्टिस चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया।
याचिका "ऑल इंडिया एसोसिएशन ऑफ ज्यूरिस्ट्स" नामक वकीलों के एक संगठन द्वारा दायर की गई थी, जिसमें उत्तराखंड हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई थी, जिसमें हाइब्रिड विकल्प के बिना, फिजिकल सुनवाई पूरी करने के लिए वापस जाना था।
यह तर्क दिया गया कि उत्तराखंड, बॉम्बे, मध्य प्रदेश और केरल हाईकोर्ट्स वर्चुअल मोड के माध्यम से मामलों में भाग लेने के लिए जॉइनिंग लिंक प्रदान नहीं कर रहे हैं।
याचिका में तर्क दिया गया कि वर्चुअल मोड के माध्यम से मामलों की सुनवाई की सुविधा तक पहुंच से इनकार करना भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 और 21 के तहत मौलिक अधिकारों से वंचित करने जैसा है। इसे देखते हुए 4 उच्च न्यायालयों के रजिस्ट्रार जनरलों के खिलाफ भी यही परमादेश मांगा गया है।
सुनवाई के दौरान जस्टिस नागेश्वर राव ने मौखिक रूप से टिप्पणी की कि फिजिकल सुनवाई आदर्श होनी चाहिए और केवल असाधारण परिस्थितियों में ही वर्चुअल सुनवाई का सहारा लिया जा सकता है।
केस टाइटल : ऑल इंडिया एसोसिएशन ऑफ ज्यूरिस्ट्स एंड अन्य बनाम उत्तराखंड हाईकोर्ट एंड अन्य
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