हाईकोर्ट जजों की पेंशन में समानता : सुप्रीम कोर्ट ने विशेष पीठ का गठन किया

Update: 2022-07-29 07:02 GMT

सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने बार और सेवा से पदोन्नत हाईकोर्ट के न्यायाधीशों द्वारा प्राप्त पेंशन के बीच समानता से संबंधित मुद्दों पर विचार करने के लिए गुरुवार को जस्टिस एसके कौल, जस्टिस वी रामासुब्रमण्यम और जस्टिस एसआर भट की एक विशेष पीठ का गठन किया।

पीठ का गठन भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना, जस्टिस कृष्ण मुरारी और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने ऑल इंडिया जजेज एसोसिएशन द्वारा जिला न्यायपालिका में जजों की सेवा शर्तों पर अखिल भारतीय न्यायिक आयोग के गठन की याचिका पर सुनवाई करते हुए किया था।

सुप्रीम कोर्ट में क्या हुआ?

जब मामले को सुनवाई के लिए लिया गया तो 2012 में सेवानिवृत्त हुए न्यायाधीश की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट एस नागमुथु ने कहा कि आवेदक को हाईकोर्ट के न्यायाधीश के रूप में सेवानिवृत्त होने के बावजूद जिला न्यायाधीश की पेंशन मिल रही है। अपने तर्क को और पुष्ट करने के लिए, सीनियर एडवोकेट ने जस्टिस जे चेलमेश्वर और जस्टिस कौल की बेंच द्वारा पारित 20 मार्च, 2018 के आदेश का हवाला दिया, जिसमें कोर्ट ने विचार करने के बाद, जो मामला हाईकोर्ट जजों के बीच पेंशन के लिए समानता के सिद्धांतों के मुद्दे से संबंधित है, ने राय दी थी कि इस मामले की बड़ी पीठ द्वारा जांच की जानी उचित होगी।

वकील द्वारा प्रस्तुत दलीलों पर विचार करते हुए, भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना ने एएसजी केएम नटराज से सेवानिवृत्त न्यायाधीश के प्रति कुछ सहानुभूति दिखाने का आग्रह किया।

सीजेआई ने कहा,

" सेवानिवृत हुए जजों के एक भी मामले में आपने सहानुभूति नहीं दिखाई है। यह वह नहीं है जो हम चाहते हैं। कम से कम कुछ मामलों में समानता होनी चाहिए।"

एएसजी द्वारा यह प्रस्तुत करने पर कि केंद्र ने एक जवाब दायर नहीं किया है, सीजेआई ने कहा,

"वे अपने जीवन के अंतिम छोर पर हैं और वे पहले ही सेवानिवृत्त हो चुके हैं, उनकी उम्र 70/80 वर्ष है। वे सेवानिवृत्त हैं और वे न्यायाधीश हैं। आप न्यायाधीशों के लाभ के लिए अधिनियम के छोटे हिस्से में संशोधन क्यों नहीं करते? इन मामलों में आपको जवाब या हलफनामा दाखिल करने की आवश्यकता नहीं है।"

सुनवाई के दौरान सीनियर एडवोकेट ने 31 मार्च, 2014 को पी रामकृष्णम राजू बनाम भारत संघ में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का भी हवाला दिया, जिसमें मुद्दा यह था कि क्या हाईकोर्ट के न्यायाधीश, जिन्हें भारत के संविधान के अनुच्छेद 217 ( 2)(बी) के तहत बार से नियुक्त किया जाता है, सेवानिवृत्ति पर, अपनी पेंशन के प्रयोजनों के लिए अपनी सेवा में 10 वर्ष अतिरिक्त पाने के हकदार हैं। उक्त फैसले में, पीठ ने घोषणा की थी कि पेंशन लाभ के लिए, एक वकील के रूप में दस साल की प्रैक्टिस को बार से पदोन्नत न्यायाधीशों के लिए योग्यता सेवा के रूप में जोड़ा जाए।

उन्होंने यह भी प्रस्तुत किया कि वह हाईकोर्ट के न्यायाधीशों (वेतन और सेवा की शर्तें) अधिनियम, 1954 की पहली अनुसूची के भाग- III को चुनौती दे रहे थे, जो राज्य न्यायिक सेवा से पदोन्नत न्यायाधीशों से संबंधित है।

वरिष्ठ वकील ने भी प्रस्तुत किया,

"मैं भाग- III को चुनौती दे रहा हूं। उन्हें सभी के लिए समान पेंशन दें। मुझे जिला न्यायाधीश की सेवा की पेंशन का भुगतान किया जाता है, न कि एचसी न्यायाधीश के रूप में। एक पद एक पेंशन का मानदंड होना चाहिए। कोई भेदभाव नहीं हो सकता। मैं इसी पर भरोसा कर रहा हूं। जिला न्यायाधीश के रूप में अगर मैं सेवानिवृत्त होता हूं तो मुझे राज्य से पेंशन मिलती है लेकिन अगर मैं हाईकोर्ट के न्यायाधीश के रूप में सेवानिवृत्त होता हूं, तो मुझे केंद्र सरकार द्वारा पेंशन मिलेगी।"

वकील की दलीलों पर विचार करते हुए पीठ ने कहा कि पेंशन से जुड़े मुद्दे पर विचार करने के लिए वह एक विशेष पीठ का गठन कर रही है।

पीठ ने तब अपने आदेश में कहा,

"मामले की लंबी लंबितता और न्यायाधीशों की पेंशन से संबंधित मुद्दों को ध्यान में रखते हुए हम जस्टिस एसके कौल, जस्टिस वी रामासुब्रमण्यम और जस्टिस एसआर भट की पीठ का गठन कर रहे हैं। न्यायाधीशों से मामला तय करने के लिए अनुरोध किया जाता है।"

केस : जस्टिस एम विजयराघवन बनाम भारत संघ | डब्ल्यूपी (सी) 993/2017

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