लॉकडाउन के दौरान पूरे देश में ब्लॉक स्तर पर सामुदायिक किचन चलाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका

Update: 2020-04-24 16:58 GMT

COVID-19 महामारी के दौरान पूरे देश में अस्थाई रूप से ब्लॉक स्तर पर सामुदायिक किचन चलाने के लिए राज्यों और केंद्र सरकार को निर्देश देने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है, जिसमें कहा गया है सामुदायिक किचन चलाना इसलिए आवश्यक है, ताकि कोई व्यक्ति भूखा न रहे।

यह याचिका एडवोकेट फूज़ैल अहमद अय्यूबी और अशिमा मंडला के माध्यम से दायर की गई है। इसमें कहा गया है कि राज्य के फंड से सामुदायिक किचन चलाने की परिकल्पना देश और दुनिया के लिए कोई नयी बात नहीं है और तमिलनाडु (अम्मा उनवागम), राजस्थान (अन्नपूर्णा रसोई), कर्नाटक (इंदिरा कैंटीन), दिल्ली (आम आदमी कैंटीन), आंध्र प्रदेश (अन्ना कैंटीन), झारखंड (मुख्यमंत्री दाल भात) और ओडिशा (आहार सेंटर) जैसे राज्य भुखमरी और कुपोषण के संकट को दूर करने के लिए चलाए जा रहे हैं।

फिर, इस सामुदायिक किचन का एक फ़ायदा यह होगा कि इसमें काम करने वाले लोगों को रोज़गार मिलेगा क्योंकि देश में बेरोज़गारी बढ़ रही है और यह भुखमरी और कुपोषण के चक्र को बढ़ा रहा है।

संसद ने 10.09.2013 को खाद्य सुरक्षा क़ानून पास किया जो खाद्य सुरक्षा एक क्षेत्र में एक महत्त्वाकांक्षी क़दम है और इस क़ानून द्वारा कल्याण से आगे जाकर अधिकार को इसका आधार बनाया गया। देश में COVID-19 महामारी के कारण खाद्य असुरक्षा काफ़ी बढ़ गई है और लोगों के भूख के कारण मरने तक की नौबत आ गई है।

याचिका में यह भी कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट ने भी मौखिक रूप से पूरे देश में सामुदायिक किचन चलाने की बात का समर्थन किया है, पर यह इस महामारी के फैलने से पहले की बात है। वर्तमान याचिका महामारी फैलने और लॉकडाउन के कारण आर्थिक गतिविधियों के बंद हो जाने के कारण बहुत ही विषम स्थिति पैदा हो गई है और इसमें अदालत से पूरे देश में अस्थाई तौर पर सामुदायिक किचन सभी ब्लॉकों में चलाने का निर्देश दिए जाने का आग्रह किया गया है।

इस समय लोगों के सामने खाने का जो संकट है उसकी गंभीरता को समझा जाना ज़रूरी है जो कि अप्रत्याशित, विशिष्ट और असीमित है और इसलिए यह संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत भोजन के अधिकार जैसे मौलिक अधिकार को प्रभावित करने वाला है। हमारे देश में लगभग 19 करोड़ लोग जिसे सामान्य समय कहते हैं, उस समय में भी भूखे सो जाने के लिए मजबूर हैं'और अब COVID-19 के कारण लागू लॉकडाउन की वजह से इससे भी ज़्यादा लोगों के सामने भुखमरी की समस्या पैदा हो गई है और जिनके पास खाना ख़रीदने के लिए पैसे नहीं है। भुखमरी का डर प्रवासी मज़दूरों को शहरों से गांवों की ओर भागने के पीछे सबसे बड़ी वजह थी।

यह कहा गया है कि कुछ राज्यों और एनजीओ, निजी व्यक्तिय सामुदायिक किचन चला रहे हैं। 13 अप्रैल को ग्रामीण विकास मंत्रालय की एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया कि लॉकडाउन के दौरान सामुदायिक किचन जरूरतमंदों का पेट भरने का एक सहज उपाय बनकर उभरा है। यह भी कहा गया कि सभी ग्राम पंचायतों में स्वयं सहायता समूहों की मदद से 10 हज़ार सामुदायिक किचन बिहार, झारखंड, केरल और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में चलाए जा रहे हैं और इन स्थलों पर हर दिन लगभग 70 हज़ार लोगों को खाना खिलाया जा रहा है।

केंद्र सरकार ने लॉकडाउन के दौरान अगले तीन महीने तक पीडीएस में पंजीकृत लोगों को 5 किलो अतिरिक्त अनाज और एक किलो दाल देने की घोषणा की है। क्वार्टज इंडिया में छपे एक आलेख में कहा गया है कि देश में 10 करोड़ लोग पीडीएस से बाहर हैं क्योंकि सरकार ने 2011 की जनगणना के आँकड़ों पर भरोसा कर रही है

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