रैपिड एंटी-बॉडी टेस्ट को COVID 19 के जांच टूल के रूप में इस्तेमाल करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका

PIL In SC To Direct Centre, States To Start Rapid Anti-Body Test As Screening Tool For COVID

Update: 2020-04-16 03:33 GMT

सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर कर मांग की गई है कि केंद्र सरकार को निर्देश दिया जाए कि वह सभी राज्यों के लिए COVID 19 के जांच टूल के रूप में एंटी-बॉडी टेस्ट अनिवार्य करे। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद ने 4 अप्रैल को जारी अपनी एडवाइजरी में इस टेस्ट के लिए आग्रह किया है।

याचिकाकर्ता- डॉक्टर ने अपने वकील ऋषि जैन के माध्यम से यह जनहित याचिका दायर की है। दलील दी गई है कि स्वास्थ्य मंत्रालय के तकनीकी विशेषज्ञों के साथ विस्तार से चर्चा करने और कई इनपुट पर विचार करने के बाद एंटी-बॉडी टेस्टिंग पर एडवाइजरी जारी करने के रूप में अंतिम निर्णय लिया गया था। कंटेनमेंट जोन व प्रवासियों के लिए बने स्थानों पर COVID 19 की जांच के लिए रैपिड एंटी-बॉडी ब्लड टेस्ट शुरू करने के लिए एडवाइजरी जारी की गई थी।

यह भी दलील दी गई है कि एडवाइजरी में कहा गया है कि यदि एंटी बॉडी टेस्ट पाॅजिटिव आता है तो अस्पताल में इलाज के लिए प्रोटोकॉल शुरू कर दिया जाएगा। आईसीएमआर ने यह भी सलाह दी है कि रैपिड एंटी बॉडी टेस्ट पॉजिटिव आने पर होम क्वारंटाइन का 14 दिनों तक पालन किया जाना चाहिए।

याचिकाकर्ता ने कहा कि-

''वर्तमान में, निदान की पुष्टि केवल रिवर्स-ट्रांस्क्रिप्शन -पीसीआर टेस्टः पॉलिमैरस चेन रिएक्शन टेस्ट ( REVERSE TRANSCRIPTION -PCR TEST : Polymerase Chain Re-action)के जरिए होता है, जिसमें गले का स्वैब/ब्रोंचो अलवीलारलावग का प्रयोग किया जाता है।

यह प्रक्रिया जटिल है और केवल एयरोसोल प्रसार को रोकने के लिए सख्त सुरक्षात्मक उपायों के साथ विशेषज्ञों द्वारा किया जा सकता है। जो पूरे भारत में बने कुछ केंद्रों में ही उपलब्ध हैं।''

साथ ही दलील दी कि-

''रैपिड एंटी बॉडी ब्लड टेस्ट उपलब्ध है जो इस बात की पहचान करता है कि रोगी नेगेटिव है या पॉज़िटिव। इस सरल परीक्षण में केवल रक्त के नमूने का उपयोग किया जाता है और इसलिए इस टेस्ट के लिए एक्सपर्ट हैंड, महंगे बुनियादी ढ़ाचें और पीपीई किट की आवश्यकता नहीं होती है। वहीं एयरोसोल फैलने का जोखिम भी कम होता है।

इस रैपिड एंटी-बॉडी ब्लड टेस्ट को उन मरीजों पर भी किया जा सकता है जो एसिम्प्टमैटिक मरीज है और आईएलआई(इन्फ्लुएंजा जैसे बीमारी) से ग्रसित हैं।

वर्तमान में सरकार ने सभी निजी चिकित्सकों को निर्देश दिया है कि वह आईएलआई (इंफ्लुएंजा जैसे बीमारी), एच1एन1, गंभीर तीव्र श्वसन संक्रमण (एसएआरआई) के साथ आने वाले सभी मामलों की रिपोर्ट उनको भेजें। ये सभी बीमारियां एक जैसी लगती हैं और बिना किसी स्क्रीनिंग टेस्ट के अंतर करना मुश्किल होता है, इसलिए इन सभी रोगियों को जांच करवाने के लिए निर्देश दिया जाता है, जिससे उन पर अतिरिक्त बोझ पड़ता है क्योंकि उन पर आरटी-पीसीआर टेस्ट करवाने का दबाव बनाया जाता है जो कि सीमित केंद्रों में किया जाता है और यह एक महंगा परीक्षण है।''

याचिकाकर्ता ने कि-

''रैपिड एंटी बॉडी टेस्ट एक सरल रक्त नमूना आधारित परीक्षण है जो किसी भी पंजीकृत पैथोलॉजिस्ट /तकनीशियन द्वारा किया जा सकता है और इसके परिणाम भी तत्काल या जल्दी मिल जाते हैं। यदि किसी का एंटी बॉडी टेस्ट नकारात्मक आया है। तो जरूरत पड़ने पर इसकी पुष्टि गले या नाक के स्वैब का उपयोग करते हुए वास्तविक आरटी- पीसीआर टेस्ट से की जा सकती है।

अगर आरटी-पीसीआर टेस्ट भी नकारात्मक है, तो यह सामान्य तौर पर आईएलआई(इंफ्लुएंजा जैसी बीमारी) का मरीज है जो COVID 19 का रोगी नहीं होता है और उसी के अनुसार उसका इलाज किया जा सकता है। हालाँकि, यदि आरटी-पीसीआर पॉजिटिव है तो आइसालेशन उपचार और संपर्क ट्रेसिंग के लिए प्रोटोकॉल के अनुसार कार्रवाई शुरू की जानी चाहिए।''

याचिका में कहा गया है कि भारत सरकार और सभी राज्य सरकारों ने इस महामारी से लड़ने के लिए महामारी रोग अधिनियम 1897 और आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 लागू किया है। जिला कलेक्टर को अपने-अपने कार्य क्षेत्र में मानव जीवन को सुरक्षित करने के लिए अधिनियम 1897 के तहत विशिष्ट आदेश पारित करने का अधिकार दिया गया है। इसलिए, जिला कलेक्टरों ने निवारक उपायों के साथ-साथ उपचारात्मक उपायों को भी अपनाया है। सभी जिलों में धारा 144 पहले से ही लागू है। कई जिलाधिकारियों ने आदेश जारी किया है कि 8 अप्रैल से प्रत्येक नागरिक को सार्वजनिक स्थानों पर अनिवार्य रूप से मास्क पहनना होगा।

भारत में चिकित्सा आपातकाल पहले ही घोषित किया जा चुका है और प्रधानमंत्री ने कहा है कि यह COVID 19 महामारी के खिलाफ एक युद्ध है।

याचिकाकर्ता ने विस्तार से बताते हुए कहा कि-

''यह सर्वविदित तथ्य है कि कोई भी देश COVID 19 रोगी के इलाज के लिए एक उचित टीके का आविष्कार करने में सफल नहीं हुआ है। COVID 19 एक कोरोना वायरस है और इस तरह के रोग में फ्लू जैसे लक्षण आते हैं। निमोनिया के रूप में स्थिति ज्यादा खराब भी हो सकती है, जिससे सांस लेने में तकलीफ होती है और सांस की इस तकलीफ के कारण बनी सह-रुग्ण की परिस्थिति कई रोगियों की मौत का कारण बन जाती है।''

इसके अलावा, याचिकाकर्ता का कहना है कि वर्तमान में आईसीएमआर COVID 19 से संबंधित सभी कार्यों की देखरेख करने वाली सर्वोच्च चिकित्सा अनुसंधान निकाय है। जो भारत में अधिकृत केंद्रों में परीक्षण के लिए प्रतिबंध लगाने और अनुमति प्रदान करने का काम भी करती है। परिषद ने COVID 19 चिकित्सा सुविधाओं की स्थापना के लिए सरकारी और निजी मेडिकल कॉलेज से आवेदन भी मंगवाए थे।

''आईसीएमआर ने भारत में COVID 19 परीक्षण के लिए एक रणनीति तैयार की है, और रैपिड एंटी बॉडी टेस्ट करने के लिए 8 परीक्षण किटों को मंजूरी दी है। काउंसिल ने पहले ही COVID 19 के मरीजों को घर में ही क्वारंटाइन करने की सलाह दी है। एडवाइजरी में यह भी स्पष्ट रूप से कहा गया है कि जब तक लक्षण गंभीर नहीं हो जाते, तब तक व्यक्ति को घर में ही रखा जा सकता है।''

यह भी तर्क दिया गया है कि राज्य सरकारें और केंद्र सरकार इस तरह के क्वारंटाइन घरों को बनाए रखने के लिए बड़ी मात्रा में खर्च कर रही हैं, जिससे राज्य सरकारों पर खर्च का भार बढ़ रहा है-

''सरकारी खजाने पर अनावश्यक रूप से बोझ डाला जा रहा है और अस्पताल के बेड क्वारंटाइन के उद्देश्य के चलते भरे हुए हैं। जो कि भारत जैसे देश में बिल्कुल आवश्यक नहीं है।''

याचिकाकर्ता ने दलील दी कि-''याचिकाकर्ता चिकित्सा के पेशे से है। इसलिए वह क्वारंटाइन के वार्ड के निर्माण का विरोध कर रहा है और इस माननीय न्यायालय से अनुरोध करता है कि वह क्वारंटाइन होम निर्माण को रोकने के लिए निर्देश दे।''

साथ ही कहा कि-

''याचिकाकर्ता को लगता है कि संदिग्ध व्यक्तियों को महामारी रोग और आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत मिली शक्तियों का उपयोग करके उनके घरों में ही रहने के लिए बाध्य किया जाता है।''

इसके अलावा, यह भी दलील दी गई है कि प्रतिवादियों को यह निर्देश देना भी आवश्यक है कि वे ''देश में चरणबद्ध तरीके से निकट भविष्य में COVID 19 रोगियों के इलाज के लिए देश के सभी निजी अस्पतालों के 50 प्रतिशत से अधिक बिस्तरों को टेकआवेर कर लें।'' 

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