रविदास मंदिर : दोबारा मूर्ति लगाने और मंदिर बनाने की सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका को पीठ ने CJI को पास भेजा
दिल्ली के तुगलकाबाद में रविदास मंदिर को ढहाने के मामले में दाखिल याचिका को सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस आर. बानुमति और जस्टिस ए. एस. बोपन्ना ने मुख्य न्यायाधीश को भेज दिया है।
CJI भेजेंगे मामले को उचित पीठ के पास
पीठ ने सोमवार को ये कदम उठाते हुए कहा कि CJI रंजन गोगोई ही इस मामले को उचित पीठ में भेजने के लिए आदेश जारी करेंगे। दरअसल इस मामले में हरियाणा कांग्रेस के अध्यक्ष अशोक तंवर और पूर्व मंत्री प्रदीप जैन ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।
याचिका में मुख्य दलीलें
सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की याचिका में उन्होंने कहा है कि पहले सुप्रीम कोर्ट के सामने मंदिर से जुड़े सही तथ्य नहीं रखे गए। याचिका में यह कहा गया है कि पूजा का अधिकार एक संवैधानिक अधिकार है। लिहाजा पूजा करने का अधिकार दिया जाए। याचिका में ये भी मांग की गई है कि मूर्ति को दोबारा लगाया जाए और साथ ही मंदिर का पुनर्निर्माण किया जाए। याचिका में यह कहा गया है कि ये मंदिर 600 साल पुराना है तो डीडीए इसका हकदार कैसे हो सकता है।
पीठ ने कानून- व्यवस्था बनाए रखने के दिए थे निर्देश
इससे पहले 19 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली, हरियाणा और पंजाब सरकार को कानून- व्यवस्था बनाए रखने के निर्देश जारी किए थे। पीठ ने यह साफ कहा था कि उसके आदेशों के तहत गिराए गए मंदिर पर राजनीति नहीं की जा सकती है। हालांकि बाद में पीठ ने कुछ हिस्सों में तोड़फोड़ करने पर रोक लगा दी थी।
"अदालत के आदेशों को नहीं दिया जा सकता राजनीतिक रंग"
मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस अरुण मिश्रा की पीठ ने यह कहा था कि कोर्ट के आदेशों को धरती पर कोई भी राजनीतिक रंग नहीं दे सकता है। पीठ ने ये टिप्पणी उस समय की जब केंद्र की ओर से अदालत को यह बताया गया कि कोर्ट के आदेश के मुताबिक मंदिर को ढहा दिया गया है, जबकि 18 संगठनों ने इस दौरान कार्रवाई का विरोध किया। दिल्ली, हरियाणा और पंजाब में इसका विरोध हो रहा है इसलिए इन सरकारों को निर्देश दिए जाए कि वो कानून व्यवस्था के मुद्दों की देखभाल करें।
"अदालत शुरू कर सकती है अवमानना की कार्यवाही"
पिछले हफ्ते सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में तुगलकाबाद वन क्षेत्र में गुरु रविदास मंदिर के ढहाए जाने का राजनीतिकरण करने के खिलाफ चेतावनी दी थी। इसके अलावा धरना और प्रदर्शन करने वालों के खिलाफ अवमानना कार्यवाही शुरू करने की चेतावनी भी दी थी। पीठ ने कहा था कि वह अवमानना शुरू कर सकता है।
क्या है रविदास मंदिर से जुड़ा यह मामला
दरअसल दिल्ली के तुगलकाबाद स्थित रविदास के मंदिर को डीडीए द्वारा कोर्ट आदेश के अनुसार ढहा दिया गया था। डीडीए का यह दावा रहा है कि मंदिर अवैध तरीके से कब्ज़ा की गई ज़मीन पर बना था। सुप्रीम कोर्ट ने 9 अगस्त को सुनवाई के दौरान दिल्ली पुलिस और दिल्ली सरकार को ये सुनिश्चित कराने का आदेश दिया था कि 13 अगस्त से पहले मंदिर गिरा दिया जाए। 10 अगस्त को मंदिर गिरा दिया गया।
संत रविदास जयंती समिति समारोह के ज़मीन पर दावे को सबसे पहले ट्रायल कोर्ट ने 31 अगस्त 2018 को ख़ारिज किया था और 20 नवंबर 2018 को दिल्ली हाई कोर्ट ने भी निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा था। इस साल 8 अप्रैल को हुई सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को पलटने से इंकार करते हुए मंदिर गिराए जाने का आदेश दिया था।
डीडीए का यह दावा था कि दिल्ली लैंड रिफॉर्म एक्ट 1954 के बाद ज़मीन केंद्र की हो गई है। डीडीए ने हाई कोर्ट को ये भी बताया था कि राजस्व रिकॉर्ड में समिति के मालिकाना हक़ का कोई साक्ष्य मौजूद नहीं है। डीडीए ने ये दलील भी दी कि चूंकि विवादित ज़मीन वन क्षेत्र है इस वजह से वहां किसी तरह का निर्माण कार्य नहीं हो सकता। वहीं समिति का दावा था कि मंदिर पर मालिकाना हक उसका है।