सुप्रीम कोर्ट में लिव-इन रिलेशनशिप के अनिवार्य पंजीकरण संबंधी नियम बनाने के लिए जनहित याचिका दायर, लिव-इन पार्टनर्स द्वारा अपराध में वृद्धि का हवाला

Update: 2023-02-28 10:53 GMT

सुप्रीम कोर्ट में लिव-इन संबंधों के रजिस्ट्रेशन के लिए नियम और दिशानिर्देश बनाने के लिए जनहित याचिका दायर की गई है। एडवोकेट ममता रानी दायर की ओर से दायर याचिका में लिव-इन संबंधों के रजिस्ट्रेशन के लिए नियम बनाने के लिए केंद्र सरकार को निर्देश देने की मांग की गई है।

याचिका में कहा गया है कि-

"माननीय सुप्रीम कोर्ट ने कई बाद लिव-इन पार्टनर्स के लिए सुरक्षा उपलब्ध कराई है। कई ऐसे फैसले पारित किए हैं, जिन्होंने लिव-इन पार्टनर्स, चाहे वह महिला हों, पुरुष हों या यहां तक कि ऐसे रिश्ते से पैदा हुए बच्चे भी, के लिए सुरक्षा पैदा करने का प्रभाव डाला है।"

याचिका में प्रस्तुत किया गया है कि चूंकि लिव-इन संबंधों को कवर करने के लिए कोई नियम और दिशानिर्देश नहीं हैं, इसलिए लिव-इन संबंधी अपराधों में भारी वृद्धि हुई है, जिसमें बलात्कार और हत्या जैसे प्रमुख अपराध भी शामिल हैं।

इस संदर्भ में, हाल के उन मामलों का हवाला दिया गया है कि जहां महिलाओं को कथित रूप से उनके लिव-इन पार्टनर ने मार दिया, जिसमें श्रद्धा वाकर मामला भी शामिल है।

याचिकाकर्ता के अनुसार, लिव-इन रिलेशनशिप के रजिस्ट्रेशन से दोनों पार्टनर्स को एक-दूसरे के बारे में और सरकार को भी उनकी वैवाहिक स्थिति, उनके आपराधिक इतिहास और अन्य प्रासंगिक विवरणों के बारे में सटीक जानकारी उपलब्ध होगी।

जनहित याचिका न केवल लिव-इन रिलेशनशिप से संबंधित कानून बनाने की मांग करती है, बल्कि हमारे देश में लिव-इन रिलेशनशिप में शामिल लोगों की सही संख्या का पता लगाने के लिए केंद्र सरकार को एक डाटा बेस बनाने के लिए काम करने का निर्देश भी देती है।

याचिका में कहा गया है कि इसे केवल लिव-इन पार्टनरशिप के पंजीकरण को अनिवार्य बनाकर ही प्राप्त किया जा सकता है।

याचिका के अनुसार, केंद्र सरकार की लिव-इन पार्टनरशिप को पंजीकृत करने में विफलता संविधान के अनुच्छेद 19 और अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है।

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