अनन्य क्षेत्राधिकार का स्थान मध्यस्थता की 'सीट' माना जाएगा: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मध्यस्थता समझौते में मध्यस्थता के लिए कोई सीट या वैन्यू न होने पर, वह स्थान जहां समझौते के अनुसार अनन्य अधिकार क्षेत्र निहित है, मध्यस्थता का 'सीट' माना जाएगा।
जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस एएस चंदुरकर की पीठ ने पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें एक ऐसे विवाद में मध्यस्थ की नियुक्ति के लिए आवेदन स्वीकार किया गया था, जहा मध्यस्थता समझौते ने बॉम्बे हाईकोर्ट को न्यायनिर्णयन का अनन्य अधिकार क्षेत्र प्रदान किया था।
ब्राह्मणी रिवर पेलेट्स लिमिटेड बनाम कमाची इंडस्ट्रीज लिमिटेड (2020) के मामले में, न्यायालय ने यह माना कि समझौते में स्पष्ट रूप से निर्दिष्ट स्थान के अभाव में भी, बॉम्बे हाईकोर्ट को मध्यस्थता के "सीट" के रूप में अधिकार क्षेत्र प्राप्त होगा।
ब्राह्मणी रिवर पेलेट्स लिमिटेड मामले में न्यायालय ने कहा, "जहां अनुबंध में किसी विशेष स्थान पर न्यायालय के क्षेत्राधिकार का उल्लेख है, केवल उसी न्यायालय के पास मामले पर विचार करने का क्षेत्राधिकार होगा और पक्षकारों का इरादा अन्य सभी न्यायालयों को इससे बाहर रखने का है..."।
कानून को लागू करते हुए, न्यायालय ने कहा,
"यद्यपि खंड 10 में 'सीट' या 'वैन्यू' जैसे शब्दों का प्रयोग नहीं किया गया है, हमारा मत है कि 'क्षेत्राधिकार' का उल्लेख मध्यस्थता के माध्यम से विवादों के समाधान के संदर्भ में किया गया है और इस प्रकार, पक्षों के बीच यह समझौता कि, "ग्राहक इस प्रकार मुंबई स्थित मुंबई हाईकोर्ट के अनन्य क्षेत्राधिकार को स्वीकार करता है" मध्यस्थता के संदर्भ में समझा जाना चाहिए और इसलिए मध्यस्थता का स्थान मुंबई ही माना जाना चाहिए।"
तदनुसार, अपील स्वीकार कर ली गई।